Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Jan, 2018 06:45 PM
उत्तराखंड में भाजपा की सरकार जब नौकरशाही के कार्यशैली नहीं बदल पा रही तो उसने नया फंडा अपनाया कि नाम ही बदल डालो।
देहरादून/ब्यूरो। उत्तराखंड में भाजपा की सरकार जब नौकरशाही के कार्यशैली नहीं बदल पा रही तो उसने नया फंडा अपनाया कि नाम ही बदल डालो। शायद नाम बदलने से ही संस्कार और कार्य संस्कृति में बदलाव आ जाए। सचिवालय इमारत के अलग अलग ब्लाक के नाम बदले जा चुके हैं।
राज्य सरकार के कैबिनेट बैठक में इस आशय का प्रस्ताव पास किया गया। जिसके आधार पर चतुर्थ तल अब अब्दुल कलाम भवन के नाम से जाना जाएगा। मुख्यसचिव वाले ब्लाक को सुभाष चंद्र नाम दिया गया है। इसी तरह योजना आयोग भवन विश्वक र्मा भवन और पीछे की तरफ स्टेट बैंक का भवन सोबन सिंह जीना कहा जाएगा। भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक देवेंद्र शास्त्री के नाम पर सेंट्रल भवन का नाम परिवर्तित किया गया है।
कैबिनेट प्रस्ताव में कई ब्लाक के नाम तो बदल गए लेकिन इस बदलाव की प्रक्रिया में कहीं भी राजनीति से हटकर उत्तराखंड के सामाजिक आंदोलन जननायकों में किसी का नाम प्रस्तावित नहीं किया गया। यहां तक कि सैन्य परंपरा या राज्य आंदोलन के लिए बलिदान होने वाले व्यक्ति की ओर भी सरकार का ध्यान नहीं गया। वीर चंद्र सिंह गढ़वाली, गौरा देवी, जसवंत सिंह, श्री देव सुमन , माधो भंडारी, विश्नी देवी जैसे नायकों को फिर भुला दिया गया। राज्य सरकार ने कैबिनेट बैठक में प्रस्ताव पर यह फैसला लिया।
इसमें सचिवालय भवन के ब्लाकों को नाम देने की प्रक्रिया भी आनन-फानन में शुरू करा दी गई। हालांकि उत्तराखंड में लोगों की अपेक्षा ऐसे नामांतरण के बजाय सचिवालय की कार्यशैली को बेहतर करनी की रही है। आज भी सचिवालय में लोगों को किसी स्तर पर मुख्य सचिव या सचिव से मिलना दूर किसी कनिष्ठ अधिकारी से मिल पाना टेढ़ी खीर हैं। लोग हार थक जाते हैं, लेकिन प्रशासन के स्तर पर जिन समस्याओं को दूर किया जा सकता है वह दूर नहीं हो पाती।
सचिवालय के फोन पर किसी अधिकारी का आना सहज नहीं हो पाता। फाइलों के अंबारों में लोगों की अपनी अपेक्षाएं जरूरतें दबी की दबी रहती हैं। उत्तराखंड को बने हुए 18 साल हुए हैं लेकिन सचिवालय के कामकाज के तरीके में बदलाव के लिए न अब तक किसी सरकार ने सोचा, न प्रशासन के स्तर पर ही कभी इसपर विवेक पूर्ण फैसला लिया गया। कामकाज एक ही ढर्रे पर चलता रहा है। क्षेत्र की कामकाजों की फाइलें लंबे समय तक अटकी रहती है। जिन इलाकों में अधिकारियों के दौरे निरीक्षण होना चाहिए वह नहीं हो पाते। सचिवालय मंथर गति से चलता है।
केवल जिन कामों में निजी रुझान हो, वहीं कामकाज तेजी से निपटाए जाते हैं। जिन लोगों की ऊंची पहुंच रही है उनके लिए सत्ता प्रशासन के गलियारे में घूमना संभव रहा, लेकिन आम लोगों के लिए सचिवालय में आना आसान नहीं रहा। कड़े अवरोध और अधिकारियों की बेरुखी ने लोगों को हताश किया। घंटों केबिन के बाहर बैठे लोगों को शाम ढलते निराश होकर घर जाना पड़ा। इस दौर में चंद प्रशासनिक अधिकारी हैं जो अपनी क्षमता अच्छे प्रशासन फाइलों को निपटाने, काम में गतिशीलता के लिए जाने गए।
अब सचिवालय आने वाले लोग इन भवनों में एपीजे अब्दुल कलाम भवन , सुभाष चंद्र भवन , देवेंद्र शास्त्री भवन जैसे नामों के लगे बोर्ड देखेंगे। लेकिन राज्य की अपेक्षा सचिवालय के ब्लाकों का नामकरण नहीं बल्कि कामकाज में गति और पारदर्शिता होना है। भाजपा के प्रवक्ता डा. देवेंद्र भसीन का कहना है कि बड़े नायकों के नाम से प्रेरणा लेने के लिए सचिवालय के ब्लाकों के नाम बदले गए हैं। सचिवालय की कार्यशैली एक अलग पहलू है। जहां तक ब्लाकों के नाम बदले जाने की बात है तो यह प्रेरणा जगाने के लिए है।
भाजपा की राज्य में नई सरकार आई है। कई चीजों को नई तरह से सोच रही है। उसमें यह बदलाव भी है। इसे सकारात्मक तौर पर देखा जाना चाहिए। जबकि राज्य के पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता दिनेश अग्रवाल का कहना है कि सचिवालय के ब्लाक का नाम बदले जाने से कुछ नहीं होगा। जनता जिन चीजों से परेशान है,उसके बारे में सरकार को कदम उठाने चाहिए। यह केवल लोगों को बहलाने का तरीका है।