केदारनाथ आपदा की 5वीं बरसीः अपनों को खोने के गम में आज भी खून के आंसू रो रहे परिवार

Edited By Nitika,Updated: 18 Jun, 2018 04:35 PM

5th anniversary of kedarnath disaster

उत्तराखंड के केदारनाथ धाम में 16 जून 2013 की वह त्रासदी आने वाले कई दशकों के बाद भी आपदा प्रभावित परिवार भूला नहीं पाएंगे। केदारनाथ की उस भीषण जल प्रलय ने केदारघाटी के साथ ही देश-विदेश के हजारों लोगों की असमय ही जान ले ली थी।

देहरादूनः उत्तराखंड के केदारनाथ धाम में 16 जून 2013 की वह त्रासदी आने वाले कई दशकों के बाद भी आपदा प्रभावित परिवार भूला नहीं पाएंगे। केदारनाथ की उस भीषण जल प्रलय ने केदारघाटी के साथ ही देश-विदेश के हजारों लोगों की असमय ही जान ले ली थी। 

जानिए आपदा में कितने यात्रियों की गई जान 
जानकारी के अनुसार, साल 2013 में आई भीषण आपदा में 4400 से अधिक स्थानीय और देश-विदेश से आए तीर्थयात्रियों की जान चली गई थी। केदारनाथ से आई भीषण बाढ़ की लपटों ने 11091 मवेशियां भी बह गई जबकि 10309 हेक्टेयर कृषि भूमि भी तबाह हो गई। गांधी सरोवर से आई उस तबाही के सैलाब ने केदारनाथ से लेकर रुद्रप्रयाग तक 2141 अावासीय भवनों के साथ ही 2 दर्जन झूला पुलों का नामोनिशान मिटा दिया था। इसके साथ-साथ 100 से अधिक होटलों का भी नामोनिशान मिट गया था। 

मौत के सैलाब ने चारों तरफ मचाई त्राही 
उच्च हिमालयी क्षेत्रों पर बरसे मौत के सैलाब ने चारों तरफ त्राही मचा दी थी। इसके अतिरिक्त जगह जगह मोटरमार्ग, पैदल रास्ते, झूला पुल ध्वस्त हो गए थे। इसी बीच देश-विदेश से आए यात्रियों को भीषण आपदा से निकालने के लिए सेना और पुलिस ने मोर्चा सम्भाला और लाखों तीर्थयात्रियों को रेक्स्यू कर बाहर निकाला। 

केदारघाटी और कालीमठ घाटी के 991 लोग चढ़े आपदा की भेंट 
वहीं आपदा के 5 साल व्यतीत होने के बाद भी केदारघाटी के आपदा प्रभावित लोग अपनो के खोने के गम में आज भी खून के आंसू रो रहे हैं। प्रभावित परिवारों के पास रोजगार का कोई साधन ना होने से भी बोझ जैसी जिन्दगी गुजारने को विवश हो रखे हैं। केदारघाटी और कालीमठ घाटी के करीब 991 लोग इस आपदा की भेंट चढ़े थे। उस आपदा में किसी ने अपने जवान बेटे को खोया तो किसी अपने सुहाग को। किसी ने अपने भाई को तो किसी ने अपने पिता को खोया था। 

सरकार ने किए खोखले वादे 
सरकार और जनप्रतिनिधियों ने अनेक वादे और दावे किए लेकिन आपदा के बाद पीड़ितों अपने हाल पर जीने को छोड़ दिया है। कुछ गैर-सरकारी संगठनों ने महिलाओं को स्वावलम्बी बनाने की दिशा में कार्य किया है इन्हीं संस्थाओं में महिलायें उलझे धागों से अपनी जिन्दगी की डोर सुलझा रही हैं। 

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