यूपी पंचायत चुनाव: मतदाता नहीं देख पाएंगे महिला उम्मीदवारों का चेहरा, फिर भी वे उन्हें देंगे अपना वोट

Edited By Anil Kapoor,Updated: 14 Apr, 2021 10:38 AM

mirzapur voters will not see women candidate

उत्तर प्रदेश में चल रहे पंचायत चुनावों में मिर्जापुर जिले में महिला प्रत्याशियों के चुनाव का अजीब नजारा है। जिले के पंचायत मतदाता 25 प्रतिशत महिला उम्मीदवारों का मुंह शायद नहीं देख पायेंगे, फिर भी वे उन्हें अपना वोट देंगे। मंगलवार को पर्चा दाखिला...

मिर्जापुर: उत्तर प्रदेश में चल रहे पंचायत चुनावों में मिर्जापुर जिले में महिला प्रत्याशियों के चुनाव का अजीब नजारा है। जिले के पंचायत मतदाता 25 प्रतिशत महिला उम्मीदवारों का मुंह शायद नहीं देख पायेंगे, फिर भी वे उन्हें अपना वोट देंगे। मंगलवार को पर्चा दाखिला में घुंघट में आई महिला प्रत्याशियों को देखकर लगता नहीं कि राजनैतिक रूप से जागृत समाज महिलाओं की भूमिका में आमूल परिवर्तन हुआ है।

जानकारी मुताबिक गांव प्रधान पद की उम्मीदवार के रूप में घूंघट में आई और घूंघट में पर्चा दाखिल किया और चली गई। कुछ ऐसा ही द्दश्य बीडीसी और अपेक्षाकृत बडे जिला पंचायत सदस्य के कुछ महिला उम्मीदवारों में भी दिखा। इन महिला प्रत्याशियों में पूर्व प्रधान और राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों की पत्नियां शामिल हैं। इन महिलाओं के पति ही असल में चुनाव लड़ रहे हैं। इनमें से कई महिलाओं ने ड्योढी के बाहर कदम तक नहीं रखा है। उन्हें यह भी नहीं मालूम है कि जीतने के बाद क्या करना है। वे अपना नाम तक बताने में संकोच करती है।

जिले के 12 ब्लाकों एवं जिला मुख्यालय पर पंचायत चुनावों के नामांकन को लेकर काफी गहमागहमी थी। पूरा माहौल किसी उत्सव से कम नहीं था। कोरोना महामारी को लेकर जिलाप्रशासन द्वारा बनाई गई गाईड लाईन पूरी तरह फेल हो गई थी। अर्ध पहाड़ी आदिवासी बहुल जिले में आज भी लोग 5 साल तक अपने प्रधान का मुंह न देखने की शिकायत कर चुके हैं। जिले के हलिया लालगंज और मडिहान में सामंतवादी चुनाव आज भी होते हैं। असल में सांसद विधायक कोटे की तरह प्रधान कोटे ने प्रधान बनने की ललक बढा दी है। प्रधानों के जीवन स्तर में आए गुणात्मक बदलाव से भी लोगों की आंखें खोल दी है। शायद यही कारण है कि गांव के सदस्यों तक की लड़ाई हो रही है। प्रधान पद की बात ही क्या है। अब निर्विरोध चुनाव की कल्पना ही नहीं की जा सकती है।

आज सिटी ब्लाक में गांव प्रधान के नामांकन करने घूंघट में पहुंची एक महिला ने अपना नाम तक बताने से इंकार कर दिया। नामांकन भरवा रहे उसके पति और समर्थक ही उत्तर देने लगे। शहर के नजदीक इस गांव में 2 हजार मतदाता हैं। भले ही गाजे बाजे एवं अपने भारी समर्थकों और लाव लश्कर के साथ हो रहे नामांकन से उत्साह और चेतना का भास हो रहा था। पर हकीकत में महिला प्रत्याशियों में अधिकांश अपने पति के सहारे ही लड़ रही है। एक तरह से उनके पति ही लड़ रहे हैं। उन्हें इससे कुछ लेना देना नहीं है। नामांकन के लिए सज-धज कर किन्तु घूंघट में अपने पति के साथ पहुंची इन महिला उम्मीदवारों को देख कर नहीं लग रह था। संसद और विधानसभा में प्रतिनिधित्व की मांग कर महिलाओं में कोई विशेष परिवर्तन भी हुआ है।

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