UP Election 2022: सपा ने अपने 52% वोट बैंक पिछड़ी जाति को सहजने के लिए बनाई नई रणनीति

Edited By Umakant yadav,Updated: 27 Jul, 2021 01:40 PM

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समाजवादी पार्ठी ने पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों को लामबंद करने की नई रणनीति बनाई है। इसके तहत प्रदेश को चार हिस्से में बांट कर अभियान शुरू किया गया है। इसकी कमान पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष व विधान परिषद सदस्य राजपाल कश्यप ने संभाली है।...

लखनऊ: समाजवादी पार्ठी ने पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों को लामबंद करने की नई रणनीति बनाई है। इसके तहत प्रदेश को चार हिस्से में बांट कर अभियान शुरू किया गया है। इसकी कमान पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष व विधान परिषद सदस्य राजपाल कश्यप ने संभाली है। कश्यप विधानसभा क्षेत्रवार कार्यकर्ता सम्मेलन कर रहे हैं। साथ ही वह अति पिछड़ा वर्ग के कार्यकर्ता के घर भी जा रहे हैं। अभियान के जरिए जातीय गोलबंदी के साथ संबंधित विधानसभा क्षेत्र के सियासी समीकरण की थाह भी ली जा रही है। इसकी शुरुआत पूर्वांचल से हुई है।

सपा पिछड़ी जातियों को अपना आधार वोट बैंक मानती है, लेकिन विपक्षी दल यादव-मुस्लिम को छोड़ अन्य जातियों में किसी न किसी रूप में सेंधमारी करने में सफल होते रहे हैं। विधानसभा व लोकसभा चुनाव में हार के बाद हुई समीक्षा में यह बात सामने आई कि अति पिछड़े वर्ग का वोटबैंक पार्टी हिस्से में नहीं आ पाया था। ऐसे में चुनावी समर शुरू होने से पहले ही इस बार इन जातियों की गोलबंदी शुरू हो गई है। सपा ने पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों को लामबंद करने के लिए अभियान शुरू किया है। इसमें विधानसभा क्षेत्रवार अति पिछड़ी जातियों पर विशेष फोकस किया जा रहा है। इसी आधार पर संगठन में भी भागीदारी बढ़ाई जा रही है। राजपाल कश्यप सुल्तानपुर, जौनपुर, गाजीपुर, चंदौली में विधानसभा क्षेत्रवार सम्मेलन कर चुके हैं। वह आज वाराणसी, 28 को सोनभद्र, 29 को मिर्जापुर, 30 को भदोही और 31 जुलाई व एक अगस्त को प्रयागराज में रहेंगे। अति पिछड़ी जाति के लिए हुए एक-एक कार्य को बाकायदे मंच और दस्तावेज के जरिए उन तक पहुंचाया जा रहा है। अगले चरण में मध्य यूपी और फिर बुंदेलखंड में यह अभियान चलेगा। अंतिम चरण में पश्चिमी यूपी को शामिल किया गया है। पिछड़ी और अति पिछड़ी जाति को लेकर सपा के सामने दोहरी चुनौती है। एक तरफ भाजपा और बसपा ताल ठोंक रही है तो दूसरी तरफ अलग-अलग जाति के नए संगठन भी चुनाव मैदान में उतर रहे हैं। ऐसे में सपा पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के जरिए इस आधार वोटबैंक को सहेजने में जुट गई है।

अति पिछड़ी जातियों में केवट, मल्लाह, बिंद, लोहार, कुम्हार, कहार, माली, बियार, बारी आदि जातियां अलग-अलग सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं। प्रदेश का जातीय गणित देखा जाए तो करीब 52 फीसदी वोटबैंक पिछड़ी जाति का माना जाता है। इसमें करीब 42 फीसदी गैर यादव वोटबैंक है। यह वोटबैंक समय के साथ अलग- अलग पाटिर्यों के साथ रहता रहा है। इसी तरह 16 जिले में करीब 12 फीसदी कुर्मी और 13 जिले में करीब 10 फीसदी मौर्य, कुशवाहा व शाक्य हैं। इसी तरह मध्य, पश्चिम और बुंदेलखंड को मिलाकर करीब 23 जिलों में पांच से 10 फीसदी लोध वोटबैंक, गंगा, यमुना, गोमती सहित विभिन्न नदियों के किनारे बसी आबादी में करीब छह फीसदी मल्लाह वोटबैंक माने जाते हैं। इसके अलावा लोहार, कोहार, बियार व अन्य जातियां अलग-अलग पॉकेट में निर्णायक भूमिका में हैं। सियासत पर नजर रखने वालों का तकर् है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा पिछड़ा वर्ग को आकर्षित करने में कामयाब रही है। यही वजह है कि आगामी विधानसभा चुनाव से पहले सपा इस वर्ग को अपने साथ जोड़े रखने को लेकर चौकन्नी हो गई है।

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