विकास दूबे मामला: अंजाम सही मगर तरीके पर ऐतराज

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 11 Jul, 2020 10:47 AM

vikas dubey case the outcome is true but object to the way

उत्तर प्रदेश में कानपुर के संचेडी क्षेत्र में शुक्रवार को आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मुख्य आरोपी विकास दुबे को मारे जाने को लेकर भले ही राजनीतिक घमासान मचा हो लेकिन आम लोगों दुर्दांत के खात्मे से राहत महसूस कर रहे हैं हालांकि मुठभेड़ के तौर तरीके...

कानपुरः उत्तर प्रदेश में कानपुर के संचेडी क्षेत्र में शुक्रवार को आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मुख्य आरोपी विकास दुबे को मारे जाने को लेकर भले ही राजनीतिक घमासान मचा हो लेकिन आम लोगों दुर्दांत के खात्मे से राहत महसूस कर रहे हैं हालांकि मुठभेड़ के तौर तरीके से पूरी तरह सहमत नहीं है और कानून व्यवस्था के लिये शुभ संकेत नहीं मानते।      

चौबेपुर के बिकरू गांव में दो जुलाई की रात दबिश देने गयी पुलिस टीम पर विकास और उसके गुर्गो ने हमला कर दिया था जिसमें आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गये थे जबकि सात घायल हो गये थे। पुलिस ने घटना के तुरंत बाद एक मुठभेड़ में विकास के मामा और एक अन्य रिश्तेदार को ढेर कर दिया था जबकि बाद में एक एक कर उसके तीन साथियों को मार गिराया था जबकि तीन को गिरफ्तार कर लिया था।

इसी कड़ी में विकास को गुरूवार को उज्जैन के महाकाल क्षेत्र में गिरफ्तार किया गया और आज कानपुर लाते समय उसको कानपुर के संचेडी में मार गिराया गया। पुलिस का दावा है कि अपराधी दुर्घटनाग्रस्त वाहन से भाग रहा था और पुलिस पर गोली चला रहा था जिसके बाद जवाबी कारर्वाई में उसका खात्मा किया गया। कानपुर के परमट क्षेत्र के निवासी आनंद शर्मा ने कहा कि विकास जिस अंदाज में मारा गया,वह बिल्कुल सही है। अगर वह जिंदा रहता तो शायद एक बार फिर गवाह और सबूत के अभाव में बच जाता लेकिन विकास और उसके साथी प्रभात जिन परिस्थितियों में पुलिस मुठभेड़ में मारे गये, उससे न्यायपालिका की प्रांसगिकता पर सवालिया निशान तो लगा ही है।

उन्होंने कहा कि अगर न्याय प्रणाली इस तरह की हो कि मुजरिम को उसको अपने किये की सजा जल्द दिला सके तो फिर ऐसी मुठभेड़ की नौबत ही क्यों आये। वैसे भी अगर विकास अदालत की चौखट पर पहुंच जाता तो न जाने कितने सफेदपोशों के नकाब उतरते। वह एक तरह से पुलिस अफसरों और खादी धारकों के लिये भी बडा खतरा बन चुका था। इससे वे लोग अब राहत महसूस कर रहे होंगे लेकिन लोगों के न्यायपालिका के भरोसे पर चोट तो पहुंची ही है।

साकेतनगर क्षेत्र में शिक्षाविद सागर अग्निहोत्री ने कहा कि विकास दुबे जैसे दर्जनो दहशतगर्द अभी भी हमारे समाज में है जो नेताओं के लिये जनता की भीड़ को जुटाते है और साम दाम दंड भेद से वोटों का जुगाड़ करते है। राजनीतिक सरपरस्ती के चलते पुलिस भी इनका बाल बांका नहीं कर सकती। आज एक विकास मारा गया तो मरने के साथ न्याय व्यवस्था पर भी सवालिया निशान लगा गया लेकिन ऐसे कई विकास भ्रष्ट सिस्टम की आड़ में आज भी लोगों को डराने धमकाने और राजनेताओं की खिदमत में तैयार खड़े है। परमपुरवा निवासी व्यवसायी एम जेड खान ने कहा कि विकास ने जिस अंदाज से पुलिसकर्मियों की हत्या की, वह साधारण अपराधी के बूते की बात कतई नहीं थी। पुलिस पर हाथ उठाने की उसे सही सजा मिली मगर तरीका गलत था। अगर पुलिस इसी तरह न्याय का फैसला करती रहेगी तो अदालतों का कोई वजूद नहीं रह जायेगा। आज जरूरत इस बात की है कि राजनीति से अपराध को कैसे अलग किया जाये। शहीद के परिजनो ने भी विकास की मौत पर संतुष्टि जतायी मगर पुलिस की कार्यशैली पर सवाल खड़े किये हैं। कांग्रेस,समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी समेत समूचे विपक्ष ने मुठभेड़ को संदिग्ध करार देते हुये इस मामले की न्यायिक जांच की मांग की है।

यहां गौर करने वाली बात है कि आज मारे गये विकास दुबे ने वर्ष 2001 में तत्कालीन भाजपा सरकार में राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त संतोष शुक्ला की शिवली थाने के अंदर हत्या कर दी थी लेकिन किसी भी पुलिस वाले ने उसके खिलाफ गवाही नहीं दी थी। साक्ष्यों के अभाव में वह अदालत से साफ बरी हो गया था। इसके बाद वह समाजवादी पार्टी और बसपा समेत अन्य दलों में भी रहा और हाल ही में वायरल एक वीडियो में उसके भाजपा विधायकों से भी संपर्क की बात सामने आयी थी। 


 

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