उत्तराखंड में वकीलों की हड़ताल को सुप्रीम कोर्ट ने ठहराया गैर कानूनी

Edited By Nitika,Updated: 28 Feb, 2020 01:39 PM

sc holds the strike of lawyers in uttarakhand illegal

उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड के 3 जिलों- देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में हर शनिवार होने वाली वकीलों की हड़ताल को शुक्रवार को अवैध करार दिया।

 

नई दिल्ली/देहरादूनः उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड के 3 जिलों- देहरादून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में हर शनिवार होने वाली वकीलों की हड़ताल को शुक्रवार को अवैध करार दिया।

न्यायमूर्ति अरुण कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति एमआर शाह की खंडपीठ ने स्टेट बार काउंसिल से ऐसा करने वाले वकीलों पर कार्रवाई के लिए कहा। खंडपीठ की ओर से न्यायमूर्ति शाह ने फैसला सुनाया। उन्होंने उत्तराखंड उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ डिस्ट्रिक्ट बार एसोसिएशन की अपील ठुकरा दी। गौरतलब है कि 35 साल से यहां के वकील हर शनिवार किसी न किसी वजह से हड़ताल करते हैं। इससे अदालती काम का नुकसान होता है। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और देहरादून में पिछले 35 साल से चल रही अधिवक्ताओं की हड़ताल तथा कार्य बहिष्कार के मामले में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद इसे अवैध और असंवैधानिक घोषित कर दिया है।

उच्च न्यायालय ने साफ कहा था कि कोई भी अधिवक्ता या बार काउंसिल हड़ताल करता या हड़ताल का आह्वान करता है तो बार काउंसिल ऑफ इंडिया उस पर कार्रवाई करे। उन्होंने कहा था कि यदि अधिवक्ता हड़ताल पर जाएंगे तो इसे अदालत की अवमानना माना जाएगा। इसके साथ ही यदि अधिवक्ता न्यायिक कार्यों से विरत रहते हैं तो जिला जज इसकी रिपोर्ट उच्च न्यायालय को करेंगे और न्यायालय उस रिपोर्ट के आधार पर हड़तालियों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई करेगा। देहरादून निवासी ईश्वर शांडिल्य ने उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि दून, हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में पिछले 34 वर्षों से शनिवार को अधिवक्ताओं की ओर से हड़ताल की जाती रही है। इससे वादकारियों को न्याय से वंचित होना पड़ रहा है।

याची ने हड़ताल को गैर कानूनी घोषित करने की मांग की थी। पक्षों की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट की खंडपीठ ने वादकारियों के हित में अहम फैसला सुनाया है। उच्च न्यायालय ने कहा था कि समस्त न्यायिक कार्य सुचारु रूप से चलते रहेंगे। कोई भी न्यायिक अधिकारी हड़ताल की वजह से मुकद्दमे की तारीख नहीं टालेगा। यदि हड़ताल की वजह से सुनवाई टली तो इसकी जवाबदेही न्यायिक अधिकारी की होगी।
 

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