UP Election Result 2022: CM योगी को गोरखपुर मठ वापस भेजने का अखिलेश का दावा धारासाई

Edited By Mamta Yadav,Updated: 11 Mar, 2022 01:31 PM

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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में राज्‍य की मुख्‍य विपक्षी समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव पूरे चुनाव के दौरान उम्‍मीदों से भरे रहे और दावा करते रहे कि मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ को जनता वापस गोरखपुर भेज देगी लेकिन उनका दावा सच साबित नहीं हो...

लखनऊ: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में राज्‍य की मुख्‍य विपक्षी समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव पूरे चुनाव के दौरान उम्‍मीदों से भरे रहे और दावा करते रहे कि मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ को जनता वापस गोरखपुर भेज देगी लेकिन उनका दावा सच साबित नहीं हो सका। पर, राजनीतिक विश्लेषकों ने यह माना कि अकेले दम पर भारतीय जनता पार्टी की भारी भरकम सेना से अखिलेश ने कड़ा मुकाबला किया और पिछले विधानसभा चुनाव की अपेक्षा अपनी पार्टी को काफी मजबूत स्थिति में ला दिया।

निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के मुताबिक यादव की अगुवाई वाली सपा को अकेले 111 सीटों पर जीत मिल गई। इसके अलावा यादव के गठबंधन में शामिल राष्ट्रीय लोकदल को आठ सीटों पर जीत मिली है जबकि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी 6 सीटों पर जीत गई है। जहां भाजपा ने स्टार प्रचारकों का तांता लगा दिया वहीं उत्तर प्रदेश के चुनावों में अखिलेश यादव टिकट बांटने से लेकर सहयोगी चुनने तक समाजवादी पार्टी का अकेला चेहरा थे। यह सपा अध्यक्ष का वन-मैन शो था। उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ से करीब एक वर्ष छोटे 48 वर्षीय अखिलेश यादव ने चुनावी जनसभाओं में दावा किया कि योगी को जनता गोरखपुर भेज देगी।

चूंकि पहले उनके अयोध्या से विधानसभा चुनाव लड़ने की अटकलें थीं लेकिन बाद में भाजपा ने उन्हें गोरखपुर से उम्मीदवार घोषित कर दिया। तभी से अखिलेश यादव कहते थे कि पार्टी ने उन्हें उनके घर भेज दिया और अब जनता नियमित रूप से उन्हें उनके घर भेज देगी। हालांकि भाजपा प्रचंड बहुमत से सत्ता में वापसी करती प्रतीत हो रही है और कड़े संघर्ष के बावजूद यादव सत्‍ता के महासंग्राम में पीछे हो गये हैं। योगी गोरखपुर की प्रसिद्ध गोरक्षपीठ के महंत भी हैं। एक जुलाई 1973 को सैफई में समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के पुत्र के रूप में जन्मे अखिलेश यादव ने बहुत कम उम्र में राजनीति में प्रवेश किया और 2000 में कन्नौज संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का उप चुनाव जीतकर संसद सदस्य बने। इस समय यादव आजमगढ़ संसदीय क्षेत्र से सांसद हैं और मौजूदा चुनाव में मैनपुरी की करहल सीट से करीब 67 हजार मतों के अंतर से विधानसभा चुनाव जीत गये हैं।

यादव ने पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा। अखिलेश यादव ने 2017 में कांग्रेस पार्टी से गठबंधन कर चुनाव लड़ा लेकिन मात्र 47 सीटें ही सपा को मिल सकी और कांग्रेस भी सात सीटों पर सिमट गई। 2019 के लोकसभा चुनाव में यादव ने बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन किया और तब बसपा को 10 सीटों पर जीत मिली लेकिन सपा को मात्र पांच सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। यादव ने बड़े दलों से गठबंधन कर असफलता का स्वाद चखने के बाद पहली बार छोटे छोटे दलों से गठबंधन किया।

उन्होंने इस बार चुनाव में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, अपना दल (कमेरावादी), महान दल, जनवादी सोशलिस्ट और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के साथ गठबंधन किया। ये सभी दल जातीय जनाधार रखने वाले नेताओं क्रमश: ओमप्रकाश राजभर, कृष्णा पटेल, डॉक्टर संजय चौहान और शिवपाल सिंह यादव की अगुवाई में उत्‍तर प्रदेश में सक्रिय हैं। अति पिछड़े वर्ग के इन नेताओं को साथ जोड़ने के अलावा यादव ने योगी सरकार पर पिछड़ों की उपेक्षा का आरोप लगाकर मंत्री पद से इस्तीफा देने वाले स्‍वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान और धर्म सिंह सैनी को भी सपा में शामिल किया। यादव ने नारा दिया कि 2022 में सामाजिक न्‍याय का इंकलाब होगा और समाजवादी पार्टी की सरकार बनेगी।

राजस्थान के धौलपुर के मिलिट्री स्कूल से पढ़ाई करने वाले अखिलेश यादव ने सिडनी विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया से पर्यावरण इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री भी प्राप्त की है। उनकी धर्मपत्नी डिंपल यादव कन्नौज की पूर्व सांसद हैं और दोनों की दो बेटियां और एक बेटा है। 2012 में, सपा की युवा शाखा के प्रमुख और फिर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के कार्यकाल के बाद, वह अपने पिता के आशीर्वाद से 2012 में 38 साल के राज्य के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बन गए। इसके पहले उन्‍होंने बदलाव के लिए पूरे प्रदेश में साइकिल यात्राओं का नेतृत्व किया था। सपा इकाई के प्रमुख और मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के शुरुआती वर्षों में उन्होंने डीपी यादव, अमर सिंह और आजम खान जैसे राजनेताओं से निपटने के लिए अपने पिता की विरासत के साथ संघर्ष किया।

उनके चाचा शिवपाल यादव, माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल को उनकी मर्जी के खिलाफ सपा में ले आए और इसके बाद अखिलेश यादव ने अंसारी की पार्टी के विलय से इनकार कर दिया। इससे उनके चाचा शिवपाल यादव से उनकी दूरी भी बढ़ गई। जनवरी 2017 में पार्टी के एक आपातकालीन सम्मेलन में सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद से हटा दिया गया और उन्‍हें पार्टी का ‘‘संरक्षक'' घोषित किया गया। इसके बाद भाजपा ने मुगल काल में अपने पिता शाहजहां का तख्ता पलट कर बादशाह बनने वाले औरंगजेब से यादव की तुलना की थी।

यादव ने अपने चाचा शिवपाल से सपा पर काबिज होने की अदालती लड़ाई भी लड़ी और फैसला अखिलेश के पक्ष में हुआ और उन्‍हें सपा का चुनाव चिन्‍ह साइकिल आवंटित हुआ। इस बार विधानसभा चुनाव में पुरानी कड़वाहटों को दरकिनार कर यादव ने अपने चाचा शिवपाल के साथ तालमेल किया और सपा की छवि बदलने की मुहिम शुरू कर दी। उन्‍होंने भाजपा सरकार में एनसीआरबी के आंकड़ों के हवाले से अपराध बढ़ने समेत कई गंभीर आरोप लगाए और बदलाव की लड़ाई शुरू की।

 

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