83 बार हारने बाद भी कम नहीं हुआ इस शख्स का हौसला, फिर किया नामांकन

Edited By ,Updated: 20 Jan, 2017 07:28 PM

time has not diminished even after losing 83 of the sks proved

एक बार चुनाव हारने पर जहां लोग हाथ खड़े कर देते हैं वहीं आगरा के रहने वाले हसनू राम का हौंसला 83 बार हारने बाद भी कम नहीं हुआ है।

आगरा(बृज भूषण): एक बार चुनाव हारने पर जहां लोग हाथ खड़े कर देते हैं वहीं आगरा के रहने वाले हसनू राम का हौसला 83 बार हारने बाद भी कम नहीं हुआ है। सबसे बड़ी बात ये है कि इस शख्स ने अभी तक एक भी चुनाव नहीं जीता है। चाहे नगर निगम का चुनाव हो, या फिर विधानसभा और लोकसभा का चुनाव हसनू हर बार अपना पर्चा दाखिल करने आते है। इस बार हसनू दो विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे हैं। सबसे ज्यादा 366600 मत उन्हें 1986 में फीरोजाबाद लोकसभा चुनाव में साइकिल के चुनाव चिन्ह पर लड़कर मिले थे। अभी भी लगातार हार के बावजूद उनका हौंसला कम नहीं हुआ और आखिरी इच्छा राष्ट्रपति चुनाव लडऩे की जताई है। 

1984 में पहली बार लड़ा चुनाव
खेती और राजमिस्त्री का काम करने वाले चौथी कक्षा पास 70 वर्षीय हसनूराम ने 1984 में पहली बार आगरा के खेरागढ़ से निर्दलीय चुनाव लड़ा था जिसमें उन्हें 16800 मत प्राप्त हुए, लेकिन वह हार गए। तब से शुरू हुआ हार का सिलसिला अब भी जारी है। 

नागरिक अधिकार का कर रहा हूं इस्तेमाल-हसनू राम अम्बेडकरी
हसनू का कहना है कि वह तो अपने नागरिक अधिकार का इस्तेमाल कर रहे हैं। वो 1974 से वामसेफ के जिला संयोजक थे, लेकिन जब उन्होंने चुनाव लडऩे के लिए टिकट मांगी तो उनको अपशब्द कहकर वामसेफ ने टिकट के लिए मना कर दिया। तब हसनू ने सोचा कि आम आदमी और सामान्य आमदनी के साथ समाज में मेरा कोई रुतबा नहीं था लेकिन मैं चुनाव तो लड़ ही सकता था।

33 साल से चल रहा हार का सिलसिला 
सन 1984 के चुनाव में हसनू हार गए। उसके बाद फिर 1986 में लोकसभा चुनाव फिरोजबाद से लड़े, जिसमें उनका चुनाव चिन्ह साइकिल था। इस बार उन्हें 36600 वोट मिले। लेकिन तब सपा आस्तित्व में ही नहीं थी। उसके बाद भी चुनाव लडऩे का सिलसिला रुका नहीं, वो फिर लड़े, फिर हारे, उसके बाद फिर लड़े, फिर हारे... सिलसिला 33 साल से चल रहा है। उन्होंने वार्ड पंचायत सदस्य से लेकर विधानसभा और लोकसभा तक का चुनाव लड़ा है। 

राष्ट्रपति चुनाव के लिए भी किया आवेदन
हसनू ने 1988 में राष्ट्रपति के चुनाव के लिए भी आवेदन किया था लेकिन आवेदन खारिज हो गया था। तब उन्हें यह भी उम्मीद जगी कि एक दिन वह जीत हासिल कर सकते हैं। हसनू का कहना है कि "मैं तो सिर्फ यह चाहता हूं कि लोग ज्यादा से ज्यादा चुनावों में हिस्सा लें। यह तो लोगों में जागरूकता पैदा करने की कोशिश है।

83 बार चुनाव लड़ चुके हैं चुनाव 
अभी तक हसनू राम 10 बार फिरोजाबाद लोकसभा, 6 बार आगरा लोकसभा, 10 बार विधानसभा चुनाव खेरागढ़ से, 6 बार फतेहपुर सीकरी, 6 बार दयालबाग और अन्य चुनावों सहित 83 बार चुनाव लड़ चुके हैं। लेकिन अभी तक हर चुनाव में हार का ही सामना करना पड़ा है। उन्हें आखिरी विधानसभा चुनाव में 4600 मत सबसे कम वोट मिले हैं। 

15 अगस्त 1947 को हुआ जन्म 
हसनू का जन्म 15 अगस्त 1947 को एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। जिसका नाम हसनू रखा गया। बचपन में हंसते ज्यादा थे इसलिए उनका नाम हसनू ही पड़ गया। जब उनका स्कूल में जाना शुरू हुआ तब उनके नाम के साथ राम जुड़ गया और बड़े होकर वो डॉक्टर अम्बेडकर की विचारधारा से प्रभावित हो गए तो वो अम्बेडकरी कहलाने लगे। उन्होंने बताया उनकी आखिरी इच्छा राष्ट्रपति का चुनाव लडऩे की है।

हारने के रिकार्ड से हैं काफी दूर 
हसनू राम चुनाव हारने वालों में सबसे बड़ा नाम बनते जा रहे हैं। हालांकि यह रिकॉर्ड काका जोगिंदर सिंह उर्फ धरती पकड़ के नाम है, जो 300 से ज्यादा चुनाव हार चुके हैं, उनकी 1998 में मौत हो गई थी। अब देखने वाली बात है कि हसनू काका जोगिंदर सिंह के रिकॉर्ड को तोड़ पाते है या नहीं।

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