क्या 'नारों' से बदलेंगे चुनावी समीकरण? ये रहे अभी तक के चर्चित नारे

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 13 Jan, 2019 06:30 PM

will the slogan change the electoral equation

राजनीतिक गठजोड़ और चुनावी मौसम नारों के बिना बेस्वाद लगता है, लेकिन बदलते राजनीतिक समीकरण नारों की भाषा भी बदल देते हैं। जो कभी एक दूसरे के खिलाफ नारा लगाया करते थे, अब वे एक साथ हैं तो सोचिये, अब नयी दोस्ती...

लखनऊः राजनीतिक गठजोड़ और चुनावी मौसम नारों के बिना बेस्वाद लगता है, लेकिन बदलते राजनीतिक समीकरण नारों की भाषा भी बदल देते हैं। जो कभी एक दूसरे के खिलाफ नारा लगाया करते थे, अब वे एक साथ हैं तो सोचिये, अब नयी दोस्ती के नये नारे कैसे होंगे। एक समय ‘‘चढ़ गुंडन की छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर‘’ का नारा देने वाली बसपा अब सपा के साथ है और 2019 का चुनाव मिल कर लड़ रही है। जाहिर है कि इस गठबंधन के बाद नारों का रंग रूप भी बदल जाएगा।

काफी र्चिचत रहा ‘‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा हो गए जयश्रीराम’’ नारा
वहीं ‘‘उत्तर प्रदेश को ये साथ पसंद है’’ का नारा देने वाली सपा को अब कांग्रेस ‘‘नापसंद’’ है। राजनीतिक विश्लेषक विमल किशोर ने कहा ‘‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा हो गए जयश्रीराम’’ ... 1993 में जब उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा ने मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था तो भाजपा को टार्गेट करता हुआ ये नारा काफी र्चिचत रहा।‘‘उन्होंने कहा,‘‘अब एक बार फिर सपा-बसपा साथ हैं लेकिन नेतृत्व बदल गये हैं। मुलायम की जगह अखिलेश यादव और कांशीराम की जगह मायावती हैं।

2007 में खासा चला ‘‘हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा-विष्णु महेश है’’ नारा
सपा-बसपा ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन कर उत्तर प्रदेश की सीटों का बंटवारा भी कर लिया है तो ऐसे में दिलचस्प नारे सामने अवश्य आएंगे ।‘‘ किशोर ने पूर्व के कुछ दिलचस्प चुनावी नारों की याद दिलायी ... 2007 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बसपा का नारा ‘‘हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा-विष्णु महेश है’’ खासा चला। 2014 में भाजपा ने नारा दिया, ‘‘अबकी बार मोदी सरकार’’ जो पार्टी की विजय का कारक बना। ‘‘जात पर न पात पर, मुहर लगेगी हाथ पर’’, 1996 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस द्वारा दिया गया ये नारा खूब गूंजा।

इन चर्चित नारों से हुए वार-पलटवार
चुनावी मौसम में नारों को संगीत में पिरोकर लाउडस्पीकर के सहारे आम लोगों तक पहुंचाने वाले लोक कलाकार आशीष तिवारी ने कहा,‘‘इस दीपक में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं... यह नारा एक समय जनसंघ के नारे ‘‘जली झोपड़ी भागे बैल, यह देखो दीपक का खेल’’ के जवाब में कांग्रेस का पलटवार था।‘‘

‘‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’’ इस पर विपक्षी तंज-‘‘पर तारीख नहीं बताएंगे’’
उन्होंने बताया कि भाजपा ने शुरूआती दिनों में जोरदार नारा दिया था, ‘‘अटल, आडवाणी, कमल निशान, मांग रहा है हिंदुस्तान’’। सोनिया गांधी पर निशाना साधते हुए भाजपा ने 1999 में नारा दिया, ‘‘राम और रोम की लडाई। ’’तिवारी ने कहा कि राम मंदिर आंदोलन के समय भाजपा और आरएसएस के नारे ‘‘सौगंध राम की खाते हैं, हम मंदिर वहीं बनाएंगे’’, ‘‘ये तो पहली झांकी है, काशी मथुरा बाकी है’’ , ‘‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे’’ जनभावनाओं के प्रचंड प्रेरक बने । इस नारे के जवाब में आज तक यह कहकर तंज किया जाता है ... ‘‘पर तारीख नहीं बताएंगे।’’

खूब चला ‘‘सबको देखा बारी बारी, अबकी बारी अटल बिहारी’’
उन्होंने बताया कि भाजपा ने 1996 में नारा दिया था, ‘‘सबको देखा बारी बारी, अबकी बारी अटल बिहारी’’ खूब चला। पिछले चार दशकों से राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रद्युम्न तिवारी ने कहा कि 1989 के चुनाव में वी पी सिंह को लेकर ‘‘राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है’’, दिया गया नारा उन्हें सत्ता की सीढियां चढ़ा ले गया ।

दिलचस्प नारा रहा ‘‘चलेगा हाथी उड़ेगी धूल, ना रहेगा हाथ, ना रहेगा फूल’’
उन्होंने कहा,‘‘गरीबी हटाओ’’... 1971 में इंदिरा गांधी ने यह नारा दिया था। उस दौरान वह अपनी हर चुनावी सभा में भाषण के अंत में एक ही वाक्य बोलती थीं- ‘‘वे कहते हैं, इंदिरा हटाओ, मैं कहती हूं गरीबी हटाओ, फैसला आपको करना है।’’ तिवारी ने कहा कि बसपा ने कांग्रेस और भाजपा की काट के लिए दिलचस्प नारा दिया था, ‘‘चलेगा हाथी उड़ेगी धूल, ना रहेगा हाथ, ना रहेगा फूल’’। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की बहन प्रियंका गांधी जब पहली बार चुनाव प्रचार करने अमेठी गयीं तो कांग्रेसियों का यह नारा हिट रहा था, ‘‘अमेठी का डंका, बेटी प्रियंका’’।



 

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