गरीब के राशन से अधिकारी बन रहे लखपति

Edited By ,Updated: 02 Apr, 2016 05:10 PM

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पूरे उत्तर प्रदेश में खाद्यान्न सुरक्षा कानून लागू है। इसके तहत दो रुपए की दर से गेहूं और तीन रुपए में एक किलो चावल देने की

पूरे उत्तर प्रदेश में खाद्यान्न सुरक्षा कानून लागू है। इसके तहत दो रुपए की दर से गेहूं और तीन रुपए में एक किलो चावल देने की व्यवस्था है। यह केवल अंत्योदय परिवारों के लिए है,बीपीएल और एपीएल श्रेणी के लिए दाम थोड़े अधिक हैं। अफसेास की बात है कि इसके संतोषजनक परिणाम नहीं मिल रहे हैं। आरोप लगता रहा है कि इस कानून को लागू करने में जल्दबाजी दिखाई गई। इसके लिए योजना नहीं बनाई गई। प्रदेश के जिलों के जो हालात हैं उनसे नहीं लगता कि ऐसे परिवारों को इसका लाभ मिल रहा होगा। हाल में प्रदेश के खाद्य एवं नागरिक पूर्ति विभाग में बड़ा घोटाला सामने आया है। सूखे की मार झेल रहे किसान अनाज के एक-एक दाने के लिए मोहताज हैं और विभाग के अफसर गरीबों के राशन से ही अपनी जेबें भरने में लगे हुए हैं। वे सरकारी राशन को दूसरे गोदामों के माध्यम से बाजार में महंगे दामों पर बिकवा रहे हैं। 

राशन की कालाबाजारी का खुलासा उस वक्त हुआ जब सहारनपुर में सरकारी गोदाम से ट्रैक्टर ट्राली राशन से भरकर एक घर में ले जाई गई। गुप्त सूचना पर प्रशासन की टीम पहुंची तो उसके होश उड़ गए। कालाबाजारी करने वाले तीन लोगों को पुलिस ने मौके से गिरफ्तार कर लिया, लेकिन 24 घंटे जेल में आराम करने के बाद वे रिहा कर दिए गए। इस घटना से साफ हो गया कि सरकारी गोदामों से बचाए गए हजारों किलो के राशन का कोई रिकार्ड नहीं है। अधिकारियों और कर्मचारियों की मिलीभगत से इसे बाजार में बेचा जा रहा है। हर माह यह स्टाफ गैर कानूनी ढंग से लाखों रुपए बटोर रहा था। जब मामला पकड़ में आ ही गया है तो जांच समिति का गठन किया जाना चाहिए था। फिर उससे पड़ताल करवाई जाती। फिलहाल ऐसी कोई कार्रवाई नहीं हुई है। 

पूरी संभावना है कि माफिया ने प्रदेश के मंत्री तक यह खबर नहीं पहुंचने दी होगी। यदि किसी प्रकार उन्हें खबर मिल भी गई है तो क्या उन्होंने अपने स्तर पर जांच करवाई है। संबंधित अधिकारियों को बुलाकर फटकार लगाई है? सरकार की चुस्त कार्रवाई से ही राशन माफिया को ध्वस्त किया जा सकता है। गरीब परिवार राशन के लिए तरस रहे हैं और राशन माफियाओं के गोदामों को भरा जा रहा है। आढ़ती और अधिकारियों को रोजाना कई किस्म के व्यंजन परोसे जा रहे हैं,लेकिन राशनकार्ड धारक को डिपो में अनाज न होने का टका सा जवाब देकर मायूस लौटाया जा रहा है। अपनी कमाई को बचाने के लिए ये अधिकारी कभी नहीं चाहेंगे कि राशन माफियाओं को पकडा जाए। संभव है इसीलिए सहारनपुर में आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट नहीं दी गई। पुलिस ने भी नियम का हवाला देकर 24 घंटे बाद उन्हें रिहा कर दिया। वे फिर अपने पुराने काम में लग जाएंगे और सबकी पौ बारह हो जाएगी। गरीब वहीं तड़पता रहेगा। उसके दर्द से किसी को क्या लेना-देना। 

सहारनपुर के अलावा खाद्यान्न सुरक्षा कानून के तहत बुलंदशहर के पूर्ति विभाग द्वारा खेला गया एक और बड़ा खेल सामने आ चुका है। करोड़ों रुपए महीने की ऊपरी आमदनी के लिए बड़ी तादाद में फर्जी राशनकार्ड डिजिटलाइज किए गए। हर महीने उनके राशन को डीलर और पूर्ति विभाग के अफसर डकारते रहे। मजे की बात है​ कि इन राशनकार्डों के डिजिटलाइजेशन में खर्च हुए का सवा करोड़ रुपए का भुगतान जिला पूर्ति अधिकारी हजम कर गए। स्थानीय प्रशासन को जब इस घोटाले का पता चला तो उसने जांच के लिए एक कमेटी बना दी। गोरखपुर के सहुआपार गांव के आंकड़े भी कम चौंकाने वाले नहीं है। पिछले साल पता चला कि एक परिवार को अब तक दो बार चीनी और मिट्टी का तेल ही मिल पाया है। जबकि उसके सदस्यों का ब्यौरा 16 साल से पंजीकृत है। अनाज के लिए यह परिवार तरसता रहा। राज्य में लागू खाद्यान्न सुरक्षा कानून का क्या औचित्य है?

यदि विभिन्न ​जिलों में राशन वितरण प्रणाली की तहकीकात करवाई जाए तो कई हैरतअंगेज मामले सामने आएंगे। सवाल उठता है कि प्रदेश के खाद्य व नागरिक आपूर्ति मंत्री कितनी बार राशन की दुकानों और गोदामों का आकस्मिक निरीक्षण करते हैं। क्या वे उनके रिकार्ड की जांच करते हैं। यदि स्थानीय पार्षद और विधायक ही संयुक्त रूप से ही जांच आरंभ कर दें तो ऐसे अधिकारियों और राशन माफिया पर काफी हद तक शिकंजा कसा जा सकता है। दावे करने वाली अखिलेश सरकार की आंख कब खुलेगी?  

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