सुविधाओं और प्रोत्साहन की कमी से खिलाड़ी कर रहे टेबल टेनिस टूर्नामेंट से परहेज

Edited By Punjab Kesari,Updated: 14 Apr, 2018 04:23 PM

uttarakhand players not interested in table tennis tournament

एक समय था, जब टेबल टेनिस में राष्ट्रीय स्तर पर सूबे की झोली में कोई न कोई पदक जरूर आता था। खासकर महिला वर्ग में तो पदक की उम्मीद रहती थी। लेकिन, खेलों में बढ़ी प्रतिस्पर्धा के दौर में उत्तराखंड में टेबल टेनिस जैसा खेल पिछड़ गया है। पिछले सात-आठ...

देहरादून: एक समय था, जब टेबल टेनिस में राष्ट्रीय स्तर पर सूबे की झोली में कोई न कोई पदक जरूर आता था। खासकर महिला वर्ग में तो पदक की उम्मीद रहती थी। लेकिन, खेलों में बढ़ी प्रतिस्पर्धा के दौर में उत्तराखंड में टेबल टेनिस जैसा खेल पिछड़ गया है। पिछले सात-आठ सालों में इस खेल में राष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश के खिलाड़ी पदक जीतने में नाकाम रहे हैं। 

 

अवस्थापना सुविधाओं और प्रोत्साहन की कमी के चलते टेबल टेनिस पीछे होता जा रहा है। 2009-10 तक टेबल टेनिस में राष्ट्रीय स्तर पर सूबे के खिलाड़ी खासकर महिला खिलाड़ी पदक जीतती रही हैं। भावना हरबोला, स्वाति शर्मा, विनीता चिमवाल आदि ऐसी खिलाड़ी हैं जिन्होंने प्रदेश को पदक दिलाए।लेकिन, इन खिलाड़ियों के खेल से दूरी बनाने के बाद पदकों का सूखा पड़ गया। ऐसा नहीं है कि खेल को बढ़ावा देने के लिए कोई प्रयास नहीं हो रहे। 

 

टेबल टेनिस को बढ़ावा देने के लिए भारतीय खेल प्राधिकरण की डे-बोर्डिंग स्कीम के तहत समर वैली स्कूल में टेबल टेनिस सेंटर खुला हुआ है। साई के प्रशिक्षक खिलाड़ियों को तैयार करने में जुटे हैं। लेकिन, इस सेंटर के अलावा प्रदेश में कोई भी कोई बड़ा सेंटर नहीं है। पहले पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, पौड़ी आदि जनपदों में भी सेंटर हुआ करते थे, लेकिन धीरे-धीरे ये सेंटर बंद हो गए। इसका खामियाजा यह हुआ कि देहरादून के अलावा कहीं से भी खिलाड़ी निकल कर नहीं आ रहे हैं। कुछ पब्लिक स्कूलों में जरूर टेबल टेनिस को बढ़ावा देने के प्रयास हो रहे हैं।

 

सिर्फ सर्टिफिकेट के लिए खेल रहे खिलाड़ी
बैडमिंटन की तरह टेबल टेनिस में खिलाड़ी भविष्य बनाने के लिए तैयार नहीं हैं। साई सेंटर में ट्रेनिंग ले रहे ज्यादातर खिलाड़ी निजी स्कूलों के छात्र हैं। शिक्षा के क्षेत्र में खेलों के जरिए आगे बढ़ने के उद्देश्य से ही यह खिलाड़ी खेल रहे हैं। इनका मकसद होता है कि राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिभाग करके भी वे प्रमाणपत्र की मदद से दिल्ली विवि जैसे शिक्षण संस्थानों में प्रवेश हासिल करें। इन विवि में खेल कोटे में भी प्रवेश दिया जाता है। 

 

बैडमिंटन और टेनिस में जहां खिलाड़ी रैंकिंग टूर्नामेंट में खेलकर राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अंक बढ़ाने का प्रयास करते हैं, वहीं टेबल टेनिस में शायद ही खिलाड़ी रैंकिंग टूर्नामेंट खेलने जाते हों। इसका खामियाजा उन्हें राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के दौरान भुगतना पड़ता है। प्रदेश के खिलाड़ियों को पहले क्वालीफाइंग राउंड की चुनौती पार करनी पड़ती है। यदि नॉकआउट राउंड में पहुंच गए, तो उन्हें शीर्ष खिलाड़ियों से हार का सामना करना पड़ता है।

 

सरकार की तरफ से भी नहीं मिल रही सहायता
एक ओर जहां प्रदेश सरकार ने खेलों की अवस्थापना सुविधाओं के विकास में कई कदम बढ़ाए हैं, वहीं टेबल टेनिस के बारे में कोई प्रयास नहीं हुए। उत्तराखंड स्टेट टेबल टेनिस एसोसिएशन ने खेल को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से दो बार अंतर्राष्ट्रीय स्तर के आयोजन भी किए, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। यह आयोजन भी आइस स्केटिंग रिंक में ही संभव हो सका। सरकार परेड ग्राउंड में मल्टीपर्पज हॉल का निर्माण कर रही है। इसमें बैडमिंटन के लिए तो 12 कोर्ट लगाने के दावे हैं, लेकिन टेबल टेनिस का प्रशिक्षण बहुद्देश्यीय क्रीड़ा हॉल परेड ग्राउंड के ऊपरी तल पर छोटी सी जगह पर चलता है, जहां बमुश्किल तीन टेबल ही लगाई जा सकती हैं। 

 

टेबल टेनिस के पिछड़ने का एक कारण यह भी है कि अन्य खेलों में जहां एकेडमी कल्चर बढ़ा है, वहीं टेबल टेनिस में इस तरह के कोई प्रयास नहीं हुए हैं। राष्ट्रीय व साई टेबल टेनिस कोच प्रिंस विपन कहते हैं कि एसोसिएशन के नियमों के अनुसार सभी वर्गों में प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। लेकिन, अवस्थापना सुविधाओं की कमी आड़े आ रही  है। साई सेंटर के अलावा प्रदेश में कोई ऐसा सेंटर नहीं हैं, जहां खेलने के लिए ज्यादा खेल की टेबल रखी जा सके। राष्ट्रीय आयोजन के लिए कम से 12 से 16 टेबल वाला हॉल होना चाहिए। ज्यादा सेंटर खुलने से ज्यादा प्रतिभाएं सामने आएंगी। इस बारे में सरकार को एसोसिएशन का साथ देना चाहिए।

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