काशी के पिशाच कुंड में भूत-प्रेतों को सिक्कों में किया जाता है कैद, जानिए कैसे

Edited By Ruby,Updated: 25 Sep, 2018 04:16 PM

भूत-प्रेत को कैद करना और वो भी सिक्को में, शायद ही कहीं आपने सुना होगा पर काशी में ऐसा भी होता है और ये वर्षो से होता आ रहा है। दरअसल यहां पूजारी सिक्के को पेड़ में कील से ठोक देते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे अशांत आत्माओं को भी मुक्ति मिल जाती...

वाराणसीः भूत-प्रेत को कैद करना और वो भी सिक्को में, शायद ही कहीं आपने सुना होगा पर काशी में ऐसा भी होता है और ये वर्षो से होता आ रहा है। दरअसल यहां पुजारी सिक्के को पेड़ में कील से ठोक देते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे अशांत आत्माओं को भी मुक्ति मिल जाती है। 

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पितृपक्ष में पितरों को पिंडदान करने की परंपरा हिंदू धर्म में सदियों से चलती आई है। इन्हीं परंपराओं और मान्यताओं के मुताबिक 24 सितंबर से 8 अक्तूबर तक पिंडदान किया जाता है, लेकिन वाराणसी के पिशाच मोचन कुंड में भटके प्रेत आत्मा को वश में किया जाता है। बताया जाता है कि ये कुंड काफी पुराना है। ऐसी मान्यता है कि अगर इसके किनारे बैठ कर पिंडदान किया जाए तो भटकती आत्माओं को भी मुक्ति मिल जाती है। यही वजह है कि लोग पिशाच मोचन कुंड में अपने पितरों को प्रेत बाधा से मुक्ति दिलाने के लिए तर्पण-श्राद्ध  करते हैं।

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इस सम्बन्ध में पिशाच मोचन तीर्थ के प्रधान पुरोहित फेकू उपाध्याय का कहना है कि इस पेड़ का कोई आद्यात्मिक महत्त्व नहीं है और ना ही इसका कहीं उल्लेख है, जिस तरह से शादी सभी हिन्दू धर्मों में एक प्रकार से होती है बस सभी के यहां लोकाचार अलग होते हैं उसी प्रकार यह प्रक्रिया भी है। यह भी पितृपक्ष का एक लोकाचार है जिसे सुल्तानपुर और प्रतापगढ़ के लोग मानते हैं। 

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उनकी मान्यता है कि यदि वो अपने माथे के ऊपर से या सिर के ऊपर से लोहे की कील तीन बार घुमाकर इस पेड़ में ठोक देंगे तो उनके और उनके परिवार के ऊपर से प्रेत बाधा हमेशा के लिए खत्म हो जाएंगी। प्रेत बाधा से मुक्ति का यह पेड़ सैंकड़ों वर्षों से यहीं खड़ा है। इस पेड़ पर नित्य नए कील ठोके जाते हैं और लोग प्रेत बाधा से मुक्ति की कामना करते हैं।
 

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