बजंरगबली ही करेंगे मायावती को ठीक : रामशंकर कठेरिया

Edited By Ruby,Updated: 14 Apr, 2019 04:01 PM

mayawati will do the right thing ramshankar katheria

इटावाः लोकसभा चुनाव में जीत के लिए अली और बजरंगबली के नाम का धड़ल्ले से हो रहे इस्तेमाल के बीच अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग के अध्यक्ष और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) प्रत्याशी रामशंकर कठेरिया ने कहा कि वोट के लिए बजरंगबली के नाम का इस्तेमाल करने वाली...

इटावाः लोकसभा चुनाव में जीत के लिए अली और बजरंगबली के नाम का धड़ल्ले से हो रहे इस्तेमाल के बीच अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग के अध्यक्ष और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) प्रत्याशी रामशंकर कठेरिया ने कहा कि वोट के लिए बजरंगबली के नाम का इस्तेमाल करने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सुप्रीमो मायावती को हनुमानजी ही ठीक करेंगे।  

बजरंगबली मायावती को ठीक कर देंगे
इटावा संसदीय सीट से भाजपा उम्मीदवार कठेरिया ने कहा कि ‘‘ वोटों के समय मायावती बजरंगबली का नाम ले रही है, मुझे लगता है बजरंगबली मायावती को ठीक कर देंगे। ’’   उन्होंने कहा कि पिछले पांच सालो के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल मे विकास का जो मॉडल बनाया है उसके चलते यह उम्मीद है कि देश की जनता एक बार फिर से उनको ना केवल प्रधानमंत्री बनाएगी बल्कि भाजपा की फिर से पूर्ण बहुमत की सरकार केंद्र में काबिज होगी।

बजरंगबली मायावती को ठीक कर देंगे
उन्होंने दावा किया कि समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का गठबंधन केवल नेताओं के आपसी तालमेल का गठबंधन है। इस गठबंधन से आम मतदाता का कोई लेना देना नहीं है। चुनाव के बाद दोनों दल के प्रमुख एक दूसरे के खिलाफ मुखर होते हुए नजर आएंगे। भले ही आंकड़े उनके पक्ष में बताए जा रहे हो लेकिन ऐसा हकीकत में नहीं है क्योंकि दोनों दल पहले ही पूरे प्रदेश भर में आधी आधी सीटो पर संसदीय चुनाव लड़ रही हैं। कठेरिया ने कहा कि सपा बसपा गठबंधन कोई मायने नहीं रखता है क्योंकि एक दूसरे संगठन के लोग एक दूसरे को हराने में जुटे हुए ऐसी खबरें उनके पास में आ रही है उनकी सभाओं में भीड़ भी नहीं समिट रही है केवल जाति सम्मेलन के बल पर वो अपने आप को आगे बताने में जुटे हुए हैं जबकि हकीकत में दोनो दल भाजपा के मुकाबले कही भी नहीं टिक रहे हैं।  

बसपा जीरो पर आकर के टिक गई
दोनों दल के मुखिया अपने अपने दलों के समर्थकों को तरह तरह का प्रलोभन देकर के गुमराह करते रहते हैं लेकिन अब लोग काफी जागरूक हो चुके हैं और इस जागरूकता का असर 2014 के संसदीय चुनाव में तो दिखाई ही दिया है । 2017 के विधानसभा चुनाव में भी नजर आया तभी समाजवादी पार्टी मात्र पांच सीट पर सिमट करके रह गई जबकि बसपा जीरो पर आकर के टिक गई है। रही बात विधानसभा में तो उनकी दोनों दलों की विधायक संख्या भी इतनी कम हो चुकी है कि जो कहीं पर भी मुकाबले में खड़े होते हुए नहीं दिखाई दे रहे है।

 

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