यूपी की चुनावी जंग में सबकी नजर इस वोट बैंक पर

Edited By ,Updated: 19 Jan, 2017 03:09 PM

all eyes on the vote in the electoral battle in up

उत्तर प्रदेश राज्य विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटों का विभाजन रोकने की कवायद में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस गठबंधन की तरफ कदम बढ़ा चुके हैं......

लखनऊ: उत्तर प्रदेश राज्य विधानसभा चुनाव में मुस्लिम वोटों का विभाजन रोकने की कवायद में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस गठबंधन की तरफ कदम बढ़ा चुके हैं मगर 11 फरवरी को शुरू होने वाले मतदान में सूबे की ब्राह्मण बिरादरी किसी भी राजनैतिक दल को सत्ता की आखिरी पायदान तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाने के लिये कमर कस चुकी है। 

सत्ता की चाभी थमाने में सवर्ण का अहम योगदान
गोविंद बल्लभ पंत ग्रामीण विकास अध्य्यन संस्थान के डॉ. एसपी पांडेय ने आज यहां कहा, ‘दशकों से जातिगत राजनीति के लिये माने जाने वाले इस राज्य का इतिहास रहा है कि यहां कोई भी दल सिर्फ अपने वर्ग विशेष के वोट की बदौलत नहीं जीत सका है। जीत के लिये समाज के अन्य वर्गो के समर्थन की जरूरत हर पार्टी को पड़ती रही है। पिछले दो विधानसभा चुनाव में सत्ता की चाभी थमाने में सवर्ण वर्ग का अहम योगदान रहा है और इसमें ब्राह्मण की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।’

मायावती की सरकार बनाने में निभाई अहम भूमिका
वर्ष 2007 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के टिकट पर 41 ब्राह्मण उम्मीदवार चुनाव जीते और मायावती की सरकार बनाने की राह आसान की। वर्ष 2012 में भी ब्राह्मणों का सिक्का खूब चला। सपा प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरे 21 ब्राह्मणों ने विधानसभा की देहरी लांघ कर सपा को पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने मे मदद की। इस चुनाव में बसपा के सिर्फ 10 ब्राह्मण उम्मीदवार जीत का स्वाद चख सके। इस दरम्यान दो बड़े राजनीतिक दलों कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के टिकट पर ताल ठोकने वाले ब्राह्मण उम्मीदवारों की जीत का ग्राफ गिरता रहा। वर्ष 1993 के चुनाव में भाजपा के 17 ब्राह्मण प्रत्याशी चुनाव जीते जबकि 1996 में यह तादाद घट कर 14 रह गयी। वर्ष 2002 में भाजपा के महज तीन विधायकों ने विधानसभा में अपनी आमद दर्ज करायी हालांकि पिछले चुनाव में भाजपा के छह उम्मीदवारों ने अपनी सीट पक्की की।  

भाजपा की तरह कांग्रेस का भी झुकाव
भाजपा की तरह कांग्रेस के प्रति भी इस वर्ग का झुकाव जुदा नहीं रहा। पिछले दो दशकों के दौरान सूबे में सबसे ज्यादा पांच ब्राह्मण विधायकों ने कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा का मुंह देखा जबकि 1996 में यह संख्या घट कर चार रह गयी। 2002 में राज्य विधानसभा में कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता प्रमोद तिवारी पार्टी का इकलौता ब्राह्मण चेहरा था। वर्ष 2007 और 2012 में दो दो ब्राह्मण प्रत्याशियों ने कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की। 

ब्राह्मणों की भागीदारी 13 फीसदी
पांडेय ने कहा कि मतों के लिहाज से राज्य में ब्राह्मणों की भागीदारी 13 फीसदी है। अन्य पिछड़ी जाति और दलित राजनीति से इतर ब्राह्मण मतदाता बड़ी ही सूझबूझ से अपना समर्थन एक से दूसरे दल को देता रहा है। वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव इस प्रत्यक्ष गवाह है जब ब्राह्मणों के व्यापक समर्थन की बदौलत केन्द्र में भाजपा नेतृत्व की सरकार का गठन हुआ। ब्राह्मणों के बढ़ते प्रभुत्व का असर है जब तकरीबन हर बडे दल ने चुनाव में किसी न किसी ब्राह्मण को चेहरा बनाया है। कांग्रेस ने शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री प्रत्याशी बनाया है जबकि परिवर्तन यात्रा के दौरान चार बड़े नामों में एक कलराज मिश्र ने बड़ी भूमिका निभायी थी। बसपा के पास सतीश मिश्रा के तौर पर बड़ा ब्राह्मण चेहरा है जबकि मनोज पांडे के तौर पर सपा ने ब्राह्मण उम्मीदवार को अहमियत दी है। उन्होंने कहा कि इस बार भी ब्राह्मण समुदाय बड़ी भूमिका निभाने को तैयार है। ब्राह्मणों के लिये कल्याणकारी योजनाये अपने घोषणापत्र में शामिल किये जाने वाले दलों के अनुकूल परिणाम देखने को मिलेंगे।

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