परेशानियों से बेजार वृंदावन की विधवाओं को नहीं चुनाव से कोई सरोकार

Edited By Ruby,Updated: 01 Apr, 2019 02:30 PM

vrindavan widows to face problems no issues with elections

वृंदावनः चिलचिलाती धूप में भोजन के लिए लंबी कतार में खड़ी 90 बरस की सुधा दासी को याद नहीं है कि उन्होंने आखिरी बार मतदान कब किया था और ना ही वह आगामी लोकसभा चुनाव में मतदान करेंगी क्योंकि उनका मानना है कि इससे ना तो उनकी परेशानियां खत्म होंगी और ना...

वृंदावनः चिलचिलाती धूप में भोजन के लिए लंबी कतार में खड़ी 90 बरस की सुधा दासी को याद नहीं है कि उन्होंने आखिरी बार मतदान कब किया था और ना ही वह आगामी लोकसभा चुनाव में मतदान करेंगी क्योंकि उनका मानना है कि इससे ना तो उनकी परेशानियां खत्म होंगी और ना ही जिंदगी की जद्दोजहद।  यह सिर्फ एक सुधा की कहानी नहीं बल्कि वृंदावन में रहने वाली सैकड़ों विधवाओं की यही सोच है। सुधा पश्चिम बंगाल से है और पिछले पांच दशक से कृष्ण की नगरी में है। वृंदावन की संकरी गलियों में आपको उनके जैसी कई विधवायें भीख मांगती, भंडारे की कतार में या बीस रूपये के लिए घंटों किसी आश्रम या मंदिर में भजन गाती दिख जाएंगी। 

एक मोटे अनुमान के मुताबिक, मथुरा लोकसभा क्षेत्र के वृंदावन, गोवर्धन, राधाकुंड इलाके में करीब पांच से छह हजार विधवायें रहती हैं जिनमें से अधिकतर पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड से हैं। जिन्हें या तो परिवार ने परित्यक्ता बना दिया या उनका कोई सगा बचा नहीं। संख्या में कम होने के कारण वे किसी राजनीतिक दल का वोट बैंक नहीं हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में तो उनके पास मतदाता पहचान पत्र भी नहीं थे लेकिन इस बार राज्य सरकार द्वारा संचालित निराश्रय सदनों में रहने वाली करीब 60 प्रतिशत निराश्रित विधवाओं के पास मतदाता पहचान पत्र हैं । लेकिन यक्ष प्रश्न यह है कि क्या वे मतदान करेंगी। उत्तर प्रदेश सरकार के महिला और बाल कल्याण विभाग के मुताबिक, वृंदावन में चैतन्य विहार फेस एक, दो, सीताराम सदन, रास बिहारी, लीला कुंज और कृष्णा कुटीर में कुल 513 विधवायें रहती है । इनमें से पहली बार 305 के मतदाता पहचान पत्र बन गए हैं लेकिन यह सड़कों पर बदतर हालात में बसर कर रही कुल विधवाओं की संख्या का करीब 10 प्रतिशत ही है ।        

कुछ विधवाएं निजी गैर सरकारी संगठनों के आश्रमों में या किराये के कमरों में रहती हैं जिनके पास मतदाता पहचान पत्र नहीं है। एनजीओ अधिकारियों का कहना है कि सीमित संसाधनों में उनके लिये यह बनवा पाना आसान नहीं है। कुल 53 विधवाओं को आश्रय दे रहे एक मशहूर एनजीओ की अधिकारी ने कहा ,‘‘ इन औपचारिकताओं को पूरा करना आसान नहीं है क्योंकि कुछ माताजी (वृंदावन में अमूमन उन्हें इसी नाम से बुलाया जाता है) बहुत बुजुर्ग हैं। हमारे पास आवागमन की सुविधा और स्टाफ भी नहीं है।’’   दूसरी ओर अपनी जिंदगी से आजिज आ चुकी इन महिलाओं की भी मतदान के मौलिक अधिकार को हासिल करने में कोई दिलचस्पी नहीं है ।               

 

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