Edited By PTI News Agency,Updated: 01 Feb, 2021 11:07 PM
लखनऊ, एक फरवरी (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने धर्म बदलकर मुस्लिम लड़के से निकाह करने के एक मामले में नियमित तरीके से बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट जारी करने से इंकार करते हुए याचिका खारिज कर दी।
लखनऊ, एक फरवरी (भाषा) इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने धर्म बदलकर मुस्लिम लड़के से निकाह करने के एक मामले में नियमित तरीके से बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट जारी करने से इंकार करते हुए याचिका खारिज कर दी।
यह आदेश न्यायामूर्ति दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने कथित पति की ओर से दाखिल पत्नी की बंदीप्रत्यक्षीकरण याचिका खारिज करते हुए पारित किया।
अदालत ने कहा कि याची पति सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के तहत वैवाहिक पुर्नर्स्थापना का वाद दाखिल करने को स्वतंत्र है।
अदालत ने कहा कि लड़का प्रथम दृष्टया संतुष्ट नहीं कर सका कि लड़की अपने माता पिता के अवैध कब्जे में है।
अदालत ने आगे कहा कि निरुद्ध व्यक्ति को पेश करने का आदेश देने से पहले उसे संतुष्ट होना पड़ता है कि याची जिस निरूद्ध व्यक्ति की बात कर रहा है क्या वह वास्तव में अवैध रूप से किसी के कब्जे में है।
याची ने अदालत से कहा कि वह बंदीप्रत्यक्षीकरण रिट जारी कर लड़की के घरवालों को आदेश दे कि वे लड़की को कोर्ट में पेश करें ताकि उसे रिहा किया जा सके।
दरअसल पति ने याचिका में कहा था कि वह बालिग है और उसकी पत्नी हिन्दू थी जिसने धर्म परिवर्तन करके उसके साथ निकाह किया है। पत्नी भी बालिग थी, फिर भी लड़की के घरवालों ने लखनऊ के विभूति खंड थाने पर उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करा दी और उसकी पत्नी को अवैध रूप से बंद कर रखा है।
याचिका का विरोध करते हुए अपर शासकीय अधिवक्ता राव नरेंद्र सिंह का तर्क था कि लड़की का धर्म केवल इसलिए परिवर्तित कराया गया कि उससे निकाह किया जा सके जो कि अवैध है।
उन्होंने कहा कि एक खास धर्म के साथ यह षड्यंत्र है कि उनके धर्म की भोली भाली लड़कियों को बहला फुसलाकर उनका धर्म बदलकर उनसे निकाह कर लिया जाता है।
राव ने कहा कि इस मामले में लड़की के परिवार वालों के अवैध कब्जे में होने का आरोप गलत है।
उन्होंने कहा कि सारे तथ्यों पर गौर करने के बाद अदालत ने पाया कि लड़की अपने परिवार के अवैध कब्जे में नहीं है और इस आधार पर पति की याचिका खारिज कर दी।
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