महिला दिवस पर मिसाल बनी ये महिला, यूं तय किया पति की घोर यातनाओं से लेकर मौजूदा जिंदगी तक का सफर

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 08 Mar, 2019 01:50 PM

women s day this woman became the example

8 मार्च को पूरे में विश्व में महिला दिवस मनाया जाता है। वहीं आज महिला दिवस के मौके पर आज हम एक ऐसी महिला के जज्बे की दास्तां सुनाने जा रहे हैं, जो उन महिलाओं के लिए एक मिसाल बन गई है जो मुश्किल हालातों में टूट जाती...

प्रयागराजः 8 मार्च को पूरे में विश्व में महिला दिवस मनाया जाता है। वहीं आज महिला दिवस के मौके पर आज हम एक ऐसी महिला के जज्बे की दास्तां सुनाने जा रहे हैं, जो उन महिलाओं के लिए एक मिसाल बन गई है जो मुश्किल हालातों में टूट जाती हैं। दहेज के दानवों से लड़ते-लड़ते हर साल देश में न जाने कितनी लाचार महिलाएं जिंदगी से हार कर मौत को गले लगा लेती हैं।लेकिन प्रयागराज की तबस्सुम ने दहेज की पीड़ा से जूझ रही महिलाओं के लिए एक ऐसी मिसाल पेश की है जिसे सुनकर आप भी हैरत में पड़ जाएंगे।
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लोगों के बीच चर्चा का विषय बनी ये साहसी महिला ​
प्रयागराज की सड़को में फरार्टे से दौड़ रही यह ऑटो रिक्शा शहर में ही नहीं बल्कि आसपास के इलाके में लोगों के बीच चर्चा की वजह बना हुआ है। चर्चा की वजह ऑटो रिक्शा चला रही यह युवती तबस्सुम नहीं बल्कि तबस्सुम के पीछे की वह संघर्ष की कहानी है। प्रतापगढ़ के एक छोटे से गांव नरसिंघ पुर में रहने वाली तबस्सुम की कहानी भी किसी हिन्दी फिल्म की स्टोरी जैसी है गांव की अनपढ़ लड़की तबस्सुम का 18 बरस में उसी गाँव के एक युवक नसीम से निकाह हो गया और एक ही साल में उसके घर खुशिया भी आ गई जब तबस्सुम मां बनी।
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लोहे की गरम सलाखों से जलाता था पति
तबस्सुम का बच्चा अब्दुलाह अभी कुछ ही दिन का ही हुआ था कि उसके पति नसीम ने उसे दहेज के लिए यातनाएं देनी शुरू कर दी। तबस्सुम को लोहे की गरम सलाखों से जलाया गया और फिर उसके पति ने दहेज के लिए घर से निकाल दिया। मायके जाकर तबस्सुम ने कोर्ट में अपने हक के लिए इन्साफ का दरवाजा खटखटाया और वह गुजारे भत्ते का केस जीत भी गई। केस जीतकर तबस्सुम जब नसीम के पास वापस आई तो नसीम एक बार इंसानियत की हदें तोड़ते हुए तबस्सुम की कलाई को चाकुओं से गोद डाला।
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खुदकुशी करने पर मजबूर हुई पीड़िता ​
तबस्सुम अब जिंदगी से निराश हो चुकी थी। घर में तीन दिनों तक भूखे रहने के बाद पैदल अपने ससुराल प्रतापगढ़ जिले के नरसिंग पुर गांव से चलते हुए तब्बसुम अपने बच्चे के साथ प्रयागराज के यमुना पुल पहुंची। तबस्सुम इसी पुल से अपने बच्चे को लेकर छलांग लगाने ही जा रही थी की एक बुजुर्ग ने उसे रोक लिया और उसे एक शेल्टर होम ले आया। शेल्टर होम आकर तबस्सुम ​सिस्टर शीबा से मिली और फिर शीबा ​ने उसे एक नई जिंदगी दी। उसे ​जिंदगी जीना ​सिखाया।
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ई-रिक्शा चलाकर संवारा अपना भविष्य
अनपढ़ तबस्सुम ने यही आकर जिंदगी में संघर्ष करने का सबक सीखा। तबस्सुम ने चन्दा इकट्ठा करके एक ई-रिक्शा खरीदा और यही ई-रिक्शा प्रयागराज की सड़कों में चलाकर तबस्सुम आज अपना और अपने परिवार के कई लोगों की जिंदगी चला रही है। उसका एकलौता बेटा शहर के सबसे नामचीन स्कूल में तालीम हासिल कर रहा है। तब्बसुम हर रोज नमाज अदा करके ऑटो चलाने निकलती है।
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पूरा शहर करता है तबस्सुम के हौसले और जज्बे को सलाम
तबस्सुम के हौसले और जज्बे की चर्चा पूरे शहर भर में है, जो भी तबस्सुम को देखता वह उसके जज्बे को सलाम किए बिना नहीं जाता। शहरवासियों का कहना है कि ऐसी महिलाओं को सम्मान देना चाहिए साथ ही सरकार को भी ऐसी महिलाओं को सम्मानित करना चाहिए।

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