मुहर्रम पर इटावा की अनोखी लुट्टस रस्म के कायल हैं हिन्दू मुस्लिम

Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 Sep, 2017 01:27 PM

hindu muslims are convinced of etawah  s unique lutas ritual on muharram

मुहर्रम पर पूरे देश में ऐसी मिसाल देखने को नहीं मिलती है जैसी उत्तर प्रदेश के इटावा में...

इटावाः मुहर्रम पर पूरे देश में ऐसी मिसाल देखने को नहीं मिलती है जैसी उत्तर प्रदेश के इटावा में दिखाई पड़ती है।  इस परम्परा का नाम है लुट्टस। यह परम्परा करीब डेढ सौ सालों से जारी है। गम के तौर पर मुहर्रम को देखा जाता है लेकिन लुट्टस के कारण लोग खुशी को इस तरह से जाहिर करते हैं मानो जश्न का कोई पर्व हो।
जिसमें हिंदुओ के साथ-साथ मुस्लिम लोग भी खासी तादात में शरीक होते हैं। यह साम्प्रदायिक सौह्रार्द की एक बड़ी मिसाल है। इस परम्परा के निर्वाह के चक्कर में कई लोगों को हमेशा चोट लगती रहती है लेकिन कोई भी आज तक पुलिस के पास शिकायत करने के लिए नहीं पहुंचा।

लुट्टस परम्परा की शुरूआत
बता दें कि लुट्टस परम्परा की शुरूआत इटावा के एक हिंदू परिवार ने लम्बी मन्नत के बाद बेटे की पैदाइश होने पर शुरू किया था। इस परिवार के कुछ लोग अपने मासूम बच्चों को प्रतीक स्वरूप लटका कर परम्परा का निर्वाह तो करते ही हैं साथ ही बर्तन आदि लुटा कर अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए परम्परा को जीवंत बनाए हुए हैं, जो आज इटावा की एक परम्परा के रुप में पर्व बन गया है।

एक करोड़ से अधिक का सामान बंटवाते
जानकारी के अनुसार लुट्टस परम्परा की शुरूआत झम्मनलाल की कलार मुहल्ले में रहने वाले गुप्ता परिवार से हुई। जहां पर लंबी मन्नत के बाद जब बेटे के रूप मे खुशी मिली तो जश्न के तौर पर मुहल्ले वालों को खूब पैसा बर्तन तो लुटाया ही साथ ही खाने पीने के लिए खूब पकवान भी बंटवाए। आज के परिवेश में परम्परा के नाम पर ये परिवार करीब एक करोड़ से अधिक का सामान लुट्टस के तौर पर बंटवाते हैं।

चुंनिदा अफसर भी होते हैं शरीक
मन्नत के बाद जिस बेटे की पैदाइश हुई उसका नाम रखा गया था फकीरचंद्र। फकीरचंद्र का परिवार इटावा में करीब 300 लोगों के बड़े परिवार में बदल कर एक मुहल्ले का स्वरूप ले चुका है। आजादी से पहले अंग्रेज सरकार के कुछ चुंनिदा अफसर भी इस लुट्टस परम्परा के मुरीद हुआ करते थे, जो मुहर्रम के दिनों में लुट्टस का आनन्द लेने के लिए आते रहे हैं। 

कैसे हुई परम्परा की शुरूआत
इस बात के प्रमाण इटावा के गजेटियर में भी लिपिबद्ध किए गए हैं। इटावा में लुट्टस परम्परा की शुरुआत करने वाले परिवार के सदस्य राकेश गुप्ता बताते हैं कि खानदान में कोई नहीं था, सिर्फ पांच बेटियां ही थीं। रूढ़वादी दौर में बेटा न होना बड़ी ही कचोटने वाली बात मानी जाती थी। उस समय तमाम मन्नतों के बाद बेटे का जन्म हुआ तो पूरा परिवार खुशी के मारे पूरे शहर भर में झूमता फिरा।

अनूखी परम्परा के तौर पर तबदील
मन्नत पूरी होने के बाद परिवार के उस समय के बुर्जगों ने तय किया कि बेटे की मन्न्नत पूरी होने के एवज में मुहर्रम के दौरान बर्तन और खाने पीने का सामान बंटवाया जाएगा, तब से यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। यह लुट्टस परम्परा देश की अनूखी परम्परा के तौर पर तबदील हो चुकी है क्योंकि मुहर्रम के दौरान देश में ना तो ऐसा होता है और ना ही ऐसा अभी तक देखा गया है। 

हर हाल में जारी रखेंगे ये परम्परा 
 इनके बटे दिनेश गुप्ता का कहना है कि उनके परिवार ने मन्नत पूरी होने के एवज में जिस लुट्टस परम्परा की शुरूआत की है उसे हर हाल में न केवल जारी रखेंगे बल्कि परिवार के नए सदस्यों को भी इस बात के लिए प्रेरित करते रहेंगे कि मन्नत ने खानदान को बनाया है इसलिए लुट्टस रूपी मन्नत परम्परा को हमेशा बरकरार रखें।  लुट्टस परम्परा शुरू करने वाले परिवार के रिश्तेदार दूर दराज से लुट्टस के दौरान खासी तादात में इस दौरान जमा हो जाते हैं। 
 

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