उत्तरकाशी: माघ मेले में आए 'कौथिगेरों' के हाथ लगी उदासी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Jan, 2018 07:15 PM

kauthiger returned upset from magh mela

पौराणिक संस्कृति का प्रतीक माने जाने वाले उत्तरकाशी के माघ मेले से लौटने वालों के चेहरे पर निराशा की झलक साफ दिखी। उत्तरकाशी का माघ मेला सदियों से धार्मिक आस्था के चलते लोकप्रिय रहा है। लेकिन इस बार माघ मेले का आयोजन जिला

उत्तरकाशी/संतोष।पौराणिक संस्कृति का प्रतीक माने जाने वाले उत्तरकाशी के माघ मेले से लौटने वालों के चेहरे पर निराशा की झलक साफ दिखी। उत्तरकाशी का माघ मेला सदियों से धार्मिक आस्था के चलते लोकप्रिय रहा है। लेकिन इस बार माघ मेले का आयोजन जिला पंचायत के हाथों मे होने की वजह से काफी अव्यवस्था रही। मेले में आने वाले कौथिगेर (मेले में आने वाले लोग) में इस बात को लेकर काफी निराशा देखने को मिली। मेले में बिचौलियों की भरमार और अव्यवस्था के चलते हुई परेशानी के खिलाफ लोगों ने अपनी नाराजगी व्यक्त की।

लोग तो यह भी पूछते दिखे कि जिला पंचायत को माघ मेले की मेजबानी सौंपने का औचित्य क्या था? इससे अच्छा था कि माघ मेले की जिम्मेदारी जिला प्रशासन को सौंपी जाती।हालांकि जिला पंचायत माघ मेले के आयोजन को लेकर अपनी पीठ थपथपाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है।

उत्तराखंड के दूरदराज इलाकों से मेले में शामिल होने आए लोगों का कहना है कि आधुनिकता के चक्कर में जिला पंचायत ने माघ मेले का बाजारीकरण कर दिया है। मेले में धार्मिक और पौराणिक संस्कृति की झलक कतई नहीं दिखाई दी। हर ओर फैशन और चकाचौंध वाली वस्तुओं का बोलबाला रहा। हर साल माघ मेला नजदीक आते ही दुकानदारों, ठेकेदारों और बिचौलियों का बोलबाला दिखाई देने लगता है।

इस बार माघ मेला अपनी सदियों पुरानी पहचान के कारण सुर्खियों में नहीं रहा, बल्कि दुकानदारों की लूटखसोट और महंगे दामों पर चीजों को बेचने की प्रवृत्ति सुर्खियों में रही। मैदान में दुकानों की संख्या बढ़ाने के लिए रास्तों की चौड़ाई कम कर दी गई थी। मेला स्थल इतना प्रदूषित रहा कि लोगों को मास्क पहनने के लिए मजबूर होना पड़ा। मेले में सरकारी स्टाल महज खानापूर्ति के लिए लगाए गए थे। जिला पंचायत ने स्टाल लगाने की जगह काफी कम कर दिया था। पूरे मेले में स्थानीय उत्पाद सिरे से गायब थे।

रेडीमेड कपड़ों और वस्तुओं की दुकानों पर पर भीड़ टूट रही थी। मेले की सदियों पुरानी परंपरा इस बार एकदम दिखाई नहीं पड़ी। वर्ष 1960 से पहले मेले में गर्म ऊनी कपड़े, गुड़,चीनी, नमक, हींग,राजमा विक्रेताओं के साथ  तिब्बत के व्यापारी आया करते थे।अब ऐसे व्यापारियों की संख्या बहुत कम रह गई है। मेले में देव डोलियों की शक्ति और धार्मिक संस्कृति के लिए एक अलग स्थान हुआ करता था, इस बार मेले में पहले दिन सिर्फ देव डोलियों को बुलाकर औपचारिकता निभाई गई।

मेले में होने वाले विभिन्न आयोजनों को लेकर गठित होने वाली समितियों में स्थानीय लोगों को नहीं रखा गया। मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम रही, लेकिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत समेत आमंत्रित शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक, सहकारिता मंत्री डॉ.धन सिंह रावत, वन मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट मेले में नहीं आये। विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल व शिक्षा मंत्री अरविंद पांडेय ही मेले में पहुंचे। 

 

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