शर्मनाक! भाई की लाश कंधे पर ढो कर ले गया शख्स, एंबुलेंस सेवा ने कर दिया था इंकार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 03 May, 2018 08:59 PM

the helpless man to his brother corpse on the shoulder

गुरुवार का दिन देवभूमि के लोगों के बेहद शर्मनाक रहा, जब एक व्यक्ति को धनाभाव में अपने छोटे भाई की लाश कंधे पर ढोने को मजबूर होना पड़ा। उसे एक एंबुलेंस तक उत्तराखंड की राजधानी में मुहैया नहीं हो पाई, क्योंकि उसकी जेब में पैसा नहीं था। सरकारी सिस्टम...

देहरादून: गुरुवार का दिन देवभूमि के लोगों के बेहद शर्मनाक रहा, जब एक व्यक्ति को धनाभाव में अपने छोटे भाई की लाश कंधे पर ढोने को मजबूर होना पड़ा। उसे एक एंबुलेंस तक उत्तराखंड की राजधानी में मुहैया नहीं हो पाई, क्योंकि उसकी जेब में पैसा नहीं था। सरकारी सिस्टम के शर्मनाक हालात को बयां करने वाला यह वाकया राजधानी स्थित दून मेडिकल कॉलेज का है। वह भी तब, जब खुद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत इस महकमे के मंत्री भी हैं। जानकारी के मुताबिक, बिजनौर के धामपुर में पंकज फल की ठेली लगाता है। उसका छोटा भाई संजू वहीं हलवाई की दुकान पर काम करता था। 


बताया गया कि पिछले करीब तीन महीने से सोनू को फेफड़ों में इंफेक्शन की शिकायत थी। तमाम खर्च के बाद भी सोनू की हालत में सुधार नहीं हुआ। हालत ज्यादा बिगड़ी तो धामपुर के डॉक्टर ने सलाह दी कि सोनू को किसी बड़े अस्पताल में दिखाओ। गरीबी से जूझ रहे भाइयों के लिए बड़े डॉक्टर का महंगा इलाज करवा पाना संभव नहीं था। जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे अपने छोटे भाई सोनू का इलाज करवाने के लिए बड़ा भाई पंकज उसे धामपुर से देहरादून लेकर पहुंचा। अपने भाई की जिंदगी बचाने की आखिरी आस में पंकज ने उसे दून मेडिकल कॉलेज में भर्ती करवा दिया। बताया गया कि गुरुवार सुबह इलाज के दौरान सोनू की मौत हो गई। 

 

छोटे भाई की मौत से बुरी तरह टूटे पंकज के समक्ष अब समस्या उसके शव को ससम्मान धामपुर स्थित घर तक पहुंचाने की थी। इसकी वजह यह थी कि उसके पास एंबुलेंस का किराया अदा करने के लिए पैसे नहीं थे। पंकज ने दून मेडिकल कॉलेज की एंबुलेंस से भाई के शव को धामपुर तक पहुंचाने की गुहार लगाई, लेकिन शर्मनाक बात यह है कि उससे इसके लिए पांच हजार रुपये मांगे गए। पंकज और उसके दूसरे परिचित के पास कुल मिलाकर उस वक्त एक हजार रुपये ही निकले। किराया नहीं मिला, तो सरकारी एंबुलेंस ने लाश ले जाने से मना कर दिया। इसके बाद पंकज ने आपातकालीन सेवा-108 से एंबुलेंस के लिए गुहार लगाई, लेकिन वहां से दो टूक शब्दों में उसे जवाब दिया गया कि 'वे मरीज ढोते हैं, लाश नहीं।

 

निराश पंकज आंखों में आंसू लिए दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल की इमरजेंसी में तैनात डॉक्टर से मिला। परन्तु, डॉक्टर ने भी उसकी किसी तरह की मदद करने में अपनी नौकरी की मजबूरी जता दी। अस्पताल के स्टाफ ने भी केवल सोनू की मौत के दस्तावेज बनाकर पंकज के हाथ में थमा दिए। दुख और हताशा में कुछ नहीं सूझा, तो पंकज ने भाई की लाश को धामपुर तक ले जाने के लिए कंधे पर लादा और दून अस्पताल के गेट के बाहर निकल गया। लोग यह सब देख तो रहे थे, लेकिन मदद करने की हिम्मत नहीं जुटा सके। लाश को कंधे पर लादकर वह एमकेपी कॉलेज तक ले गया। इस बीच, अस्पताल की इमरजेंसी के बाहर खड़े कुछ लोगों का दिल पसीजा, तो वे उसे वापस बुला लाए। इसके बाद लोगों ने उसे धामपुर तक का किराया देने के लिए चंदा मांगना शुरू किया। हालांकि, काफी देर बाद भी उसके लिए चंदे की रकम जमा नहीं हो सकी थी।

 

किसी की गलती मिली, तो कार्रवाई होगी
दून मेडिकल कॉलेज के मेडिकल सुपरिंटेंडेंट डॉ. केके टम्टा ने पूछने पर बताया कि लाश को एंबुलेंस में नहीं ढोया जाता है। दूसरे, अस्पताल का नियम है कि एंबुलेंस 18 रुपये प्रति किमी के भुगतान पर उपलब्ध कराई जाती है। हम लोग नियमों से बंधे हुए हैं। लाश के लिए बाहर से संस्थाओं की एंबुलेंस आती हैं। वैसे मैं आज अस्पताल में नहीं था। शासन में स्वास्थ्य सचिव के साथ वार्ता के लिए सुबह साढ़े दस बजे निकल गया था। साढ़े तीन बजे ही अस्पताल पहुंचा हूं। मामला क्या है, इसके बारे में पता लगाता हूं। अगर किसी की गलती सामने आई, तो कार्रवाई भी करूंगा।

अस्पताल से डिमांड आती, तो सम्मान से पहुंचाते लाश
108 इमरजेंसी सेवा के स्टेट हेड मनीष टिंकू का कहना है कि एंबुलेंस में लाश ढोने का कोई प्रोटोकॉल नहीं है। 108 में तो खासतौर से डेड बॉडी को नहीं ले जाया जा सकता है। जिस किसी राज्य में 108 सेवाएं दे रही हैं, वहां कहीं भी हम लाश को एंबुलेंस में नहीं ढोते हैं। दूसरे राज्यों में स्वास्थ्य विभाग ने लाश ढोने के लिए अलग से एंबुलेंस की व्यवस्था की हुई है। हमारे यहां ऐसा नहीं है। दून अस्पताल में हमारी छोटी गाड़ी खुशियों की सवारी भी तैनात रहती है। अगर हमें अस्पताल से इस गाड़ी को उपलब्ध कराने की डिमांड आई होती, तो आउट ऑफ द वे जाकर भी हम लाश को सम्मान के साथ घर तक पहुंचाते।

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