हाशिये पर पहुंची बसपा को नगर निकाय चुनाव ने दी संजीवनी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 02 Dec, 2017 02:27 PM

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पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति में हाशिये पर चली गयी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को नगर निकाय चुनाव ने संजीवनी दे दी है।

लखनऊ: पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद उत्तर प्रदेश की चुनावी राजनीति में हाशिये पर चली गयी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को नगर निकाय चुनाव ने संजीवनी दे दी है।  

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में बसपा 'मोदी की आंधी' में उड़ गयी थी। राज्य में लोकसभा की कुल 80 सीटों में से उसे एक पर भी जीत नहीं मिल पायी थी। उसका खाता भी नहीं खुल सका था।  इस साल हुए राज्य विधानसभा चुनाव के बाद तो बसपा पूरी तरह हाशिये पर चली गयी थी। चार बार राज्य में सत्ता संभाल चुकी बसपा 403 विधानसभा क्षेत्रों में से मात्र 19 पर जीत सकी।

राजनीतिक गलियारों में माना जाने लगा था कि मायावती और उनकी पार्टी अब शायद ही आगे बढ़े, लेकिन नगरीय निकाय चुनाव ने बसपा को संजीवनी दे दी। ‘केसरिया आंधी’ के बीच उसके दो मेयर जीतने में कामयाब हो गये। अलीगढ़ और मेरठ में बसपा के मेयर चुने गये, हालांकि बसपा के बारे में कहा जाता है कि शहरी इलाकों में उसकी ताकत ग्रामीण अंचलों की अपेक्षा कम है।

कुल 16 नगर निगमों में भाजपा के 14 मेयर जीते हैं। भाजपा और बसपा के अलावा किसी अन्य दल का मेयर पद पर खाता ही नहीं खुल सका। नगर निगम, नगरपालिका परिषदों और नगर पंचायतों के सदस्यों के चुनाव में भी बसपा का प्रदर्शन सन्तोषजनक कहा जा सकता है। नगर निगम के पार्षदों के चुनाव में उसके 147 उम्मीदवार जीते हैं। राज्य निर्वाचन आयोग के अनुसार पार्षदों की कुल संख्या 1300 है, जिसमें 1298 के नतीजे ही घोषित किये गये हैं। 

नगर पालिका परिषद की कुल 198 सीटों में उसके 29 अध्यक्ष चुने गये हैं जबकि सभासद उमीदवारों में 262 ने जीत हासिल की है। परिषद के सभासदों की कुल संख्या 5261 है। इसमें एक का परिणाम लिबत हैं। नगर पंचायतों की कुल 438 सीटों में से अध्यक्ष पद पर उसके 45 उमीदवार जीतने में कामयाब रहे हैं। नगर पंचायत के कुल सदस्यों 5434 में 218 बसपा के चुने गये हैं। इसमें भी चुनाव परिणाम 5433 का आया है, एक का नतीजा किन्हीं कारणों से रुक गया है।  

बसपा को सूबे की राजनीति में ‘चुका’ मान चुके लोगों के लिये यह परिणाम झटके के रुप में देखा जा रहा है। राजनीतिक प्रेक्षक राजेन्द्र प्रताप सिंह का कहना है कि सूबे में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार बनने के बाद पहले की तरह लगभग हर क्षेत्र में अगड़ी जातियों का वर्चस्व बढ़ रहा है। इससे पिछड़े और छोटी जातियां एक बार फिर ‘यूनाइट’ होने लगी है। जिसका सीधा असर नगरीय निकाय चुनाव में देखा गया। 

राजेन्द्र सिंह ने कहा, ‘यह चुनाव सूबे में आगे चलकर दलित-मुस्लिम गठजोड़ होने के भी संकेत दे रहा है। यह दोनों वर्ग यदि एक मंच पर आ गये तो सूबे की राजनीति में एक बार फिर बदलाव आ सकता है।’ 
 

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