भर्ती मामले में सफेद झूठ बोल रही योगी सरकार, RTI से मिली जनाकारी में 30 से 40 प्रतिशत पद रिक्त

Edited By Umakant yadav,Updated: 21 Sep, 2020 06:53 PM

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कर्मचारी, शिक्षक एवं अधिकारी, पेंशनर्स अधिकार मंच ने सरकार की तरफ से भर्ती के बारे में दिए जा रहे आकड़ा को सिरे से खारिज कर दिया है। मंच के अध्यक्ष डा. दिनेष चन्द्र शर्मा, प्रधान महासचिव सुषील कुमार त्रिपाठी...

लखनऊ: कर्मचारी, शिक्षक एवं अधिकारी, पेंशनर्स अधिकार मंच ने सरकार की तरफ से भर्ती के बारे में दिए जा रहे आकड़ा को सिरे से खारिज कर दिया है। मंच के अध्यक्ष डा. दिनेष चन्द्र शर्मा, प्रधान महासचिव सुषील कुमार त्रिपाठी तथा हरि किषोर तिवारी ने पत्रकारों से सामुहिक बातचीत के दौरान बताया कि सरकार अपने साढ़े तीन साल के भर्ती मामले के जो आकड़ें बता रही है वह गलत है। जन सूचना अधिकार के तहत दी गई जानकारी में इसका खुलासा होता है। सहकारिता, दिव्यांग सषक्तीकरण, कर्मचारी बीमा जन चिकित्सा, वाणिज्य कर, वाणिज्यकर मुख्यालय, सर्तकता जैसे दर्जनों विभागों में 30 से 40 प्रतिषत पद लम्बे अरसे से खाली पड़े है। 

भर्ती मामले को लेकर योगी सरकार बोल रही सफेद झूठ
पत्रकार वार्ता में मौजूद मंच के संरक्षक बाबा हरदेव सिंह, वरिष्ठ उपाध्यक्ष एस.के. सिंह, सतीष कुमार पाण्डेय, एन.पी. त्रिपाठी, यादवेन्द्र मिश्रा, वीरेन्द्र सिंह चैहान, षिवबरन सिंह यादव, रामराज दुबे और सुषील कुमार बच्चा ने संयुक्त रूप से बताया कि सरकार अपने कार्यकाल में भर्ती मामले में खुला झूठ बोल रही है। इसका उदाहरण हम कुछ ऐसे विभाग की रिक्तियों के आधार पर देगे जिन विभागों का जनता से सीधा सरोकार ही नहीं बल्कि ये विभाग संवेदनशील है। कलेक्ट्रेट के 243 सीजनल सहायक वासील वाकी नबीसों को विनियमतीकरण का प्रकरण शासन में काफी समय से लम्बित है। भर्ती के पहले इस पर आदेश होना आवश्यक है।

विभागों में खाली पद सरकार के दावों को कर रहे खोखले
मुख्य सचिव की बैठक में नियमावली पूर्ववत लागू करने का आदेश हुआ जो अभी भी शासन में लम्बित है। बिना नियमावली संषोधन के भर्ती प्रक्रिया दूषित रहेगी। सहकारिता विभाग सीधे कृशकों एवं ग्रामीण अर्थ व्यवस्था की रीढ़ है। इस विभाग में वर्तमान सरकार के सत्तासीन होने तक सहायक सांख्यिकी अधिकारी के कुल स्वीकृत 35 पदों के सापेक्ष मार्च 2020 तक रिक्तयां 33 हो गई यानि केवल दो अधिकारी तैनात है। अब बात करें दिव्यांगजन संशक्तिकरण विभाग यानि विकंलाग कल्याण विभाग जो अति संवेदनशील विभाग है, लगभग हर सरकार की तरह यह सरकार भी दिव्यांगो के बारे में संवेदनषील होने का दावा करती है लेकिन जब विभाग में खाली पदों को देखा जाता है तो सरकार के दावे खोखले लगते है।

जिला विकंलाग जन विकास अधिकारी के 75 पदों में से 36 पद रिक्त
सूचना के अधिकार से प्राप्त जानकारी में बताया गया कि विभाग में निदेषक, मुख्य वित्त लेखाधिकारी, संयुक्त निदेषक, सहायक लेखाधिकारी के सभी पद रिक्त पड़े है। जबकि उप निदेषक के 13 में से 12 पद रिक्त है। अधीक्षक के 18 में से 12 पद रिक्त है। जिला विकंलाग जन विकास अधिकारी के 75 पदों में से 36 पद रिक्त, प्रवक्ताओं के 48 में से 19 पद रिक्त पड़े है। चैकाने वाली बात यह है कि कुल 757 स्वीकृत पदों के सापेक्ष 343 पद रिक्त पड़े है। कुछ और उदाहरणों में संस्थागत वित्त, बीमा एवं बाह्य सहाययित परियोजना विभाग का हाल भी बुरा है। विभाग में 148 पदों के सापेक्ष 72 पद रिक्त पड़े है।

नागरिक सुरक्षा निदेशालय में 80 में से 76 पद रिक्त
वाणिज्य कर के निरीक्षक पदों में 278 के सापेक्ष 45 पद रिक्त पड़े है। नागरिक सुरक्षा निदेशालय की बात करें तो यहां उप निदेशक के 80 में से 76 पद रिक्त पड़े है। सर्तकता जैसे सरकार के महत्वपूर्ण अंग कहे जाने वाले विभाग में अधिकारी संवर्ग के 97 में से 66 पद, तृतीय श्रेणी के 603 में से 362 पदों के अलावा चतुर्थ श्रेणी की स्थिति तो बहुत खराब है कुल स्वीकृत पद 59 के सापेक्ष 43 पद रिक्त पड़े है। मंच के नेताओं ने आरोप लगाया कि वर्तमान सरकार लगातार कर्मचारी, शिक्षक, अधिकारी और पेंशनर्स विरोधी तथा उन्हें अपमानित करने वाले निर्णय लेती आ रही है। जब सरकार ने स्कूलों को बंद कर रखा है तो शिक्षकों की जान जोखिम में डालकर उन्हें स्कूल आना क्यों अनिवार्य किया गया है। कभी सरकार शिक्षकों को सेल्फी के साथ हाजिरी दर्ज कराने का आदेश करती है तो कभी उसे अक्षम होने की बात कह कर जबरन सेवानिवृत्त के आदेश देती हैं।

पुरानी पेंशन समाप्त कर सरकार संवर्गो के हकों में डाल रही डाका
यही नहीं पुरानी पेंशन समाप्ति एवं तमाम भत्ते समाप्त कर वैसे भी सरकार इन संवर्गो के हकों में डाका डाल चुकी है। नई पेंशन स्कीम का पैसा कहा है, किस स्थिति में है, कितना है इसका वास्तविक लेखा-जोखा तक सरकार के पास उपलब्ध नही है। मंच के नेताओं ने कहा कि सरकार को इस तरह के निर्णय एवं आदेष देने से पूर्व इससे होने वाले हानि लाभ पर पहले विचार करना चाहिए। बिना द्विपक्षीय वार्ता के लिए जा रहे निर्णयों से कर्मचारी, षिक्षक, अधिकारी और पेषनर्स समाज में आक्रोष पनप रहा है। इस आक्रोष के चलते मंच को आन्दोलन का रूख भी करना पड़ सकता है।

शासन में कर्मचारियों के हितार्थ चल रही पत्रावली वर्शो से धूल फांक रही
आगामी चुनाव के मद्देनजर सरकार को कर्मचारी, शिक्षक, अधिकारी और पेंशनर्स विरोधी लिये जा रहे निर्णय पर पुर्नविचार अवष्य कर लेना चाहिए। मुख्यमंत्री जी ने सचिवालय में एक सप्ताह के अन्दर पत्रावली का निरस्तारण करने का आदेश दिया है जबकि शासन में कर्मचारियों के हितार्थ चल रही पत्रावली वर्शो से धूल फांक रही है। उदाहरण में मुख्य प्रशासनिक अधिकारी के पदों पर पदोन्नति हेतु राजस्व परिशद के प्रस्ताव को चार पांच माह से लम्बित है जबकि राजस्व विभाग द्वारा एक माह में निस्तारण करने की सहमति दे चुका है। 

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