Edited By ,Updated: 11 Feb, 2016 04:58 PM
उत्तर प्रदेश भूमि राजस्व कानून 1901 में बना था। बाद में इसके बदले 1926 और 1939 उत्तर प्रदेश काश्तकारी (टेनेन्सी) कानून बनाए गए।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश भूमि राजस्व कानून 1901 में बना था। बाद में इसके बदले 1926 और 1939 उत्तर प्रदेश काश्तकारी (टेनेन्सी) कानून बनाए गए। 1951 में उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमिसुधार कानून बनाया गया। इस कानून के अधीन किसानों के पुराने वर्गीकरण को समाप्त कर किसानों को चार श्रेणियों में बांटा गया। भूमिधर, सीरदार, आसामी और अधिवासी। इस कानून के पहले किसानों को सात श्रेणियों में रखा जाता था, जिनमें खुदकाश्त, मौरूसी काश्तकार, सीरदार, काश्तकार और शिकम काश्तकार आदि शामिल थे।
सरकार ने नई राजस्व संहिता को दो चरण में लागू करने का फैसला किया था। नियमावली बनाने व इससे जुड़े कर्मियों को प्रशिक्षण देने जैसे जरूरी प्रावधानों को 19 दिसंबर 2015 को लागू किया गया था। 11 फरवरी को इसे पूरी तरह से लागू किया जाएगा। संहिता को लागू करने के लिए इसकी नियमावली का होना जरूरी है। कैबिनेट की बुधवार को होने वाली बैठक स्थगित होने की वजह से राजस्व नियमावली को देर शाम कैबिनेट बाई सर्कुलेशन मंजूरी दी गई। इसके बाद नियमावली को लागू करने संबंधी आदेश जारी कर दिया गया। राजस्व परिषद ने राजस्व संहिता को यादगार बनाने के लिए 11 फरवरी को ‘राजस्व दिवस’ मनाने का फैसला किया है।
अब अपनी जमीन बेच सकेंगे दलित
न्यू रेवेन्यू कोड के तहत दलित किसी को भी अपनी जमीन बेच सकेंगे। इसके लिए उन्हें किसी अथॉरिटी के परमिशन की जरूरत नहीं है। हालांकि, इसके लिए तीन शर्तें सरकार की ओर से लागू की गई हैं। पहली शर्त-जमीन बेचने वाला दूसरी जगह बस गया हो, दूसरी शर्त-वह किसी जानलेवा रोग से पीड़ित हो, तीसरी शर्त-कोई उसका उत्तराधिकारी न हो। अभी तक दलितों को पट्टे पर जमीन दी जाती थी। न्यू रेवेन्यू कोड के लागू होने के बाद अब दलितों को अपनी जमीन की ओनरशिप (मालिकाना हक) मिल गई है।