उत्तराखंड कांग्रेस ने भाजपा पर लगाया ये आरोप, की भूमि कानून बनाने की वकालत

Edited By Diksha kanojia,Updated: 31 Jul, 2021 06:03 PM

uttarakhand congress made this allegation on bjp

गोदियाल ने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने पूर्व में मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी जी से लेकर हरीष रावत के मुख्यमंत्रित्व काल में हर स्तर पर राज्य की जमीन बचाने और उसके अधिकतम सदुपयोग के लिए कानूनी उपाय किए थे और आगे भी इसके लिए संकल्पित है। उन्होंने कहा...

देहरादूनः उत्तराखंड कांग्रेस ने राज्य में सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर आम पर्वतीय वासियों की जमीन विधिक फेरबदल कर, औने-पौने दामों में बाहरी लोगों और संस्थाओं को देने का आरोप लगाया है। साथ ही, राज्य में हिमाचल प्रदेश की तरह भु-क़ानून बनाने की वकालत की है।

नवनियुक्त प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल औऱ केदारनाथ से विधायक मनोज रावत ने शनिवार को पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा कि आजकल राज्य का बच्चा-बच्चा भू-कानून की बात कर रहा है। उनको अपने पूर्वजों की पीढि़यों से खून-पसीने की मेहनत से अर्जित भूमि को औने-पौन दामों में खरीद कर उन्हें उनकी ही जमीन पर नौकर बनाने के षड्यंत्र की चिंता है। उन्होंने कहा कि यह राज्य की वर्तमान भाजपा सरकार के कारण हुआ है।

गोदियाल ने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने पूर्व में मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी जी से लेकर हरीष रावत के मुख्यमंत्रित्व काल में हर स्तर पर राज्य की जमीन बचाने और उसके अधिकतम सदुपयोग के लिए कानूनी उपाय किए थे और आगे भी इसके लिए संकल्पित है। उन्होंने कहा कि भू- कानून एक बहुत ही विस्तृत विषय है। राज्य के युवाओं में आजकल छह दिसंबर 2018 को उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश) जंमीदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा - 143 और धारा-154 में परिवर्तन के बाद राज्य के पर्वतीय जिलों में मची जमीन की लूट और सरकार द्वारा कुछ संस्थाओं को राज्य की बेषकीमती भूमि लुटाने की आशंका को लेकर बड़ा आक्रोश है। उन्होंने कहा कि स्थानीय निवासियों और युवाओं के उस आक्रोश की अभिव्यक्ति विभिन्न माध्यमों से जनता के सामने आ रही है इसलिए कांग्रेस पार्टी का कर्तव्य है कि इस विषय पर अपने विचार प्रेस के माध्यम से राज्य की जनता के सामने रखे।

प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि छह दिसंबर 2018 को विधानसभा में उत्तराखण्ड (उत्तर प्रदेश) जंमीदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था अधिनियम की धारा 143 और धारा154 में परिवर्तन करने संबधी बिल पेश करते समय राज्य सरकार ने इसे पर्वतीय जिलों में बहुत ही महत्वाकांक्षी औद्योगिक क्रांति लाने वाला बिल बताया था। बिल लाने का कारण और उद्देष्य में सरकार ने बताया था कि, ‘‘उत्तराखण्ड राज्य में औद्योगिक निवेश को बढ़ावा देने एंव राज्य के विकास हेतु औद्योगिक प्रयोजनों ( उद्योग , पर्यटन , चिकित्सा , स्वास्थ्य एवं शैक्षणिक प्रयोजन) के लिए भूमि क्रय की दशा में 12. 5 एकड़ की भूमि क्रय की सीमा के प्रावधान एंव किसी कृषि भूमि को गैर कृषि भूमि घोशित किए जाने सम्बन्धी प्रावधानों में शिथिलता लाने के उद्देश्य से यह बिल लाया गया है।''

रावत ने कहा कि भाजपा इस बिल में धारा - 154 की उपधारा- 2 के संशोधन में भाजपा सरकार ने - ‘‘ तत्समय प्रवृत्त भौमिक अधिकार से सम्बन्धित किसी अन्य विधि के उपबन्धों के अधीन रहते हुए राज्य सरकार अपने सामान्य या विशेष आदेश द्वारा यदि उसकी यह सम्मति है कि ऐसा अन्तरण औद्योगिक प्रयोजनों के लिए किया गया है या एक पंजीकृत सहकारी समिति या दानोत्तर प्रयोजनों के लिए स्थापित संस्था के पक्ष में किया गया है जिसके पास उसकी आवष्यकताओं के लिए पर्याप्त भूमि नहीं है अथवा यह कि अन्तरण जन- साधारण के हित में किया गया है तो उपधारा- 1 में स्वीकृत सीमा से अधिक अन्तरण करने का अधिकार प्रदान कर सकेगी।

तेज-तररर पत्रकार से विधायक बने मनोज रावत ने कहा कि धारा- 154 में इस परिवर्तन के बाद राज्य सरकार न केवल औद्योगिक प्रयोजन के लिए, बल्कि किसी सहकारी समिति, किसी धार्मिक या अन्य संस्था को भी राज्य के पर्वतीय जिलों में कितनी भी जमीन खरीदने की अनुमति दे सकती है। उन्होंने आशंका व्यक्त की कि इसकी अगली पंक्ति- अन्तरण जन-साधारण के हित में किया गया है तो राज्य सरकार को किसी भी कार्य को ‘‘जन साधारण के हित में किया कार्य'' बता कर कितनी भी पर्वतीय क्षेत्र की भूमि किसी को खरीदने की अनुमति दे सकती है।  रावत ने आरोप लगाया कि 04 जून, 2019 को राज्य की भाजपा सरकार ने मंत्रिमंण्डल बैठक में एक निर्णय लेकर राज्य के मैदानी जिलों - उधमसिंहनगर, हरिद्वार और देहरादून में भी हदबंदी (सीलिंग) की 12.5 एकड़ की सीमा समाप्त कर दी। उन्होंने कहा कि आजादी के बाद कांग्रेस की सरकारों ने गरीबों की भूमि की रक्षा के लिए उत्तर प्रदेश जंमीदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था अधिनियम, जिसे बाद में उत्तराखण्ड द्वारा भी स्वीकारा गया, को एक साल के भीतर खत्म कर राज्य के पर्वतीय और मैदानी दोनों ही भागों में जमीन की नीलामी वाली हालात पैदा कर दी है।

कांग्रेस नेताओं ने राज्य सरकार से इस विषय पर श्वेत पत्र जारी करने की मांग की कि इस बिल के कानून बनने और 4 जून के मंत्रिमंण्डल के फैसले के बाद राज्य के पर्वतीय और मैदानी दोनों क्षेत्रों की कितनी भूमि औद्योगिक प्रयोजनों के लिए बिकी और कितना औद्योगिक निवेष इस बिल को पास के बाद राज्य में आया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी राज्य भर की भू-व्यवस्था को एकरुपता में लाने की पक्षधर रही है। अभी राज्य में जमीन से संबधित दर्जन भर कानून हैं। हमारे पूर्ववर्ती राज्य उत्तर प्रदेश ने उन सभी कानूनों का एकीकरण या विलोपन कर ‘‘उत्तर प्रदेश भू-राजस्व संहिता-2006 का रुप दे दिया है। प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि उनकी पार्टी का मत है राज्य में भी अब एकीकृत भू-कानून की आवष्यकता है और उस कानून में ऐसे कड़ी धाराओं को सम्मलित करने की आवष्यकता है जो कि पर्वतीय और मैदानी दोनों क्षेत्रों की कृशि भूमि और अन्य समुदाय की भूमि को बाहरी खरीददारों और मुफ्तखोर कंपनियों से बचाए। उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस इसके अलावा भू-बंदोबस्त कराने और पर्वतीय गांवों में भी चकबंदी कराने की पक्षधर है। 
 

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