UP में इस वोटबैंक के लिए पार्टियों में मची होड़

Edited By ,Updated: 28 Sep, 2016 06:08 PM

up party resembled competing in the vote bank for

उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वोटों को लुभाने के लिए पाॢटयों में होड़ मची है। 4 अहम पाॢटयों में से 3 यानी भाजपा, बसपा और कांग्रेस इस जाति के वोटरों को अपने पाले में ....

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण वोटों को लुभाने के लिए पाॢटयों में होड़ मची है। 4 अहम पाॢटयों में से 3 यानी भाजपा, बसपा और कांग्रेस इस जाति के वोटरों को अपने पाले में करने की हरसंभव कोशिश में जुटी हैं। राज्य में 11 फीसदी ब्राह्मण वोटर हैं। राज्य में मुसलमानों और दलितों के बाद इस समुदाय के सबसे ज्यादा वोटर हैं।

बसपा ने शुरू किया ब्राह्मण भाईचारा सम्मेलन
इस बार बसपा सुप्रीमो मायावती का ज्यादा फोकस दलित और मुसलमान वोटरों पर है। इसके बावजूद उनकी पार्टी ने सुरक्षित सीटों पर ब्राह्मणों को लुभाने के लिए इस समुदाय से जुड़ी 30 रैलियां करने का फैसला किया है। सोशल इंजीनियरिंग के जिस फार्मूले पर बसपा 2007 में राज्य में चुनाव जीतकर सत्ता में आई थी, वह अब पार्टी के लिए कारगर नजर नहीं आ रही है क्योंकि ब्राह्मण भाजपा की तरफ  शिफ्ट कर चुके हैं। बहरहाल, अब भी पार्टी को इस जाति के वोटों की जरूरत है। 2014 के लोकसभा चुनावों के दौरान सुरक्षित सीटों पर ठैच् का परफ ॉर्मैंस काफी खराब रहा। लिहाजा, पार्टी को लगता है कि उसे अपने दलित उम्मीदवारों को जिताने के लिए अन्य जातियों विशेष तौर पर ब्राह्मणों को अपने पाले में करने की जरूरत है। हालांकि ब्राह्मण और अन्य सवर्ण जातियों के लोग मायावती से नाखुश हैं क्योंकि वे प्रमोशन में आरक्षण का मुद्दा उठा रही हैं।

दलित, मुस्लिम के बाद ब्राह्मणों का वोटबैंक 
यू.पी. में ब्राह्मण वोटर 11 फीसदी हैं, जबकि दलित और मुसलमान वोटर क्रमश: 21 और 18 फीसदी हैं। यूपी की सत्ता पर काबिज होने के लिए ब्राह्मण वोटर निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। जब भी किसी पार्टी को यूपी में सत्ता मिली है उसमें इस समुदाय का वोट काफी महत्वपूर्ण रहा है। क्योंकि ब्राह्मण काफी जागरूक माने जाते हैं। उनका वोटबैंक तितर बितर नहीं होता है। एक रणनीति के तहत यह किसी पार्टी को अपना वोट डालते हैं। 

कांग्रेस ने भी खेला ब्राह्मण कार्ड 
ब्राह्मणों को अपने पाले में करने के लिए कांग्रेस भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रही है। इंदिरा गांधी के शासनकाल के दौरान ब्राह्मण पूरी तरह से कांग्रेस के साथ थे। कमलापति त्रिपाठी, एन.डी. तिवारी, हेमवती नंदन बहुगुणा जैसे नेता कांग्रेस का ब्राह्मण चेहरा थे। प्रशांत किशोर के गाइडैंस में कांग्रेस अब फिर से ब्राह्मणों को अपने पाले में करने में जुटी है। पार्टी ने शीला दीक्षित को सी.एम. कैंडिडेट घोषित कर ब्राह्मण कार्ड खेला है।

ब्राह्मण बड़े पैमाने पर भाजपा के साथ 
हालांकि अगर लोकसभा चुनावों को आधार मानें, तो ब्राह्मण बड़े पैमाने पर भाजपा के साथ खड़े नजर आते हैं। भाजपा ने राम मंदिर का मुद्दा बनाए रखा है। साथ ही पार्टी को लगता है कि चूंकि इस समुदाय का बसपा और कांग्रेस के साथ मोहभंग हो चुका है, लिहाजा उसके पास भाजपा का समर्थन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। भाजपा ने किसी ब्राह्मण नेता को पेश नहीं किया है, लेकिन पार्टी इस बात को लेकर सतर्क है कि वह ऐसा कोई कदम नहीं उठाए जिससे इस समुदाय के लोग उससे दूर चले जाएं।
 

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