Edited By Punjab Kesari,Updated: 04 Jan, 2018 08:37 PM
समाजवादी पार्टी(सपा) अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने लोकसभा की दो सीटों गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव के लिए आगामी छह जनवरी को विपक्षी दलों की बैठक बुलायी है।
लखनऊ: समाजवादी पार्टी(सपा) अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने लोकसभा की दो सीटों गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव के लिए आगामी छह जनवरी को विपक्षी दलों की बैठक बुलायी है।
सपा प्रवक्ता और पूर्व मंत्री राजेन्द्र चौधरी ने आज यहां यह जानकारी दी। चौधरी ने बताया कि इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में छेड़छाड़ की मिल रही शिकायतों को लेकर अखिलेश यादव ने छह जनवरी को बैठक बुलायी है। बैठक में बहुजन समाज पार्टी(बसपा) और कांग्रेस को भी आमंत्रित किया गया है।
उन्होंने बताया कि लोकसभा की गोरखपुर और फूलपुर सीट के उपचुनाव में भी ईवीएम से ही चुनाव होगा। इस पर विपक्षी दलों की एक राय होनी चाहिए इसलिए पार्टी अध्यक्ष ने विपक्षी दलों की राय जानना जरुरी समझा है। राजनीतिक जानकारों के अनुसार अभी यह तय नहीं है कि अखिलेश यादव की बुलायी बैठक में कांग्रेस या बसपा भाग लेगी, लेकिन बैठक में खासतौर पर बसपा को आमंत्रित कर अखिलेश यादव ने विपक्षी एकता की ओर एक कदम बढ़ाया है।
चौधरी ने कहा कि बैठक में कांग्रेस और बसपा को आमंत्रित किये जाने का यह मतलब नहीं लगाया जाना चाहिए कि भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) के खिलाफ विपक्ष संयुक्त उम्मीदवार खड़ा करना चाहता है। यह बैठक केवल ईवीएम के मुद्दे पर केन्द्रित रहेगी।
क्या है असली मकसद
राजेंद्र चौधरी भले ही कहें कि ये बैठक सिर्फ ईवीएम के मुद्दे पर केन्द्रित होगी लेकिन उनका असली मतलब चुनावी गठबंधन है। सपा को भलीभांति पता है कि अकेले-अकेले चुनाव लड़कर सत्ताधारी बीजेपी को हराना काफी कठिन है, इसलिए उन्होंने ये रणनीति तैयार की है। जो सबसे बड़ी बात है वो ये कि इसी उपचुनाव के नतीजे पर ये विपक्षी पार्टियां लोकसभा चुनाव 2019 के लिए प्लान तैयार कर रही हैं। अगर इस चुनाव में इनकी रणनीति सफल रहती है तो संभवत: तीनों आगामी लोकसभा चुनाव में मिलकर ही लड़ेंगे।
तो बीजेपी की राह होगी मुश्किल
राजनीतिक विश्लेषकाें का मानना है कि अगर अखिलेश यादव की ये पहल सफल हो गई तो आगामी लोकसभा उपचुनाव की दोनों सीटों पर बीजेपी की हार लगभग निश्चित है। क्योंकि अगर ये तीनों पार्टियां एक साथ आकर चुनाव लड़ती हैं तो इनका वोट प्रतिशत बीजेपी के वोट शेयर से कहीं ज्यादा होगा। जो बीजेपी के लिए हार का कारण बनेगा। फिलहाल देखना ये दिलचस्प होगा कि क्या बसपा अखिलेश के इस पहल को स्वीकार करती है या नहीं।