कभी आत्महत्या करने की कगार पर था ये किसान, आज खड़ा किया करोड़ों का कारोबार, पढ़िए हौसले की कहानी

Edited By Tamanna Bhardwaj,Updated: 08 May, 2019 06:44 PM

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कहते हैं कि हौसले बुलंद हो तो मंजिल तक का सफर और भी आसान हो जाता है। इसी हौसले की उड़ान को सच करके दिखाया ललीतपुर के ज्ञासी अहिरवार ने। ज्ञासी अहिरवार जो कभी आत्महत्या करने की कगार पर थे, उन्होंने आज करोड़ों का कारोबार खड़ा कर दिया। हर कोई उनके जज्बे...

ललितपुरः कहते हैं कि हौसले बुलंद हो तो मंजिल तक का सफर और भी आसान हो जाता है। इसी हौसले की उड़ान को सच करके दिखाया ललीतपुर के ज्ञासी अहिरवार ने। ज्ञासी अहिरवार जो कभी आत्महत्या करने की कगार पर थे, उन्होंने आज करोड़ों का कारोबार खड़ा कर दिया। हर कोई उनके जज्बे को सलाम करता है।
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बता दें कि ज्ञासी अहिरवार को खेती में लगभग 15 साल पहले रासायनिक खाद डालने के कारण भारी नुकसान हुआ था। जिस कारण से लाखों का कर्जा हो गया था।जिसके चलते वह मानसिक रूप से परेशान होकर कई बार आत्महत्या जैसा कदम उठाने की कोशिश भी की, लेकिन जब घर वालों ने हौंसला बढ़ाया और केंचुए की जैविक खाद बनाने की जानकारी मिली तो उसने मात्र 20 किलो से केंचुए खाद बनाने का अपना कारोबार शुरू किया था। जो आज इनके पास 50 टन खाद बनकर तैयार है, जिसकी कीमत लाखों रुपए है।
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जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर आलापुर गांव में मेन रोड पर अम्बेडकर बायो फर्टिलाइजर के नाम से ज्ञासी अहिरवार का लगभग 3 एकड़ में प्लांट लगा है। आज की तारीख में ज्ञासी अहिरवार को सरकारी टेंडर भी मिलते है। साथ ही कई गांव के किसान भाई भी केंचुए के खाद बनाने का प्रशिक्षण ले रहे हैं। केंचुआ खाद, वर्मी कम्पोस्ट बनाने के साथ ही ये लगभग 15 एकड़ खेत में जैविक ढंग से खेती करते हैं। इनकी खाद और जैविक सब्जियों की मांग दूसरे जिलों में रहती है, जिससे इन्हें अच्छा मुनाफा मिलता है। बुन्देलखण्ड का जैविक खाद का ये सबसे बड़ा प्लांट है, एक साधारण किसान ने जैविक खाद बनाकर करोड़ों का कारोबार खड़ा कर दिया। इनके जज्बे को बुंदेलखंड सलाम करता है।
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एक साधारण किसान ज्ञासी अहिरवार (59 वर्ष) जैविक खाद का कारोबार शुरू करने को लेकर अपना अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि जब ललितपुर जाते थे तो अधिकारियों व पड़े लिखे लोगों से जैविक खाद बनाने के बारे में अकसर सुना करता था तो एक बार गोबर से केंचुआ खाद बनाकर खेती में डालना शुरू करा तो अच्छा फायदा हुआ और कोई बीमारी व नुकसान नहीं हुआ। उसके बाद एमपी सरकार में खरीद होने लगी और टेंडर डाले ऐसे करते हुए व्यापार बढ़ता गया और हम फिर संभल गए। केंचुए की खाद 45 दिन में तैयार हो जाती है।

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