सावधान... चमोली आपदा के बाद अब खतरे की जद में नंदाकिनी नदी के किनारे शिलासमुद्र ग्लेशियर

Edited By Nitika,Updated: 08 Feb, 2021 06:05 PM

shilasamudra glacier on the banks of nandakini river in the danger

उत्तराखंड में चमोली जिले के लोग अभी भी सुरक्षित नहीं हैं। अलकनंदा नदी के बाद अब चमोली जिले में नंदाकिनी नदी के किनारे स्थित शिलासमुद्र ग्लेशियर भी खतरे की घंटी से कम नहीं है।

 

चमोलीः उत्तराखंड में चमोली जिले के लोग अभी भी सुरक्षित नहीं हैं। अलकनंदा नदी के बाद अब चमोली जिले में नंदाकिनी नदी के किनारे स्थित शिलासमुद्र ग्लेशियर भी खतरे की घंटी से कम नहीं है। वहीं जानकारों का कहना है कि बड़ा भूकंप आने की दशा में अगर भविष्य में शिलासमुद्र ग्लेशियर फटता है तो सितेल, कनोल, घाट, नंदप्रयाग से लेकर हरिद्वार तक कई शहरों में तबाही मच सकती है।

शिलासमुद्र ग्लेशियर नंदा राजजात का 16वां पड़ाव है। धार्मिक महत्ता का प्रतीक होने के साथ पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यहां पर दुर्लभ प्रकार के जीव जंतु पाए जाते हैं, जो गढ़वाल हिमालय के ईकोलॉजी सिस्टम में भी महत्वपूर्ण भागीदारी निभाते हैं। शिलासमुद्र ग्लेशियर लगभग 8 किलोमीटर परिक्षेत्र में फैला है।

वहीं ग्लेशियर के ऊपरी भाग में सैकड़ों टनों के हजारों पत्थरों की भरमार है और इसकी तलहटी पर पिछले कुछ सालों से एक बड़ा गोलाकर छेद बन रहा है। 2000 और 2014 की राजजात में गए तीर्थयात्रियों की माने तो पहले ग्लेशियर की तलहटी में बना यह छेद काफी छोटा था। वर्तमान समय में इसका आकार बड़ा हो गया है।

इतना ही नहीं पहले इस ग्लेशियर के नीचे सिर्फ एक छेद बना था, लेकिन अब पहले वाले छेद के अंदर कुछ दूरी पर दूसरा छेद भी बन गया है। इन छेदों के ऊपर और आसपास बड़ी-बड़ी दरारें पड़ी हैं। इससे भविष्य में आने वाले खतरे की आहट से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। पर्यावरण के जानकार इसे खतरे के संकेत बता रहे हैं। 
 

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