कौएद का बसपा में विलय: अखिलेश को नुकसान या मायावती को फायदा?

Edited By ,Updated: 31 Jan, 2017 06:30 PM

the bsp kauad merger akhilesh her benefit or harm

इसमें कोई शक नहीं कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती राजनीतिक और वैचारिक रूप से नदी के दो किनारे हैं, लेकिन...

लखनउ: इसमें कोई शक नहीं कि सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती राजनीतिक और वैचारिक रूप से नदी के दो किनारे हैं, लेकिन माफिया-राजनेता मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल (कौएद) के बसपा में विलय समेत हाल के घटनाक्रम ने इन दोनों नेताओं की व्यक्तिगत छवि को भी आंकलन के लिए जनता के सामने रख दिया है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अंसारी के कौएद को सपा में विलीन किए जाने पर अपने ही चाचा शिवपाल यादव और पिता मुलायम सिंह यादव के फैंसले का डटकर विरोध किया था।

सपा सरकार को घेरने का कोई भी मौका न छोड़ने वाली मायावती को कौएद के बसपा में विलय होने पर कोई हिचक महसूस नही हो रही। अखिलेश एक एेसी पार्टी से हैं, जिस पर अक्सर गुंडों, बदमाशों और अन्य अपराधियों को शरण देने का आरोप लगता रहा है। लेकिन उन्होंने वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में एक और माफिया-राजनेता डी. पी. यादव को सपा में टिकट  देने से इनकार कर लोगों की नजरों में उनकी एक अलग छवि बना ली थी।  कौएद का पूर्वांचल के कुछ जिलों में खासा दबदबा माना जाता है। सपा संस्थापक मुलायम भी इस पार्टी की इस खूबी के कारण इसे सपा का हिस्सा बनाना चाहते थे। दूसरी आेर, ‘चढ़ गुंडों की छाती पर, मुहर लगाएं हाथी पर’ का नारा देने वाली बसपा की मुखिया ने ना सिर्फ कौएद का बसपा में विलय करवाया है, बल्कि उन्हें तीन टिकटें भी दें दी हैं। मऊ में माफिया मुख्तार का नाम भी शामिल किया गया है। अब इसे वक्त का तकाजा कहें या फिर मजबूरी, लेकिन मायावती के इस कदम ने उनके कट्टर समर्थकों को भी चौंका दिया है।

बसपा नेताआें का मानना है कि अगर अंसारी परिवार के प्रभाव की वजह से पूर्वांंचल में हर सीट पर पार्टी के खाते में 5000 से 10 हजार तक वोट जुड़ जाए तो पार्टी के लिए यह जबर्दस्त कामयाबी होगी। यह भी माना जा रहा है कि मायावती ने अंसारी बंधुआें को बसपा में शामिल करके यह संदेश देने की कोशिश की है कि अखिलेश मुस्लिम विरोधी हैं, और बसपा ही इस कौम की सच्ची रहनुमा है। कौएद का पूर्वांंचल की घोसी, मउ, सैदपुर, मोहम्मदाबाद, बलिया, जमानियां, गाजीपुर, मुगलसराय, वाराणसी दक्षिण, सेवापुरी, वाराणसी छावनी तथा वाराणसी उत्तर सीट पर प्रभाव माना जाता है। 

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