डेढ़ दशक में बर्बादी की कगार पर पहुंची रिस्पना, पढ़ें पूरी खबर

Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Jun, 2018 01:30 PM

free encroachment within three months in dehradun

हाईकोर्ट ने दून की रिस्पना नदी को तीन माह में अतिक्रमण मुक्त करने के आदेश दिए हैं। हालांकि यह काम इतना आसान नहीं है। दरअसल, बीते डेढ़ दशक में यह नदी मृतप्राय स्थिति में पहुंच गई है। नदी के दोनों छोर पर जबरदस्त कब्जे हैं।

देहरादून/ब्यूरो। हाईकोर्ट ने दून की रिस्पना नदी को तीन माह में अतिक्रमण मुक्त करने के आदेश दिए हैं। हालांकि यह काम इतना आसान नहीं है। दरअसल, बीते डेढ़ दशक में यह नदी मृतप्राय स्थिति में पहुंच गई है। नदी के दोनों छोर पर जबरदस्त कब्जे हैं। नगर निगम से लेकर तमाम विभाग इन कब्जों को हटाने के नाम पर योजनाएं बनाने की बात तो करते हैं लेकिन आज तक यह धरातल पर नहीं उतर पाया।

देहरादून नगर निगम बनने से पहले वर्ष 1998 से पहले 65 के करीब बस्तियां शहर में थी। राज्य बनने के बाद नदी क्षेत्र में ताबड़तोड़ अवैध निर्माण हुए। वर्ष 2005 में सिंचाई, नगर निगम और प्रशासन ने रिस्पना और बिंदाल नदी में अतिक्रमणों को लेकर सर्वे किया था। उस वक्त ही दस हजार से ज्यादा अतिक्रमण सामने आए थे। सर्वे के बाद भी अतिक्रमण होने का सिलसिला जारी रहा। रिस्पना और बिंदाल नदी क्षेत्र में 12 हजार से ज्यादा अतिक्रमण हैं। यही कारण है कि पहले 65 बस्तियां हुआ करती थी जो अब बढ़कर 129 तक हो गई हैं।
 
ये हैं बर्बादी के दोषी

नदी की इस बदहाली के लिए कोई और नहीं बल्कि जनप्रतिनिधि ही सबसे ज्यादा दोषी हैं। जिस नेता को जब मौका मिला उसने वोटों की फसल की खातिर नदी की जमीन को खुर्द-बुर्द करने में देर नहीं लगाई। विधायकों से लेकर नगर निगम के पार्षदों ने इस काम को हवा देने का काम किया। वर्तमान में विधायक उमेश शर्मा काऊ से लेकर पूर्व विधायक राजकुमार एवं मसूरी विधायक गणेश जोशी के विधानसभा क्षेत्रों से रिस्पना नदी गुजरती है।

अगर इन तीनों के इलाकों की बात करें तो यहां नदी के किनारों पर पिछले डेढ़ दशक में सबसे ज्यादा कब्जे हुए। इन लोगों ने ही यहां बाहर से आए लोगों को बगैर किसी जांच पड़ताल के धड़ल्ले से बसाना शुरू किया। इतना ही नहीं इन बस्तियों में सड़क, बिजली एवं पानी तक की सुविधाएं मुहैया करा दी गई।

सरकारों का रहा दोहरा चरित्र

रिस्पना-बिंदाल नदियों पर हुए कब्जों को लेकर सरकारों का भी दोहरा चरित्र रहा है। कभी सरकार नदी को कब्जामुक्त करने की बातें करती है तो दूसरी ओर अवैध बस्तियों को मालिकाना हक देने की बात होती है। पिछली कांग्रेस सरकार में पूर्व विधायक राजकुमार की अध्यक्षता में बनी संसदीय समिति ने सिफारिश की थी बस्तियों को मालिकाना हक दे दिया जाए। हालांकि इस सरकार ने यह मामला फिलहाल टाला हुआ है। इसके लिए मुख्य सचिव स्तर पर कमेटी बनाई गई है।

पानी की तरह बह रहा पैसा

ऐसा नहीं है कि रिस्पना को पुराने स्वरूप में लाने के लिए काम नहीं चल रहा है लेकिन यह काम सही दिशा में न चलने के कारण नदी दिनों दिन और भी बुरी स्थिति में पहुंच गई है। एमडीडीए ने रिवर फ्रंट डेवलपमेंट योजना के तहत रिस्पना में प्रथम चरण में किशनपुर क्षेत्र में नदी के दोनों ओर पुश्ते लगाए।

लेकिन वर्तमान में यह पुश्ते बुरी हालत में हैं। यहां पर सौंदर्यकरण आदि के काम होने थे लेकिन कुछ नहीं हुआ। दूसरे चरण में रिस्पना के साढ़े तीन किमी के दायरे में गुजरात की साबरमती नदी के रिवर डेवलपमेंट फ्रंट की तर्ज पर काम होना है लेकिन यह प्रक्रिया फिलहाल कागजों में ही कैद है।

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