24 का चक्रव्यूहः बरेली में पहले जातिगत समीकरण फिर नए वोटरों पर पार्टियों की नजर

Edited By Ajay kumar,Updated: 07 Apr, 2024 09:04 AM

first the caste equation in bareilly then the parties  eyes on new voters

लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा और सपा-कांग्रेस के खेमे में रणनीति बननी शुरू हो गई है। यह चुनाव भी अंततः धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण पर केंद्रित होने की संभावनाओं के बावजूद दोनों तरफ से जातिगत समीकरण साधने पर जोर है।

बरेली: लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा और सपा-कांग्रेस के खेमे में रणनीति बननी शुरू हो गई है। यह चुनाव भी अंततः धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण पर केंद्रित होने की संभावनाओं के बावजूद दोनों तरफ से जातिगत समीकरण साधने पर जोर है। करीब 84 हजार उन नए वोटरों पर भी नजर हैं जिनमें 28 से ज्यादा युवा और 50 हजार से ज्यादा महिलाएं हैं। भाजपा और सपा की रणनीति में बसपा के संभावित प्रदर्शन का भी ख्याल रखा जा रहा है।

जानिए क्या है वोटों का समीकरण
करीब 84 हजार वोट बढ़ने के बाद बरेली लोकसभा क्षेत्र में इस बार वोटरों की कुल संख्या 18 लाख 97 हजार तक पहुंच संसदीय क्षेत्र में अनुमानित गई है। तौर पर सर्वाधिक करीब साढ़े पांच लाख संख्या मुस्लिम मतदाताओं मुस्लिम वोटों के बाद दूसरे की है। नंबर पर सर्वाधिक वोटर कुर्मी बिरादरी के हैं जिनकी अनुमानित संख्या करीब तीन लाख है। इसके अलावा दलित मतदाता लगभग दो लाख, और शाक्य सवा लाख, कश्यप हजार, यादव 80 हजार, कायस्थ 65 हजार, पंजाबी 50 हजार ब्राह्मण एक लाख से ज्यादा हैं।

मुस्लिम वोटरों पर दावा कर रही सपा- कांग्रेस, भाजपा ने कहा- तीन तलाक कानून से महिलाएं खुश 
सपा और कांग्रेस मुस्लिम वोटरों पर दावा तो कर रही है लेकिन जिस तरह निकाय चुनाव में शहर के मुस्लिम बहुल इलाकों में उमेश गौतम को अच्छे-खासे वोट मिले, उसे देखते हुए भाजपा लोकसभा चुनाव में भी आशान्वित है। इसके अलावा समाजवादी पार्टी के नेता यादव मतदाताओं को लेकर लगभग निश्चिंत है। इसके अलावा कायस्थ, ब्राह्मण और मौर्य-शाक्य बिरादरी में भी अच्छे वोट मिलने की उम्मीद जता रहे हैं। दूसरी ओर भाजपा की रणनीति ज्यादा से ज्यादा ध्रुवीकरण के साथ सपा के परंपरागत वोटों पर भी हाथ साफ करने की है।

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2019 में सपा-बसपा गठबंधन के बाद भी चुनाव जीती थी भाजपा
पिछले दो चुनाव में भाजपा ने इसी रणनीति के तहत काफी अंतर से चुनाव जीते हैं। लोकसभा चुनाव 2019 में सपा-बसपा गठबंधन के बाद भी भाजपा चुनाव जीती थी। लेकिन इस बार फर्क यह है कि चुनाव मैदान में आठ बार के सांसद संतोष गंगवार की जगह बहेड़ी के पूर्व विधायक छत्रपाल सिंह गंगवार मैदान में हैं। इसलिए हाईकमान ने बरेली को उन सीटों में शामिल किया है जहां उसे ज्यादा जोर- आजमाइश करनी पड़ेगी। हालांकि बसपा की तुलना में बरेली में कांग्रेस काफी कमजोर स्थिति में है। इसे भाजपा के लिए थोड़ी राहत की बात भी माना जा रहा है।

क्या हैं दोनों पार्टयों की उम्मीदें
सपा के रणनीतिकारों का मानना है कि इस बार लोकसभा चुनाव में परिस्थितियां उसके अनुकूल है। भाजपा से नाराज वोटर उसकी तरफ आएगा और बसपा प्रत्याशी भी भाजपा को ही नुकसान पहुंचाएगा। मुस्लिम, यादव, कायस्थ, मौर्य और कुछ ब्राहमण वोटों को सपा अपनी जीत का आधार मान रही है। वहीं भाजपा का दावा है कि उसने तीन तलाक जैसे कानून को खत्म किया है। इससे मुस्लिम महिलाओं का यकीन भाजपा में बढ़ा है। मुस्लिम मतदाता भी इस बार भाजपा से परहेज नहीं करेंगे। बसपा दलित और मुस्लिम वोट पाने का दावा कर रही है। इससे सपा के प्रत्याशी को नुकसान होना तय है।

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