Edited By Ajay kumar,Updated: 23 Apr, 2024 04:04 PM
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में न्यायिक प्रक्रिया को मजाक समझने वाले लोगों के प्रति कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि नतीजों से जरा भी डरे बिना अदालतों पर आरोप लगाने की प्रवृत्ति को न्याय प्रशासन के व्यापक हित में नहीं देखा जा सकता है। इसे...
प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में न्यायिक प्रक्रिया को मजाक समझने वाले लोगों के प्रति कड़ा रुख अपनाते हुए कहा कि नतीजों से जरा भी डरे बिना अदालतों पर आरोप लगाने की प्रवृत्ति को न्याय प्रशासन के व्यापक हित में नहीं देखा जा सकता है। इसे सख्ती से खत्म किया जाना चाहिए।
इसे सख्ती से खत्म किए जाना चाहिएः इलाहाबाद हाईकोर्ट
कोर्ट ने अपने आदेश में आगे कहा कि जिन आरोपों के आधार पर मामले के स्थानांतरण की मांग की जाती है, वे नागरिकों के बीच न्यायालय के अधिकार और नैतिक ईमानदारी को खराब दृष्टि से देखने की प्रवृत्ति को प्रतिबिंबित करते हैं, जिससे न्याय व्यवस्था को नुकसान पहुंचता है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की एकलपीठ ने अलियारी नामक महिला की पुनरीक्षण याचिका को 20 हजार रुपए के जुर्माने के साथ खारिज करते हुए पारित किया, साथ ही पुनरीक्षणकर्ता को आदेश की तिथि से 15 दिनों के भीतर महानिबंधक के पक्ष में बैंक दस्तावेज के माध्यम से धनराशि जमा करने का निर्देश दिया। दरअसल महिला पुनरीक्षणकर्ता ने वर्तमान याचिका जिला न्यायाधीश, चंदौली के एक आदेश को चुनौती देते हुए दाखिल की थी
निर्वाचित प्रधान के पति जिला न्यायालय,
जिसमें उसकी चुनाव याचिकाको खारिज कर दिया गया था। याची ने अपनी चुनाव याचिका को व सक्षम क्षेत्राधिकार वाले किसी अन्य न्यायालय में स्थानांतरित करने की व मांग भी की थी। स्थानांतरण की मांग इस आरोप के साथ की गई थी कि विपक्षी / निर्वाचित प्रधान के पति जिला न्यायालय, चंदौली में वकालत करते हैं। सुनवाई की तय तारीख पर जिला न्यायाधीश के समक्ष पुनरीक्षणकर्ता ने विपक्षी के पति को पीठासीन अधिकारी के कक्ष में प्रवेश करते देखा। कमरे से बाहर निकालने के बाद उन्होंने कथित तौर पर अपने सहयोगियों के सामने याचिका का फैसला अपने पक्ष में आने का दावा किया। हालांकि विपक्षी ने उक्त आरोपों से इनकार किया। अंत में कोर्ट ने आरोपों को निंदनीय और गैर-जिम्मेदाराना करार देते हुए याची पर जुर्माना लगा दिया।