कुंभ मेले में माटी के चूल्हे और गोबर के उपले कर रहे लोगों की प्रतीक्षा

Edited By Ruby,Updated: 29 Dec, 2018 03:34 PM

waiting for the people who are taking the stove kumbh fair

विश्व के सबसे बड़े आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम कुंभ मेले में दूर-दराज से आने वाले कल्पवासियों का मिट्टी से बने चूल्हे और गोबर के उपले बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे हैं। संगम की रेती पर दूर दराज से आकर श्रद्धालु एवं साधु-महात्मा एक मास का कल्पवास...

प्रयागराजः विश्व के सबसे बड़े आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समागम कुंभ मेले में दूर-दराज से आने वाले कल्पवासियों का मिट्टी से बने चूल्हे और गोबर के उपले बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे हैं। संगम की रेती पर दूर दराज से आकर श्रद्धालु एवं साधु-महात्मा एक मास का कल्पवास करते हैं। उस दौरान यहां पर मिट्टी से बने चूल्हे, बोरसी और गोबर से बने उपलों की मांग अधिक हो जाती है। चूल्हे पर खाना पकाने, बोरसी में उपला जलाकर हाथ पैर सेंकने की कड़ाके की सर्दी में आवश्यकता पड़ती है। 

संगम की रेती पर धूनी लगाने के लिए कल्पवासी, साधु, संत और महात्मा कल्पवास के दौरान एक मास तक चूल्हे का ही प्रयोग करते हैं। वे संगम में डुबकी लगाने के साथ मिट्टी के चूल्हे पर बने भोजन से दिन की शुरूआत करते हैं। जिसमें दान,ध्यान और मोक्ष की प्राप्ति करने का मार्ग छिपा होता है। शुद्धता को पहली प्राथमिकता माना जाता है जिसमें मिट्टी के बनू चूल्हे और गोबर के बने उपले शुद्धता की कसौटी पर खरे माने जाते हैं।

संगम क्षेत्र के आपसपास रहने वाले लोग सालभर तक मेले की प्रतीक्षा करते हैं। ये लोग मिट्टी का चूल्हा और गोबर से बने उपलों को बेचकर अपना जीवन यहीं यापन करते हैं। अगले साल माघ मेला, कुंभ या अद्र्ध कुंभ का इंतजार करते हैं।  दारागंज में दशास्वमेघ घाट के आस-पास और शास्त्री पुल के नीचे झोपड़पट्टी में रहने वाले लोग माटी के चूल्हे और गोबर से उपले पाथने में व्यस्त हैं। कुंभ मेला ऐसे लोगों के लिए रोजगार का अवसर होता है, जो संगम के इर्द-गिर्द रह कर संगम में श्रद्धालुओं को रोजमर्रा के सामान बेचने के लिए छोटी-छोटी दुकान खोलकर परिवार का गुजर बसर करते हैं।  

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