'दल‍ित वोट बैंक में सेंध लगाने की जुगत में भाजपा, सपा और कांग्रेस, जिनके सहारे मायावती ने यूपी में हासिल की थी सत्ता

Edited By Ramkesh,Updated: 16 Mar, 2024 06:52 PM

bjp sp and congress trying to break into dalit vote bank

लोकसभा चुनाव 2024 की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है। देश में  543 सीटों पर सात चरण में चुनाव होगा। बात हम उत्तर प्रदेश की 80  लोकसभा सीटों की करें तो जाति समीकरण बड़ा फैक्टर होता है। 80 सीटों पर कुछ जाति का हार जीत पर  प्रभाव डालता है।...

लखनऊ: लोकसभा चुनाव 2024 की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है। देश में  543 सीटों पर सात चरण में चुनाव होगा। बात हम उत्तर प्रदेश की 80  लोकसभा सीटों की करें तो जाति समीकरण बड़ा फैक्टर होता है। 80 सीटों पर कुछ जाति का हार जीत पर  प्रभाव डालता है। प्रदेश दलित आबादी की बात करें तो 21 प्रतिशत इस समाज की है। समाजवादी पार्टी, भाजपा, कांग्रेस इस वोट बैंक में सेंधमारी की जुगत में है। जिसके सहारे मायावती ने चार बार अपनी सरकार बनाई थी।

दलित वोट बैंक को साधने के लिए सरकार चला रही योजना
दलितों को रिझाने के लिए लगातार उनके हितों की योजनाएं चलाने वाली मोदी सरकार ने अहम पदों पर दलितों को तव्वजो भी दी। नतीजा यह रहा कि 24 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से अनुसूचित जाति की 17 आरक्षित सीटों पर बसपा सहित दूसरे दलों की पकड़ ढीली होती जा रही है।

 2014 के लोकसभा चुनाव में शून्य पर सिमट  गई थी बसपा
वर्ष 2007 में सूबे में सरकार बनाने वाली बसपा वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में शून्य पर सिमट गई। पिछले चुनाव में धुर विरोधी सपा से गठबंधन कर बसपा चुनाव मैदान में उतरी तो माना गया कि गठबंधन कमाल करेगा, लेकिन तब भी बसपा को 17 में से सिर्फ दो सुरक्षित सीट लालगंज और नगीना में सफलता मिली। शेष 15 सीटों पर भाजपा ‘कमल’ खिलाने में कामयाब रही।

2019  के लोकसभा चुनाव में बसपा को मिली थी 10 सीटें
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने भाजपा को रोकने के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन किया था। हालांकि इस चुनाव में दोनो पार्टियों ने 15 सीट जीतने में सफल हुई थी, उसके बाद  मायावती और अखिलेश का गठबंधन टूट गया था।  लोकसभा चुनाव 2024 में सपा बसपा अलग- अलग लड़ रही है। ऐसे में समाजवादी पार्टी की कोशिश है कि दलित वोट बैंक को अपने साथ लिया जाए।

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटें
नगीना, बुलंदशहर, हाथरस, आगरा, शाहजहांपुर, हरदोई, मिश्रिख, मोहनलालगंज, इटावा, जालौन, कौशाम्बी, बाराबंकी, बहराइच, बांसगांव, लालगंज, मछलीशहर व राबर्ट्सगंज।

अखिलेश ने बनाई  भीमराव आंबेडकर वाहिनी
दलितों को सपा से जोड़ने के लिए अखिलेश ने बाबा साहब भीमराव आंबेडकर वाहिनी भी बनाई है। रालोद का साथ छूटने पर अखिलेश अब भीम आर्मी के संस्थापक चंद्र शेखर के जरिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलितों को अपने साथ लाने के प्रयास में थे लेकिन अभी तक दोनों नेताओं में सहमति नहीं बनी है। जबकि चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है।

राज्य की 40 सीटों पर अनुसूचित जाति  का प्रभाव
राज्य की 80 लोकसभा सीटों में से भले ही 17 ही अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं, लेकिन तकरीबन 40 सीटें ऐसी हैं जहां की 25 फीसद से ज्यादा आबादी अनुसूचित जाति की है। इनमें वे सीटें भी हैं जो आरक्षित नहीं हैं, लेकिन उन पर जीत की चाबी दलितों के हाथ में है। खीरी, सीतापुर, मिश्रिख, हरदोई, मोहनलालगंज, उन्नाव, रायबरेली, प्रतापगढ़, अमेठी, अकबरपुर, फैजाबाद, बाराबंकी, बस्ती, खलीलाबाद, आजमगढ़, लालगंज, राबर्ट्सगंज, फूलपुर, इलाहाबाद, चायल, फतेहपुर, बांदा, हमीरपुर, झांसी, घाटमपुर, बिल्हौर, इटावा, हाथरस, अलीगढ़ व सहारनपुर सीटों पर अनुसूचित जाति की ठीकठाक आबादी है।

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