उत्तराखंड की बदनामी करा गया गढ़वाल यूथ कप, आयोजकों के दावों की खुली पोल

Edited By Punjab Kesari,Updated: 23 Apr, 2018 03:34 PM

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भले ही ऑल इंडिया गढ़वाल यूथ कप फुटबॉल टूर्नामेंट के आयोजन के सफल होने के दावे किए जा रहे हों, लेकिन समापन समारोह में आयोजकों के दावों की पोल खुल गई। टूर्नामेंट में खेलने वाली और विजेता-उपविजेता बनी बाहरी राज्यों की टीमों को न तो समय पर पुरस्कार राशि...

देहरादून: भले ही ऑल इंडिया गढ़वाल यूथ कप फुटबॉल टूर्नामेंट के आयोजन के सफल होने के दावे किए जा रहे हों, लेकिन समापन समारोह में आयोजकों के दावों की पोल खुल गई। टूर्नामेंट में खेलने वाली और विजेता-उपविजेता बनी बाहरी राज्यों की टीमों को न तो समय पर पुरस्कार राशि दी गई और व्यक्तिगत पुरस्कार के मामले में भी मनमर्जी की गई। आयोजन से पहले जो वादे किए गए थे, उन्हें समय पर पूरा नहीं किया गया। बुरा अनुभव लेकर टीमें लौट तो गर्इं, मगर यह कहते हुए कि आगे यहां खेलने आने की सोचेंगे भी नहीं। आयोजकों की लापरवाही के चलते प्रदेश की साख पर दाग लगा है। आयोजकों इसके लिए ऐन वक्त पर स्पांसर के पीछे हट जाने का बहाना बना रहे है।


 
देहरादून फुटबॉल एकैडमी की ओर से 15 से 22 अप्रैल तक तृतीय ऑल इंडिया गढ़वाल यूथ कप फुटबॉल टूर्नामेंट का आयोजन किया गया। टूर्नामेंट में उत्तराखंड सहित दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़, उत्तर प्रदेश आदि की 40 टीमों ने प्रतिभाग किया। अंडर-15 व अंडर-19 बालक और सीनियर बालिका वर्ग में हुए टूर्नामेंट में टीमों ने भी शानदार खेल का प्रदर्शन कर फुटबॉल प्रेमियों को बांधे रखा। टूर्नामेंट के दौरान किसी भी मैच में कोई विवाद नहीं उठा। फाइनल वाले दिन भी सब कुछ ठीक रहा। लेकिन, पुरस्कार वितरण में आयोजकों के नियमों और वादों की पोल खुल गई। न तो पुरस्कार राशि का सही पता चल पाया और न ही सर्वश्रेष्ठ खिलाडिय़ों को पूरी राशि दी गई। 

 

नकद पुरस्कार राशि देने की बजाय चेक देकर इतिश्री:
टीमों को जो नियम बनाकर दिए गए थे उसमें साफ लिखा था कि सभी वर्ग की विजेता-उपविजेता टीम को क्रमश: 21 व 11 हजार रुपये का नकद पुरस्कार, ट्रॉफी, मेडल और सर्टिफिकेट प्रदान किए जाएंगे। साथ ही सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर को पांच हजार रुपये का नकद पुरस्कार दिया जाएगा। लेकिन, ऐन वक्त पर स्पांसरों से पैसा न मिलने की बात कहकर नकद राशि देने से कन्नी काट ली गई। यहां तक कि सर्वश्रेष्ठ खिलाडिय़ों को पांच हजार की जगह 2100 रुपये देकर ही इतिश्री कर ली गई। इसे लेकर बाहर से आई टीमों ने नाराजगी भी जताई। अंडर-15 वर्ग में उपविजेता रही बीबीएफएस-दिल्ली की टीम घंटों पुरस्कार राशि के लिए इंतजार करती रही। वहीं, एसकेएफ-पुणे की टीम जो करीब तीन लाख रुपये खर्च करके टूर्नामेंट में खेलने आई उसे भी ईनामी राशि के लिए पहले लंबा इंतजार कराया गया। बाद में किसी तरह चेक थमाया गया। आयोजकों के रवैये से खफा टीमों के कोच यहां तक कह गए कि यहां खेलने के लिए दोबारा नहीं आएंगे। 

 

बालिका वर्ग में सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के चयन पर भी सवाल:
सीनियर बालिका वर्ग में मंगाली फुटबॉल एकैडमी-हरियाणा चैंपियन बनी। पूरे टूर्नामेंट में टीम ने एक भी मैच नहीं हारा। फाइनल में उसने देहरादून फुटबॉल एकैडमी को 7-0 से हराया। टीम की खिलाड़ी रेणु ने पूरे टूर्नामेंट में शानदार खेल दिखाते हुए 10 गोल दागे, लेकिन सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी की दौड़ में उसकी गिनती ही नहीं हुई। आयोजकों ने देहरादून फुटबॉल एकैडमी की ऐसी खिलाड़ी को, जिसने मात्र दो गोल दागे थे, सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी चुन लिया। वहीं, मंगाली फुटबॉल एकैडमी की रवीना को बेस्ट गोलकीपर चुना गया, लेकिन जब नकद पुरस्कार की बारी आई तो मात्र 2,100 रुपये थमा दिए गए। बालक अंडर-15 वर्ग में एसकेएफ पुणे के गोलकीपर के साथ भी ऐसा ही हुआ।   

 

आयोजकों के खाते में जमा कराई थी एंट्री फीस:
हमने आयोजकों के खाते में एंट्री फीस जमा कराई। पहले कहा गया था कि पुरस्कार राशि नकद दी जाएगी, लेकिन जब इसकी बारी आई तो पहले यह कहकर कि स्पांसर पीछे हट गए हैं और नकद राशि देने में सक्षम नहीं हैं, सर्वश्रेष्ठ खिलाडियों को पूरी पुरस्कार राशि नहीं दी गई। घंटों इंतजार के बाद जब हम नहीं माने तब जाकर टीम को नकद राशि प्रदान की गई। हमारी टीम में कई राष्ट्रीय स्तर की  खिलाड़ी हैं, जो अपनी मेहनत के दम पर यहां तक पहुंची हैं। ऐसे में आयोजकों का रवैया निराश करने वाला है। भविष्य में इस तरह के टूर्नामेंट खेलने के लिए आमंत्रण मिलेगा तो कई बार सोचना पड़ेगा।
                                                                                                                                                                                          नरेंद्र, कोच मंगाली फुटबॉल एकैडमी-हरियाण

 

ऐसे में बदनाम होता है खेल भी-राज्य भी:
पुणे से यहां टीम को हवाई मार्ग से लाया गया है। इसमें हमारा काफी खर्चा हुआ। हमारा मकसद अच्छा खेलना रहा। लेकिन, आयोजकों की मंशा साफ नहीं दिखी। उपविजेता की नकद पुरस्कार राशि की जगह हमेें चेक थमा दिया गया। यदि ऐसा ही करना था तो जो नियम बनाए गए थे, उसमें भी लिखना चाहिए था। इससे खेल बदनाम होता है और प्रदेश की प्रतिष्ठा पर भी सवाल उठते हैं।
                                                                                                                                                                                                                   नौशाद, कोच एसकेएफ-पुणे

 

स्पांसरों के कारण आई नकद राशि में दिक्कत
स्पांसरों ने ऐन वक्त पर हाथ खींच लिए। इससे नकद राशि देने में दिक्कत आई। विजेता-उपविजेता टीमों में से कुछ को नकद व कुछ को चेक से पेमेंट कर दिया गया है। जहां तक सर्वश्रेष्ठ खिलाडिय़ों को कम नकद पुरस्कार देने की बात है, तो वह हमने नियमों में पहले ही स्पष्ट किया था कि आयोजन समिति ने जो नियम बनाए हैं, उनमें फेरबदल कर सकती है।
                                                                                                                                                                वीएस रावत, आयोजक व संस्थापक देहरादून फुटबॉल एकैडमी 

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