सचिवालय के अंदर ही शुरू हो गया CM त्रिवेन्द्र के दावों का पोस्टमार्टम

Edited By Punjab Kesari,Updated: 21 Apr, 2018 06:09 PM

postmortem commencement of claims of cm in secretariat

मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह ने स्पष्ट किया है कि प्रदेश हित में यदि उन्हें कोई फैसला बदलना पड़ता है तो वह उसे बदल देंगे। एक बार नहीं, दो बार नहीं बल्कि यह गलती वह बार-बार करेंगे। उनके लिए राज्य हित सर्वोपरि है। उन्होंने यह भी साफ किया है कि किसी भी...

देहरादून: मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह ने स्पष्ट किया है कि प्रदेश हित में यदि उन्हें कोई फैसला बदलना पड़ता है तो वह उसे बदल देंगे। एक बार नहीं, दो बार नहीं बल्कि यह गलती वह बार-बार करेंगे। उनके लिए राज्य हित सर्वोपरि है। उन्होंने यह भी साफ किया है कि किसी भी माफिया या सिंडीकेट के दबाव में कोई फैसला नहीं बदला गया है। सीएम के इस दावे का एक दूसरा पहलू भी है। बेशक कुछ फैसलों पर उनका यू टर्न लेना प्रदेश के हित में गया है परंतु तमाम ऐसे निर्णय हैं जो अहसास कराते हैं कि इसके सियासी मायने हैं और कुछ लोगों को बचाने के लिए पुराने फैसलों पर यू टर्न लिया गया है।

 

सचिवालय के अंदर ही सीएम के दावों का पोस्टमार्टम शुरू हो गया है। पहले एनएच 74 घोटाले पर चलते हैं। तीन सौ करोड़ से अधिक के इस घोटाले में 18 लोगों के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है और आधा दर्जन से अधिक लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने की तैयारी चल रही है। परंतु अब तक इस मामले में पीसीएस अधिकारी से ऊपर के किसी भी अधिकारी की गिरफ्तारी नहीं हो पायी। नेताओं और नौकरशाहों की तो बात ही छोडिय़े राष्ट्रीय राजपथ के कमर्चारियों तक भी पुलिस नहीं पहुंच पाई। सवाल यह है कि कमिश्नर कुमाऊं की जांच रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में क्यों डाला गया। जांच रिपोर्ट में सीबीआई जांच की संस्तुति की गयी है।

 

जिसका आधार यह बनाया गया था कि घोटाले में कई बड़े अफसर और नेताओं की संलिप्तता हो सकती है। लोकल पुलिस उनके खिलाफ कार्रवाई की हिम्मत नहीं जुटा पायेगी। इसी आधार पर सीएम ने सीबीआई जांच की सिफारिश भी कर दी। लेकिन सिर्फ केन्द्रीय परिवहन मंत्री के कहने पर सीबीआई जांच खारिज कर दी गयी। और वह भी इस तर्क के कारण कि सीबीआई जांच से एनएच अधिकारियों का मनोबल गिरेगा और इससे उत्तराखंड में नेशनल हाईवे के निर्माण कार्य रुक जाएंगे। इसी चेतावनी के बाद मुख्यमंत्री ने सीबीआई जांच की मांग पर चुप्पी साध ली  और एसआईटी गठित कर दी।

 

पहले सीबीआई जांच का दावा करना और फिर केन्द्रीय मंत्री की चेतावनी के बाद इस जांच को रोककर एसआईटी से जांच कराने  से प्रदेश  का कौन सा हित हुआ है यह सवाल अभी भी खड़ा है। जबकि शीशे की तरह साफ है कि एसआईटी की जांच पीछे की ओर जा रही है। कुछ पीसीएस अधिकारियों और पटवारियों की गिरफ्तारी के बाद वह किसानों की गिरफ्तारी में लगी है और सरकारी गवाह बनाकर इस मामले की तफ्तीश को बंद करना चाहती है। ऐसा ही मसला है मृत्युंजय मिश्र की तैनाती और उसे हटाने का। करीब डेढ़ साल पहले एक ताकतवर नौकरशाह की मदद से मृत्युंजय मिश्र सचिवालय तक पहुंच गये थे।

 

मूल रूप से शिक्षा विभाग का यह शिक्षक आयुष विभाग के रास्ते सचिवालय तक पहुंच गया। सचिवालय कमर्चारी संघ ने जब शासन के इस निर्णय का विरोध किया तो उसी ताकतवर नौकरशाह की मदद से मिश्रा को दिल्ली में अपर स्यानीय आयुक्त बना दिया गया। कुछ दिन पहले चुपके से उसे फिर से आयुष विभाग के अधीन आयुष विवि में कुल सचिव क पद पर ज्वाइन करा दिया गया।राजनीति का शिक्षक रहा यह शख्स कैसे आयुष विभाग में पहुंचा और कैसे अपर स्थानीय आयुक्त बन गया वह कहानी अपने आप में रहस्य है। आयुष विभाग में दोबारा उसकी वापसी का विरोध हुआ तो शुक्रवार को मुख्यमंत्री के आदेश पर मृत्युंजय मिश्रा को आनन-फानन में आयुष विवि के कुल सचिव के पद से हटा दिया गया। 

 

ऊपर से यह एक कठोर फैसला लगता है। ऐसा प्रचारित किया जा रहा है कि नियम विरुद्ध हुई तैनाती का मामला संज्ञान में आते ही सीएम ने सख्ती दिखाई और मृत्युंजय मिश्रा को वहां से हटना पड़ा। पर सचिवालय के सूत्रों का कहना है कि इसके पीछे एक बड़ा खेल हुआ है। दरअसल मिश्रा खुद आयुष विवि में नहीं रहना चाहते हैं।  उनका अंतिम लक्ष्य सचिवालय है। इस कारण आयुष विवि से हटाकर सचिवालय में उन्हें पदस्थापित करने की प्लानिंग तैयार की गयी है। संभव है कि एक दो दिन में वह सचिवालय में फिर से बैठने लगें। क्या सीएम के इस निर्णय को प्रदेश हित में लिया गया फैसला कहा जा सकता है। एनएच 74 और मृत्युंजय मिश्रा की तैनाती जैसे मामले सीएम  के दावों की हकीकत पर सवाल खड़े कर रहे हैं।

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