उत्तर प्रदेश में होते हैं ऐसे उत्पाद जो देश में कहीं नहीं हैं उपलब्ध

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 17 Feb, 2019 01:38 PM

uttar pradesh contains such products which are not available

उत्तर प्रदेश काला नमक चावल, गेहूं डंठल शिल्प और चिकनकारी जैसे कुछ ऐसे उत्पादों की सौगात देता है जो देश में कहीं किसी और जगह पर उपलब्ध नहीं हैं। प्रदेश मेंचल रही ‘एक जनपद एक उत्पाद’ यानी वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट’योजना का मकसद परं...

लखनऊः उत्तर प्रदेश काला नमक चावल, गेहूं डंठल शिल्प और चिकनकारी जैसे कुछ ऐसे उत्पादों की सौगात देता है जो देश में कहीं किसी और जगह पर उपलब्ध नहीं हैं। प्रदेश मेंचल रही ‘एक जनपद एक उत्पाद’ यानी वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट’योजना का मकसद परंपरागत उत्पादों, कला, शिल्प, कारीगरी को प्रोत्साहित तो करना है ही, उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बिक्री का बड़ा मंच तैयार करके देना भी है।
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इनमें से अधिकांश उत्पाद ऐसे हैं, जो अपनी पहचान खो रहे थे, लेकिन वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट योजना से इन उत्पादों को आधुनिकता के सांचे में ढाला गया है। काला नमक चावल उगाने वाले सिद्धार्थनगर के किसान राम निहोर ने को फोन पर बताया कि हमारे जिले के लिए काला नमक चावल का चयन किये जाने से एक जनपद एक उत्पाद योजना के तहत हम जैसे किसानों को ना सिर्फ अच्छे दाम मिलेंगे बल्कि बिक्री का बड़ा मंच भी हासिल होगा।‘‘
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आंवले का कारोबार करने वाले प्रतापगढ़ निवासी अमरेन्द्र कुमार मिश्रा ने बताया कि प्रतापगढ़ का आंवला बहुत मशहूर है लेकिन उचित मार्केटिंग और बाजार के अभाव में आंवले के उत्पादों की अपेक्षित बिक्री नहीं हो पाती। ऐसे में ओडीओपी:एक जनपद एक उत्पाद: योजना से आंवला उत्पादकों को काफी उम्मीदें हैं।‘‘
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चिकनकारी एवं जरी-जरदोजी का काम करने लखनऊ के मोहम्मद इकबाल खान ने कहा,‘‘उत्तर प्रदेश की विविधता यहाँ की शिल्पकला और उद्यमिता छोटे छोटे कस्बों एवं शहरों में फैली है । यहाँ का हर कस्बा और जनपद अपने विशिष्ट और असाधारण उत्पादों के लिए मशहूर है।‘‘ आर्थिक विश्लेषक शिव सुंदर सिंह ने कहा,‘‘उत्तर प्रदेश में ऐसे उत्पाद बनते हैं जो देश में कहीं और उपलब्ध नहीं हैं।
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मसलन प्राचीन एवं पौष्टिक काला नमक चावल, दुर्लभ एवं अकल्पनीय गेहूँ डंठल शिल्प, दुनिया भर में मशहूर चिकनकारी, कपड़ों पर कारी-जरदोकी का काम, मृत पशु से प्राप्त सींगों और हड्डियों से अति जटिल शिल्प कार्य जो हाथी दांत का प्रकृति-अनुकूल विकल्प है।‘‘ उन्होंने कहा कि इनमें से बहुत से उत्पाद जीआई टैग अर्थात भौगोलिक पहचान पट्टिका धारक हैं। इनमें से तमाम ऐसे उत्पाद हैं जो अपनी पहचान खो रहे थे तथा जिन्हें आधुनिकता तथा प्रसार रूपी संजीवनी द्वारा पुनर्जीवित किया जा रहा है।

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