योगी का अल्पसंख्यकों को झटका, अखिलेश की एक और योजना पर लटकी तलवार

Edited By ,Updated: 22 May, 2017 04:19 PM

yogi sarkar will end another plan of akhilesh

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार के एक और फैसले को पलटने की तैयारी में जुट गई है। दरअसल यूपी सरकार के समाज कल्याण विभाग की तमाम योजनाओं में अल्पसंख्यकों को दिया जाने वाला 20 परसेंट कोटा खत्म होगा।

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार के एक और फैसले को पलटने की तैयारी में जुट गई है। दरअसल यूपी सरकार के समाज कल्याण विभाग की तमाम योजनाओं में अल्पसंख्यकों को दिया जाने वाला 20 परसेंट कोटा खत्म होगा। समाजवादी पार्टी की सरकार ने कैबिनेट बैठक के जरिए तमाम सरकारी योजनाओं में 20 प्रतिशत कोटे को मंजूरी दी थी। इसके लिए विशेष गाइडलाइन जारी की गई थी।

इस बाबत समाज कल्याण मंत्री रमापति शास्त्री ने कहा, ‘तुष्टिकरण के नाम पर योजनाओं में कोटा देना उचित नहीं है। हम इसे खत्म करने के पक्षधर हैं। सरकार बगैर भेदभाव के सभी वर्गो के विकास की पक्षधर है। समाज कल्याण विभाग की योजनाओं में आरक्षण खत्म करने के लिये एक प्रस्ताव जल्द ही मंत्रिमंडल के सामने पेश किया जायेगा।’

गौरतलब है कि कुल 85 सरकारी योजनाओं में अल्पसंख्यकों को 20 प्रतिशत कोटे का लाभ दिया जा रहा है। इनमें सबसे ज्यादा योजनाएं समाज कल्याण और ग्रामीण विकास विभाग से संबधित है। कृषि, गन्ना विकास, लघु सिंचाई, उद्यान, कृषि विपणन, ग्रामीण विकास, पंचायती राज, चिकित्सा एंव स्वास्थ्य, सिंचाई, ऊर्जा, लघु उद्योग, खादी ग्राम उद्योग, सिल्क डेवलपमेंट, पर्यटन, शिक्षा नगरीय रोजगार एवं गरीबी उन्मूलन जैसी तमाम योजनाओं में कोटा का लाभ अल्पसंख्यकों को मिल रहा था। 

वक्फ राज्यमंत्री मोहसिन रजा ने कहा कि पिछली सरकार ने योजनाओं में कोटा देकर भेदभाव किया। योजनाओं में सभी का हक बराबर है। उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि योजनाओं में कोटे का कोई मतलब नहीं है। योजनाएं सभी के विकास के लिए होती हैं। वर्ष 2012 में राज्य की सत्ता संभालने के बाद अखिलेश सरकार ने अल्पसंयकों को सरकारी योजनाओं में आरक्षण का यह फैसला नेशनल सैंपल सर्वे की रिपोर्टों के बाद लिया था। सर्वे की रिपोर्टों में धार्मिक समूहों में रोजगार और बेरोजगारी की स्थिति को आधार बनाया गया था।

 रिपोर्ट में कहा गया था कि मुसलमानों का औसत प्रति व्यक्ति खर्च रोजाना सिर्फ 32.66 रुपये है। ग्रामीण क्षेत्रों में मुसलमान परिवारों का औसत मासिक खर्च 833 रुपये, जबकि ङ्क्षहदुओं का 888, ईसाइयों का 1296 और सिखों का 1498 रुपये बताया गया था। शहरी इलाकों में मुसलमानों का प्रति परिवार खर्च 1272 रुपये था जबकि ङ्क्षहदुओं का 1797, ईसाइयों का 2053 और सिखों का 2180 रुपये था। 

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