Mother's Day: मां ने थामा बेटी का हाथ, बनाया मैमोरी गर्ल

Edited By Anil Kapoor,Updated: 13 May, 2018 11:19 AM

mother take daughter s hand made memory girl

पति ने हाथ छोड़ा, समाज ने ताने मारे, तानों से आहत होकर मां ने अपना शहर छोड़ा और मथुरा आकर रहने लगी। यह सब वाकया जब हुआ उस समय मैमोरी गर्ल की उम्र बहुत कम थी। मां-बाप में तलाक हुआ तो भाई पापा के पास चला गया और मैमोरी गर्ल की जिम्मेदारी मां के कंधों...

मथुरा: पति ने हाथ छोड़ा, समाज ने ताने मारे, तानों से आहत होकर मां ने अपना शहर छोड़ा और मथुरा आकर रहने लगी। यह सब वाकया जब हुआ उस समय मैमोरी गर्ल की उम्र बहुत कम थी। मां-बाप में तलाक हुआ तो भाई पापा के पास चला गया और मैमोरी गर्ल की जिम्मेदारी मां के कंधों पर आ गई। उसके घर के हालात तो ऐसे थे कि उसे बीच रास्ते में ही हार जाना था, मगर वह मां थी।

जिंदगी जीने के जिसके साथ कसम-ए-वायदे हुए, उसने बीच रास्ते में जब साथ छोड़ा, तब उसकी दुनिया एक नन्ही-सी जान के इर्द-गिर्द ही सिमट गई। किसी ने साथ नहीं दिया। मगर उसने खुद तय कर लिया कि बेटी को ऐसे मुकाम पर पहुंचाएगी कि दुनिया उसे देखे। आज उसकी बेटी 2 बार गिनीज बुक में अपना नाम दर्ज करा चुकी है। उसे गम नहीं कि इसके लिए एक दिन उसे अपनी अंगूठी तक बेचनी पड़ी थी। हाथरस के सिकंदराराऊ निवासी ऊषा शर्मा की कहानी किसी फिल्म की तरह है। विवाह के 5 वर्ष बाद ही उन्हें पति से अलग होना पड़ा। एक बेटा और एक बेटी में से उनके हिस्से आई, 6 साल की बेटी प्रेरणा। पति के घर से अलग होने के बाद उनकी राह अंधेरी थी। मायके में भी कोई साथ देने वाला नहीं था और दुनिया के पास थे, तमाम उलाहने।

मगर एक बात थी, जो उनके सीने में किसी शूल की तरह चुभ रही थी। वह बात ही नहीं चुनौती भी थी कि अब वह मासूम बेटी को लेकर बिना मर्द दुनिया से कैसे लड़ती। समाज का उलाहना ही उसकी ताकत बनी। बेटी को लेकर वह मथुरा आ गई और टाऊनशिप में किराए के मकान में रहने लगी। वर्ष 2007 की बात थी। बिटिया को कक्षा 6 में दाखिला दिलाया। फीस भरने को पैसे नहीं थे तो सिलाई की। आर्मी स्कूल में शिक्षिका के रूप में 5 वर्ष तक काम किया। उनकी जिद थी कि वह बेटी को ऐसा मुकाम दिलाएगी कि कोई भी महिला को कमजोर न समझे।

2010 में कान्हा माखन स्कूल में बेटी प्रेरणा को प्रवेश तो दिला दिया लेकिन फीस जमा करने को लेकर आए-दिन उन्हें सुनना पड़ता। जैसे-तैसे कक्षा 10 पास करा ली। 2012 में कक्षा 11 में फीस न भरने के कारण प्रेरणा को स्कूल से निकाल दिया गया। वह एक बार तो टूट गई लेकिन यही वह मोड़ था, जिसने प्रेरणा की उपलब्धियों का सफर शुरू किया। पढ़ाई में कभी कमजोर प्रेरणा मैमोरी गुरु आशीष शर्मा के संपर्क में आई। गुरु ने उसके समक्ष एक अजीब मांग रख दी। उन्होंने कहा कि अगर वह इस दिशा में नाम कमा गई तो उसे फीस के 32 हजार रुपए नहीं देने होंगे।

मां को बेचनी पड़ गई थी अंगूठी
पढ़ाई में कमजोर प्रेरणा उनकी उम्मीदों पर खरा उतरी और इस क्षेत्र में आगे बढ़ी। प्रेरणा की मां ऊषा कहती हैं कि एक बार तो ऐसा भी हुआ जब प्रेरणा को एक सैमीनार में कोलकाता जाना था लेकिन घर में धन की कोई व्यवस्था नहीं थी। सारी गुल्लकों को फोडऩे के बाद भी इतने पैसे नहीं थे कि सैमीनार में हिस्सा लिया जा सके। ऐसे में उन्हें अपनी सोने की अंगूठी भी बेचनी पड़ी। आज प्रेरणा मैमोरी में 2 बार गिनीज बुक ऑफ  वर्ल्ड रिकॉर्ड अपने नाम कर चुकी है। उसके नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड व लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड भी है।

भारत में पहला मैमोरी स्कूल खोलना सपना
प्रेरणा की मां एक शिक्षिका के साथ-साथ कवियत्री भी हैं। उन्होंने अब तक 2 किताबें भी लिखीं हैं, जिनका शीर्षक ‘तेरा फैसला मेरी जिंदगी’ और ‘कुछ रिश्ते ऐसे भी’ है। ऊषा शर्मा कक्षा 6 व 8 की गाइडें भी लिख चुकी है। प्रेरणा इन दिनों रात्रि में घंटों तक अपना पुराना रिकॉर्ड तोड़ने की तैयारी में जुटी रहती है। भारत में पहला मैमोरी स्कूल खोलना उसका सपना है। रानी लक्ष्मीबाई अवार्ड भी प्रदेश सरकार दे चुकी है।

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