खादी के बनाए तिरंगे में झलकता है कारीगरों की मेहनत का रंग

Edited By Ruby,Updated: 15 Aug, 2018 12:27 PM

the color of artisans  hard work is reflected in the tricolor made of khadi

हाथ में तिरंगा हो , तो जोश खुद-ब-खुद ही आ जाता है। तभी तो तिरंगे की शान रखने के लिए न जाने कितने जाबांजो ने अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया, लेकिन तिरंगा नहीं झुकने दिया। स्वतंत्रता दिवस के दिन हर हाथ में तिरंगा तो रहता ही है साथ ही हर घर,...

मेरठः हाथ में तिरंगा हो , तो जोश खुद-ब-खुद ही आ जाता है। तभी तो तिरंगे की शान रखने के लिए न जाने कितने जाबांजो ने अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया, लेकिन तिरंगा नहीं झुकने दिया। स्वतंत्रता दिवस के दिन हर हाथ में तिरंगा तो रहता ही है साथ ही हर घर, स्कूल-कॉलेज व संस्थानों पर भी तिरंगा फहराया जाता है। वहीं आजादी का पर्व मनाने के लिए मेरठ में तिरंगे बनाने का काम भी जोरों पर है। 

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मेरठ के गांधी खादी आश्रम की नींव आजादी से भी पहले रख दी गई थी। इस आश्रम में खादी के कपड़े तो बनते ही हैं। साथ ही आश्रम में खादी के राष्ट्रीय ध्वज विशेष रूप से तैयार किया जाते हैं। यहां आजकल तिरंगे को बनाने का काम जोरों पर चल रहा है। कारीगर खादी के थानो से हरे, केसरिया और सफेद रंग की पट्टियां काट सफेद रंग की पट्टीयों पर अशोक चक्र की छपाई करने में लगे हैं। गांधी आश्रम पर छोटे से बड़े साइज तक के तिरंगे तैयार किए जा रहे हैं। बस मानकों के अनुसार तिरंगों की लम्बाई और चौड़ाई में डेढ़ गुना का अंतर रखना जरुरी होता है। यहां पर पांच साईज के राष्ट्रीय ध्वज बनते हैं। इसके अलावा कितना भी बड़ा साईज इसमें ऑर्डर देकर तैयार कराया जा सकता है। तिरंगा बनाने का काम यूं तो पूरे साल चलता है , लेकिन आजादी की वर्ष गांठ पर मांग अधिक होने के कारण इसका काम जोरों पर रहता है और इस बार तो खादी तिरंगे झण्डे यानी राष्ट्र ध्वज की मांग दोगुनी बढ़ गई है। 

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सरकारी दफ्तरों से लेकर प्राइवेट संस्थानों और अपने घरों पर भी अब लोग खादी से ही बना हुआ राष्ट्र ध्वज फहराने की तैयारी में लगे हैं क्योंकि खादी स्वदेशी है और इस बार देशभक्ति के साथ-साथ लोगों के दिलों में स्वदेशी की भावना भी काफी दिखाई दे रही है। जब पंजाब केसरी की टीम छपाई के डिपार्टमेंट मे पंहुची तो हमको नफीस अंसारी मिले जो कि कानों से बेहरे हैं और मुंह से बोल भी नहीं सकते। लेकिन इनका देश के लिए झंडा बनाने का जनून इतना है कि यदि इसे कोई ना रोके तो यह रात दिन झंडे बनाने का मादा रखता है। इसका जनून देखकर लगता है कि इसकी आत्मा इस तिरंगे में ही समा गई है। वैसे तो सब कुछ ठीक है तो बस दर्द इस बात का है कि इस काम में पैसा बहुत कम मिलता है और घर का खर्चा बामुशकिल ही चल पाता है। 

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इस तिरंगे ने वैसे तो लोगों को बहुत ही अलग तरह का रोजगार दिया है। हर कहीं पहले के मुकाबले अब ज्यादा झंडे बिकते दिखते हैं। इससे देश के प्रति दिखने वाला प्रेम जोकि अब दुकानों पर साफ दिखता है हर किसी बेचने वाले से लेकर खरीदने वाले को इस बात का गर्व है कि वो भारतीय है। आज हर तरह का झंडा बाजार में देखने को मिल जाता है लेकिन खादी के झण्डे की अलग ही बात है।
 

 

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