फूलपुर संसदीय क्षेत्र पर कब्जा बरकरार रखना BJP के लिए आसान नहीं

Edited By Punjab Kesari,Updated: 12 Feb, 2018 03:47 PM

maintaining possession of the parliament of flowers not easy for bjp

फूलपुर संसदीय सीट पर 11 मार्च को होने वाले उपचुनाव में भाजपा को अपना वर्चस्व कायम रखना आसान नहीं होगा। आजादी के बाद पहली बार वर्ष 2014 के आम चुनाव में यहां कमल खिला था। यहां से जीत दर्ज करने वाले केशव प्रसाद मौर्य को यूपी का उप मुख्यमंत्री बनाया गया।

इलाहाबाद: फूलपुर संसदीय सीट पर 11 मार्च को होने वाले उपचुनाव में भाजपा को अपना वर्चस्व कायम रखना आसान नहीं होगा। आजादी के बाद पहली बार वर्ष 2014 के आम चुनाव में यहां कमल खिला था। यहां से जीत दर्ज करने वाले केशव प्रसाद मौर्य को यूपी का उप मुख्यमंत्री बनाया गया। उप मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद उन्होंने इस सीट से इस्तीफा दे दिया था। रिक्त हुई इस सीट पर पार्टी एवं मौर्य की प्रतिष्ठा दाव पर लग गई है। भाजपा इस सीट पर जीतने का पूरा प्रयास करेगी लेकिन बदले हालातों में यह कठिन लग रहा है।

पार्टी वर्ष 2019 के चुनाव के पूर्व की रिहर्सल मानते हुए अपनी पूरी ताकत झोंकेगी और हर हाल में इस सीट पर अपना दोबारा कब्जा रखने का प्रयास करेगी। राजनीतिक दृष्टि से कई मायनों में पार्टियों के लिए यह सीट अहम बन गई है। सभी पार्टी के दिग्गज अपने-अपने राजनीतिक तरकश से तीर चलाने को बेताब हैं तथा यहां से टिकट के दावेदार बड़े नेताओं से जुगाड़ करने में लगे हैं। भाजपा से मुकाबले के लिए कांग्रेस और समाजवादी पार्टी (सपा) ने ताल ठोकने की तैयारी शुरू कर दी है। हालांकि किसी पार्टी ने अभी तक अपना तुरूप का पत्ता खोलते हुए प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है।

आजादी के बाद से ही चर्चित रहने वाली फूलपुर संसदीय सीट देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का संसदीय क्षेत्र रहा। वर्ष 1952, 1957 और 1962 में नेहरू ने यहां से जीत दर्ज कर हैट्रिक बनाई थी। इसके अलावा रामपूजन पटेल ने भी यहां से हैट्रिक लगाई थी। फूलपुर की प्रतिष्ठित सीट के लिए उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की पत्नी राजकुमारी को उम्मीदवार बनाने की चर्चा जोरों से चल रही है। दूसरी तरफ भाजपा किसी ब्राह्मण, यादव और पटेल को टिकट देकर इस सीट पर दोबारा कमल खिलाने की कोशिश करेगी। हालांकि प्रत्याशियों के नाम को लेकर कोई भी नेता मुंह खोलने को तैयार नहीं है।

इस उपचुनाव में सतारूढ़ भाजपा को अपनी नीतियों, घरेलू चीजों के मूल्यों में वृद्धि, नोटबंदी और वादाखिलाफी से लोगों के आक्रोश का सामना करना पड़ेगा। इसके अलावा सांसद रहते हुए मौर्य द्वारा प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना के तहत गोद लिया गया गांव जैतवारडीह के हालातों में कोई सुधार नहीं होने से पार्टी को जनता की नाराजगी झेलनी पड़ेगी। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि कुछ नेता तो टिकट न मिलने पर अपनी पार्टी छोड़कर दूसरे दल में जाने की फिराक में हैं।

Related Story

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!