Edited By Ruby,Updated: 12 Apr, 2019 09:52 AM
प्रयागराजः लोकतंत्र के महाकुंभ लोकसभा चुनाव प्रचार में अब प्रतिद्वन्दियों के प्रति पहले की तरह सम्मान बहुत कम दिखाई पड़ता है। आजादी के बाद हुए लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान एक दूसरे के विरोधी आमने-सामने होने पर छोटे-बड़े का आदर- स..
प्रयागराजः लोकतंत्र के महाकुंभ लोकसभा चुनाव प्रचार में अब प्रतिद्वन्दियों के प्रति पहले की तरह सम्मान बहुत कम दिखाई पड़ता है। आजादी के बाद हुए लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान एक दूसरे के विरोधी आमने-सामने होने पर छोटे-बड़े का आदर- सम्मान करना नहीं भूलते थे।
राजनीतिज्ञों का मानना है कि तब और अब की राजनीति में जमीन आसमान का अन्तर है। उस दौर में प्रत्याशियों के कर्म, व्यवहार और चरित्र पर मतदान होता था। वर्तमान दौर में जाति-धर्म की राजनीति चल रही है। अपराधी छवि और पूंजीपति चुनाव में भाग्य आजमाते हैं। तब अपराधी छवि वाले को कोई भी दल अपना प्रत्याशी नहीं बनाता था।
ईमानदार और समाजसेवी व्यक्ति ही प्रत्याशी के लिए योग्य समझा जाता था। प्रत्याशी एक-एक मत के लिए मतदाताओं के दरवाजे पहुंचते थे। कई बार प्रतिद्वन्दियों के आमने-सामने होने के बाद उनमें एक दूसरे के प्रति प्रेम और उदारता देख मतदाता स्वयं भ्रमित हो जाते थे। कांग्रेस से चार बार सांसद रह चुके राम निहोर राकेश ने बताया कि पहले की राजनीति अलग थी। विपक्षी भी प्रतिद्वन्दी को अपना दुश्मन नहीं मानते थे। तब मानवता थी, सत्ता की हनक नहीं थी। प्रत्याशियों में ‘‘मतभेद होता था लेकिन मनभेद नहीं’’ रहता था लेकिन आज की परिस्थिति ठीक इसके विपरीत है।