लंबा टल सकता है निकाय चुनाव, सरकार को शीघ्रता नहीं

Edited By Punjab Kesari,Updated: 15 May, 2018 07:12 PM

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परिसीमन की अधिसूचना रद होने के बाद डैमेज कंट्रोल की कवायद शुरू करने के बदले सरकार ने यह बयान देकर चौंका दिया है कि अब तक जारी सभी अधिसूचनाएं रद मानी जाएंगी। इस बयान का मतलब साफ है कि सरकार को चुनाव कराने की शीघ्रता नहीं है। परिसीमन पर सिंगल बेंच के...

देहरादून: परिसीमन की अधिसूचना रद होने के बाद डैमेज कंट्रोल की कवायद शुरू करने के बदले सरकार ने यह बयान देकर चौंका दिया है कि अब तक जारी सभी अधिसूचनाएं रद मानी जाएंगी। इस बयान का मतलब साफ है कि सरकार को चुनाव कराने की शीघ्रता नहीं है। परिसीमन पर सिंगल बेंच के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के निर्णय से भी यही जाहिर होता है। परिसीमन से संबंधित सभी अधिसूचनाएं रद होने का मतलब यह है कि सरकार को नए सिरे से इसकी कवायद शुरू करनी पड़ेगी। 

 

पिछली बार सितम्बर 2017 में यह कवायद शुरू हुई और मार्च 2018 में अधिसूचना जारी हुई। यानी, परिसीमन में कम से छह से सात महीने का समय लग सकता है। वह भी तब जब फिर से कोई पेंच न फंसे। ऐसे में यदि सरकार चाहे तो सिंगल बेंच के फैसले को मान ले और नए सिरे से परिसीमन की कवायद में फंसने के बदले पुराने परिसीमन पर ही चुनाव करा ले। लेकिन सूत्रों का कहना है कि भाजपा संगठन यह नहीं चाहता है। चुनाव के गणित का मौजूदा ट्रेंड यह है कि शहरी क्षेत्र में भाजपा को चुनौती देने वाला कोई भी दूसरा सियासी संगठन नहीं है। इस कारण भाजपा अधिक से अधिक ग्रामीण इलाके को शहरी क्षेत्र में शामिल करना चाहती है। उत्तराखंड के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस का यही आरोप है। इस लिहाज से जब तक निकाय क्षेत्र का सीमा विस्तार नहीं होता, तब तक भाजपा नहीं चाहेगी कि चुनाव हो। 

 

यही कारण है कि हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने बयान जारी किया कि ऐसे में तो सभी अधिसूचनाएं रद मानी जाएगीं क्योंकि जिस तरह राज्यपाल की ओर से जारी नहीं होने को आधार बनाते हुए परिसीमन की अधिसूचनाएं रद की गई हैं, उसी तरह वार्डों और निकायों के आरक्षण की अधिसूचना भी राज्यपाल की ओर से जारी नहीं हुई है। यानी भाजपा सरकार चाहती है कि परिसीमन की तरह ही अन्य अधिसूचनाएं भी रद हो जाएं। यदि ऐसा होता है, तो फिर से चुनावी प्रक्रिया पूरी करने में लंबा समय लगेगा। भाजपा को जल्दबाजी इसलिए भी नहीं है, क्योंकि सभी निकायों के लिए प्रशासक तैनात कर दिए गए हैं। छह महीने बाद जब प्रशासकों का कार्यकाल समाप्त हो जाएगा, तो फिर छह महीने के लिए उसे बढ़ाया जा सकता है। 

 

इस समयावधि में प्रदेश की भाजपा सरकार को उन पैसों को विकास कार्यों में खर्च करने का समय मिल जाएगा, जो निकाय क्षेत्रों के लिए आवंटित किया गया है। यह रकम एक हजार करोड़ रुपये से अधिक है। इस संबंध में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह का कहना है कि राज्य सरकार ने हठधर्मिता अपनाते हुए जन भावनाओं के विपरीत व ग्रामसभा के चुने हुए जन प्रतिनिधियों के विरोध के बावजूद जिस प्रकार से पारदर्शिता को धत्ता बताते हुए जबरन सीमा विस्तार करने का काम किया था, वह अलोकतांत्रिक था। कांग्रेस ने इसलिए राज्य सरकार के निर्णय का विरोध किया था। सुनियोजित षड्यंत्र के तहत राज्य सरकार ने संविधान की अवमानना करते हुए प्रशासकों की नियुक्ति की है। चुनावों को सोची समझी रणनीति के तहत पीछे ले जाने का प्रयास किया गया है।

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