मलेथा स्टोन क्रशर मामले में झूठी है कमिश्नर रिपोर्ट या सरकार कर रही अनदेखी ?

Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 May, 2018 06:42 PM

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मलेथा स्टोन क्रशर मामले में सनसनीखेज तथ्य यह है कि जिस कमिश्नर की जांच रिपोर्ट को लाइसेंस निरस्त करने का आधार बनाया गया, दोबारा जब लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया शुरू हुई, तो उस जांच रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। ऐसे में सवाल यह है कि...

देहरादून: मलेथा स्टोन क्रशर मामले में सनसनीखेज तथ्य यह है कि जिस कमिश्नर की जांच रिपोर्ट को लाइसेंस निरस्त करने का आधार बनाया गया, दोबारा जब लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया शुरू हुई, तो उस जांच रिपोर्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। ऐसे में सवाल यह है कि कमिश्नर की रिपोर्ट गलत है या फिर सरकार पुराने तथ्यों की अनदेखी कर रही है। बहरहाल, इस मुद्दे पर सभी मौन हैं। मैसर्स सत्यम शिवम सुंदरम स्टोन क्रशर को चार दिसम्बर 2013 को टिहरी के तहसील देव प्रयाग के गांव मलेथा में 0.638 हेक्येटर भूमि पर दो सौ टन क्षमता वाले स्टोन क्रशर खोलने की अनुमति दी गई थी। 

 

स्टोन क्रशर खुलते ही क्षेत्र में हंगामा हो गया। स्थानीय ग्रामीणों के साथ भाजपा कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। जबरदस्त विरोध प्रदर्शन के बीच यह मामला हाईकोर्ट पहुंच गया। हाईकोर्ट के आदेश पर सरकार ने कमिश्नर गढ़वाल से मामले की जांच कराई। कमिश्नर की जांच रिपोर्ट में कई बिंदुओं पर खामियां गिनाई गई थीं। 11 जून 2015 को शासन को सौंपी जांच रिपोर्ट में उल्लेख हुआ है कि स्थल निरीक्षण में स्टोन क्रशर स्क्रीनिंग प्लांट एवं पल्वराइजर अनुज्ञा नीति 2011 की शर्तों के अनुसार स्टोन क्रशर प्लांट के चारों ओर 15 फुट की चहारदीवारी होनी चाहिए। जो निरीक्षण के दौरान नहीं पाई गई। 15 फुट ऊंची दीवार के स्थान पर आठ फुट ऊंची टीन की दीवार बनाई गई थी। 

 

प्रदूषण रोकने के उपाय नहीं किए गए थे। धूल रोकने वाले पेड़ों की विशेष प्रजाति नहीं लगाई गई थीं। इस रिपोर्ट के आधार पर शासन ने स्टोन क्रशर का लाइसेंस दो जुलाई 2015 को निरस्त कर दिया था। लाइसेंस निरस्त होने के बाद स्टोन क्रशर मालिक विकास सिंह बिष्ट हाईकोर्ट पहुंचा और आरोप लगाया कि सरकार ने उसका पक्ष नहीं सुना। इस याचिका का निस्तारण करते हुए हाईकोर्ट ने 24 नवंबर 2017 को सरकार को आदेश दिया कि वह सभी पक्षों को सुने और उसके बाद कोई फैसला ले। हैरत की बात यह है कि कोर्ट के आदेश पर शासन ने 29 जनवरी 2018 को सभी पक्षों को सुना जरूर, पर उसने कमिश्नर की जांच रिपोर्ट की अनदेखी कर दी। 

 

सभी पक्षों को सुनने के बाद लाइसेंस निरस्तीकरण के आदेश को निरस्त करने संबंधी शासनादेश में इस बात का उल्लेख तक नहीं है। शासन ने स्थानीय ग्रामीणों, ग्राम प्रधानों और प्रधान संगठनों से बातचीत करने का दावा किया है। शासनादेश में इसका उल्लेख भी है। लेकिन प्रदूषण के उन बिंदुओं पर मौन है, जो कमिश्नर की रिपोर्ट में हैं। मसलन स्टोन क्रशर से निकलने वाली धूल को रोकने के लिए विशेष प्रजाति के पेड़ लगाए जाएंगे या नहीं। 

 

15 फुट ऊंची चहारदीवारी खड़ी होगी या नहीं। स्टोन क्रशर को आवंटित भूखंड के बीच में लाया जाएगा या नहीं। कुछ ग्रामीणों और ग्राम प्रधानों की सहमति से सुरक्षा के इन सभी बिंदुओं की अनदेखी की जा सकती है? मलेथा के ग्रामीणों का कहना है कि स्टोन क्रशर खोलने की सुगबुगाहट सुनाई दे रही है। यदि ऐसा हुआ, तो फिर से विरोध किया जाएगा। प्रमुख सचिव आनंद बर्धन का पक्ष जानने के लिए फोन किया गया, पर उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।

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