67वीं पुण्यतिथि पर याद किए गए लौह पुरुष

Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 Dec, 2017 01:17 PM

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सादगी,नम्रता और पक्के इरादों की प्रतिमूर्ति महान स्वतंत्रता सेनानी सरदार बल्लभ भाई पटेल की 67वीं पुण्यतिथि पर कृतज्ञ उत्तर प्रदेश ने उन्हे भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित की।  राजधानी लखनऊ में जीपीओ स्थित सरदार पटेल की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया।

जौनपुर: सादगी,नम्रता और पक्के इरादों की प्रतिमूर्ति महान स्वतंत्रता सेनानी सरदार बल्लभ भाई पटेल की 67वीं पुण्यतिथि पर कृतज्ञ उत्तर प्रदेश ने उन्हे भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित की।  राजधानी लखनऊ में जीपीओ स्थित सरदार पटेल की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया। शहर के विभिन्न स्थानों पर इस मौके पर आयोजित संगोष्ठियों में लौहपुरूष के व्यक्तित्व को याद किया गया। कानपुर,इलाहाबाद,वाराणसी,आगरा और जौनपुर समेत लगभग समूचे उत्तर प्रदेश में प्रार्थनासभायें आयोजित की गई और प्रभात फेरी निकाल कर आजादी के नायक के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की गयी।  जौनपुर के सरांवा गांव में स्थित शहीद स्मारक पर आज हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपिलकन आर्मी एवं लक्ष्मीबाई ब्रिगेड के कार्यकर्ताओं ने मोमबत्ती एवं अगरबत्ती जलाकर उन्हें अपनी श्रंद्धाजलि दी।  

लक्ष्मीबाई ब्रिगेड की अध्यक्ष मंजीत कौर ने कहा कि लौह पुरुष के तौर पर जाने जानेवाले सरदार बल्लभ भाई पटेल के महान कार्यों के लिए आज पूरा देश उनका ऋणी है।   सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाड में हुआ था। उनके पिता झावेरभाई किसान थे और मां लाडबाई साधारण महिला थीं। सरदार बल्लभ की प्रारंभिक शिक्षा करमसद में हुई। बल्लभाई पटेल का विवाह झबेरबा से हुआ। सरदार पटेल को उनके बड़े भाई ने बैरिस्टरी पढऩे के लिए भेजा। वहां से वे 1913 में भारत लौटे और फिर अहमदाबाद में उन्होंने वकालत करना शुरू किया।  सरदार बल्लभ भाई पटेल ने महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर देश के स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया। 

स्वतंत्रता संग्राम में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी और भारत की आकाादी के बाद वो देश के प्रथम गृह मंत्री व उप प्रधानमंत्री बने थे। बारदौली कस्बे में काोरदार एवं सशक्त सत्याग्रह करने के बाद उन्हें सरदार कहा जाने लगा और इस तरह वो सरदार पटेल बनें। आकाादी के बाद विभिन्न रियासतों में बनते भारत को एक सूत्र में पिरोने का काम भी सरदार पटेल ने बखूबी किया और उसके बाद ही उन्हें लौह पुरुष भी कहा जाने लगा। 15 दिसंबर 1950 को उन्होने दुनिया को अलविदा कह दिया था। 

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