हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के लिए शुरु की नई पहल, विशेषज्ञों के द्वारा दिया जा रहा प्रशिक्षण

Edited By Punjab Kesari,Updated: 27 Feb, 2018 04:27 PM

उत्तराखंड के हस्तशिल्प को बढ़ावा देने और इसे स्वरोजगार से जोड़ने के लिए रुद्रप्रयाग जिले में एक नई पहल शुरु हुई है। यहां पर अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों को हस्तशिल्प का विशेष प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसमें रिंगाल की टोकरियों को तैयार किया जा रहा है।

रुद्रप्रयाग(भूपेन्द्र भंडारी): उत्तराखंड के हस्तशिल्प को बढ़ावा देने और इसे स्वरोजगार से जोड़ने के लिए रुद्रप्रयाग जिले में एक नई पहल शुरु हुई है। यहां पर अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों को हस्तशिल्प का विशेष प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसमें रिंगाल की टोकरियों को तैयार किया जा रहा है। यह टोकरियां बद्रीनाथ और केदारनाथ में प्रसाद देने के लिए उपयोग में लाई जाएंगी और भारी संख्या में इन टोकरियों को मंदिर समिति प्रशासन के द्वारा खरीदा जाएगा। 

विशेषज्ञों के द्वारा दिया जा रहा प्रशिक्षण 
भारत सरकार के हस्तशिल्प वस्त्र मंत्रालय के सहयोग जिला उद्योग केंद्र इन विशेष प्रशिक्षण को विशेषज्ञों के माध्यम से करवाया जा रहा है। राज्य की लुप्त हो चुकी हस्तशिल्प को इस योजना के द्वारा बढ़ावा दिया जा रहा है और रोजगार के प्रमुख साधन के तौर पर बेरोजगारों को इससे जोड़ा जा रहा है। हस्तशिल्प के द्वारा रोजगार अपनाने वाले लोग भी इससे खुश है और इसे अपनी आमदनी का प्रमुख स्रोत मान रहे है। 
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चारधाम के साथ-साथ अन्य मंदिरों में पहुंचाने के प्रयास 
योजना के अन्तर्गत 3 महीने के प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षुओं को 11 हजार रुपए की धनराशि और टूल बाक्स दिया जा रहा है। इससे प्रशिक्षु टोकरियों का आसानी से निर्माण कर सकेंगे। बता दें कि राज्य में चारधाम के अतिरिक्त अन्य प्रमुख 665 मंदिरों में भी स्थानीय उत्पाद से बनने वाली इन टोकरियों को पहुंचाने के प्रयास चल रहें हैं। टोकरी निर्माण के प्रशिक्षकों का कहना है कि इससे हमारी हस्तशिल्प कला पुनर्जीवीत तो होगी ही, इसके साथ ही बेरोजगार लोगों के लिए स्वनरोजगार का बड़ा साधन बनेगा।

पहले भी कई योजनाएं की गई संचालित 
राज्य में हस्तशिल्प कला को संरक्षित करने के लिए कई योजनाएं संचालित की गई लेकिन कोई भी योजना धरातल पर नहीं उतर पाई। इसका बड़ा कारण उचित बाजार का ना मिल पाना रहा। इस बार की योजना सफल होगी। इसका कारण यह है कि इन उत्पादों को चारधामों के साथ-साथ अन्य मंदिरों में भी प्रसाद के लिए प्रयोग किया जाएगा। इसके लिए लाखों मांगें भी हस्त शिल्पियों को मिलनी शुरु हो गई है।  
 


 

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