24 का चक्रव्यूहः भाजपा प्रत्याशी को चुनौती देने के लिए सपा-बसपा ने बिछाई बिसात

Edited By Ajay kumar,Updated: 17 Apr, 2024 06:18 PM

kasganj politics of checkmate in hat trick on heritage land

पहले चरण की सीटों के लिए चुनाव प्रचार थम गया है। सत्तारूढ़ पार्टियां जहां विपक्षी पार्टियों को घेर रही हैं वहीं विपक्ष भी उन्हें वादाखिलाफी का आरोप लगा रहा है। इस बीच विपक्ष कहता है विरासत से तय नहीं होते सियासत के फैसले तो पक्ष कह रहा है कि सियासी...

कासगंज: पहले चरण की सीटों के लिए चुनाव प्रचार थम गया है। सत्तारूढ़ पार्टियां जहां विपक्षी पार्टियों को घेर रही हैं वहीं विपक्ष भी उन्हें वादाखिलाफी का आरोप लगा रहा है। इस बीच विपक्ष कहता है विरासत से तय नहीं होते सियासत के फैसले तो पक्ष कह रहा है कि सियासी जमीन तो हमने भी तैयार की है। कोई अपनी तैयार सियासी जमीन पर चुनाव जीतने का दावा कर रहा है तो पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की कर्मभूमि पर उनके पुत्र राजवीर विरासत की तैयार पिच पर सियासत की हैट्रिक मारने को आतुर दिख रहे हैं। यह हैट्रिक चुनौती पूर्ण होगी या आसान यह तो चुनाव परिणाम ही बताएगा, फिलहाल गली, गलियारों में विरासत की सियासत की चर्चा तेज है।

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पिछले एक दशक से विरासत में तब्दील हुई यहां की सियासत
प्रदेश ही नहीं बल्कि देश भर में हिंदू हृदय सम्राट की पहचान रखने वाले पूर्व मुख्यमंत्री एवं राजस्थान के पूर्व राज्यपाल स्व. कल्याण सिंह के नाम से आज भी मतदाता प्रभावित हैं। कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह एटा लोकसभा क्षेत्र सांसद हैं। पिछले एक दशक से वे अपने पिता की कर्मभूमि में सांसद की जिम्मेदारी निभा रहे हैं। एटा लोकसभा सीट पर मतदाताओं ने सांसद तो कई बदले, पुराने सांसदों को भी बार-बार मौका दिया, लेकिन एक दशक पहले ऐसा मौका आया जब यहां की सियासत विरासत में तब्दील हो गई। पूर्व सीएम कल्याण सिंह के पुत्र 2014 के बाद 2019 में भी चुनाव जीत गए और इस बार हैट्रिक लगाने को तैयार हैं। इस सीट के मतदाताओं ने 17 चुनाव में कुल 8 सांसद चुने हैं। इनमें सबसे पहले सांसद बने रोहनलाल चतुर्वेदी को चार बार, महादीपक सिंह शाक्य को पांच बार मौका दिया। महादीपक सिंह शाक्य एक बार कासगंज लोकसभा सीट पर भी चुनाव जीते। लेकिन 2009 तक हुए चुनाव में एक भी सांसद ऐसा नहीं हुआ, जिसे यह पद विरासत के तौर पर मिला हो। सभी ने अपनी सियासी जमीन बनाने में कड़ी मेहनत की।

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तीसरी बार भाजपा ने राजवीर पर ही जताया भरोसा
1989 में कांग्रेस से सलीम इकबाल शेरवानी चुनाव लड़े थे, जो भाजपा के के महादीपक सिंह शाक्य से हार गए। 2009 में में यहां निर्दलीय प्रत्याशी के रूप पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने चुनाव लड़ा। जिन्हें सपा ने समर्थन दिया था। वह आसानी से चुनाव जीत गए। उनके कार्यकाल के बाद यहां की विरासत संभालने का मौका उनके पुत्र राजवीर सिंह को मिला। भाजपा ने उन्हें टिकट दिया और वह सपा प्रत्याशी से बड़े अंतर से जीते। यह विरासत 2019 में भी कायम रही दोबारा उन्होंने सपा के देवेंद्र सिंह को हराया। 2024 में भी भाजपा ने राजवीर पर ही भरोसा जताया है और वह एटा सीट पर महादीपक सिंह शाक्य के बाद दूसरी हैट्रिक लगाने के लिए बेताब हैं। सपा ने यहां प्रत्याशी बदलकर भाजपा का विजय रथ रोकने के लिए मैनपुरी के देवेश शाक्य पर दांव लगाया है। उधर, बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी मो. इरफान मैदान में उतारकर मुस्लिम कार्ड खेला है तो सपा पहले ही मुस्लिम को अपना वोट बैंक मानती है। इस बार शाक्य प्रत्याशी उतारकर उसने नया गणित तैयार किया है। सभी के अपने आंकड़े हैं। ऐसे में गुणा, गणित का दौर तेज हो गया है।

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