शक्तिपीठ बाराही देवी मंदिर में श्रद्धालुओं का लगा तांता, विश्व के दूसरे सबसे विशाल वटवृक्ष की ये है मान्यता

Edited By Umakant yadav,Updated: 19 Oct, 2020 05:20 PM

the influx of devotees in shaktipeeth barahi devi temple

उत्तर प्रदेश में देवीपाटन मंडल के गोण्डा जिले में स्थित शक्तिपीठ बाराही देवी के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। जिला मुख्यालय से करीब 35 किमी दूर स्थित तरबगंज तहसील के सूकर क्षेत्र के मुकंदपुर...

गोण्डा: उत्तर प्रदेश में देवीपाटन मंडल के गोण्डा जिले में स्थित शक्तिपीठ बाराही देवी के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। जिला मुख्यालय से करीब 35 किमी दूर स्थित तरबगंज तहसील के सूकर क्षेत्र के मुकंदपुर में स्थित प्राचीन मंदिर में कोरोना संक्रमण काल के दौरान शारदीय नवरात्र के अवसर पर देश के कोने कोने से आए लाखों श्रद्धालु दैहिक दूरी बनाकर पूजा अर्चना में लगे हुए हैं।

महंत राघव दास के अनुसार बाराही मां के दर्शन मात्र से ही भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। नवरात्रि के दिनों में नेत्रदोष पीड़ित व्यक्तियों द्वारा यहां कल्पवास करने व मन्दिर का नीर एवं करीब 1800 वर्ष पूर्व से स्थित विश्व के दूसरे सबसे विशाल वटवृक्ष से निकलने वाले दुग्ध को आंखों पर लगाने से आंखों की ज्योति पुन: वापस आ जाती है। नेत्र रोग से पीड़ित माँ को प्रसन्न करने के लिये माँ के चरणों में प्रतीकात्मक नेत्र चढ़ाते है। मंदिर मे दर्शन के लिए आस-पास के जनपदों के अलावा दूसरे प्रदेश व नेपाल से भी आये भक्त माँ के दर्शन के लिये लंबी कतारों में लगे है। मां बाराही मंदिर को उत्तरी भवानी के नाम से भी जाना जाता है।       

वाराह पुराण के अनुसार हिरण्यकश्यप के भाई हिरण्याक्ष का पूरे पृथ्वी पर आधिपत्य हो गया था। देवताओं, साधू-सन्तों और ऋषि मुनियों पर अत्याचार बढ़ गया तो हिरण्याक्ष का वध करने के लिये भगवान विष्णु को वाराह का रूप धारण करना पड़ा था। भगवान विष्णु ने जब पाताल लोक पंहुचने के लिये शक्ति की आराधना की तो मुकुन्दपुर में सुखनोई नदी के तट पर मां भगवती बाराही देवी के रूप में प्रकट हुईं। इस मन्दिर में स्थित सुरंग से भगवान वाराह ने पाताल लोक जाकर हिरण्याक्ष का वध किया था। तभी से यह मन्दिर अस्तित्व में आया। इसे कुछ लोग बाराही देवी और कुछ लोग उत्तरी भवानी के नाम से जानने लगे। मंदिर के चारों तरफ फैली वट वृक्ष की शाखायें, इस मन्दिर के अति प्राचीन होने का प्रमाण है। मंदिर प्रांगण मे नवदुर्गाओ, सतियो व अन्य देवी देवताओ के मंदिरो की पूजा अर्चना व हवन में महिला व पुरूष श्रद्धालु लीन नजर आ रहें है।

नवरात्रि के मध्य मंदिर परिसर में निरंतर भागवत कथा व विशाल भंडारा चल रहा है। मंदिर के प्रांगण में दूर दराज से आये देवीभक्त माँ को पुष्प , लौंग , चुनरी , नारियल ,आम पल्लौ , मेवा , मिष्ठान , कमल व अन्य श्रृंगार की सामग्रियों को चढ़ाकर माँ की आराधना में जुटे है। श्रद्धालु सोशल डिस्टेंसिंग संग वैदिक रीति से मुंडन संस्कार , यज्ञोपवीत , नामकरण संस्कार , सगाई की रस्म , शगुन , परिणय संस्कार व अन्य रस्में अदा कर रहे है। पुलिस सूत्रों के अनुसार,नवरात्रि मे सभी प्रमुख मंदिरों में नागरिक पुलिस, पीएसी, होमगार्ड, महिला शाखा व अन्य सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किये गये है। इसके अतिरिक्त जिले के काली भवानी, खैरा भवानी, फुलवारी सम्मय मंदिर व अन्य देवीमंदिरो में जगदजननी मां जगदम्बा मां की पूजा आराधना करने वाले भक्तों का कोरोना महामारी से बचाव के उपायों संग तांता लगा हुआ है।

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