माघ मेला 2020: आइए जानें, क्यों होता है संगम की रेती पर कल्पवास?

Edited By Ajay kumar,Updated: 11 Jan, 2020 01:36 PM

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में माघ मेले की शुरुआत पौष पूर्णिमा के  स्नान पर्व के साथ हो गई  है। इस मौके पर गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी में साधू-संतों के साथ ही लाखों श्रद्धालुओं ने संगम में डुबकी...

प्रयागराज: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में माघ मेले की शुरुआत पौष पूर्णिमा के  स्नान पर्व के साथ हो गई  है। इस मौके पर गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी में साधू-संतों के साथ ही लाखों श्रद्धालुओं ने संगम में डुबकी लगाई। पौष पूर्णिमा के स्नान पर्व के साथ ही संगम की रेती पर होने वाले एक महीने के कल्पवास की भी शुरुआत  हो गई है। प्रशासन के मुताबिक लाखों की तादाद में श्रद्धालु एक महीने तक संगम की रेती पर कल्पवास करेंगे। देश-विदेश से कल्पवासी पौष पूर्णिमा स्नान में आते हैं और माघी पूर्णिमा स्नान तक संगम की रेती पर रहते हैं।
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भारतीय आश्रम परम्परा में गृहस्थ आश्रम को सबसे श्रेष्ठ माना गया है। जिसमें साल में ग्यारह महीने घर में रहकर भी बस एक महीने मोह-माया से दूर रहकर पवित्र नदियों के संगम के किनारे वास करके जप-तप और साधना से मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है। मोक्ष की इसी लालसा को लेकर लाखों श्रद्धालु माघ मेले में धर्म की नगरी तीर्थराज प्रयाग में गंगा-यमुना और सरस्वती की त्रिवेणी पर एक महीने तक वास करते हैं जिसे कल्पवास कहा जाता है।
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संगम तट पर लगने वाला तथा एक माह तक चलने वाले कल्पवास की शुरुआत हो गई है।  संगम में स्नान, कल्पवास, त्याग और संयम का जीवन जीते हुए पूरे समय भगवान् के नाम का सत्संग करने वाले कल्पवासियों की इस अनूठी दुनिया में धर्म, आध्यात्म, आस्था, समर्पण और ज्ञान व संस्कृति के तमाम रंग देखने को मिलते हैं।
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मान्यता है कि 33 करोड़ देवी देवता एक महीने तक संगम की रेती में विराजमान रहते हैं। कल्पवास करने आये श्रद्धालु दिन में दो बार स्नान करते हैं और एक बार खाना खाते हैं। भजन कीर्तन करते है। तुलसी के पेड़ की पूजा करते है।
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अखिर कैसा होता है कल्पवास इसको जानने के लिए हमारे संवाददाता मनीष त्रिपाठी कल्पवासियों के तंबुओं पर गये और उनसे बात की तो कई कल्पवासियों ने बताया कि हिन्दू धर्म, शास्त्र के मुताबिक माघ महीने का कल्पवास और स्नान भगवत प्राप्ति के लिए बहुत ही उपयोगी है। दिंदू धर्म ही नहीं बल्कि सभी धर्मों के कल्पवासी यहां कल्पवास के लिए आते हैं। कितने लोग यहां से प्रेरणा लेकर जाते हैं और धर्म परिवर्तन कर कल्पवास करते हैं। उन्होंने बताया कि विभिन्न जिलों के लोग एक साथ भाईचारे के साथ 1 महीने रहते हैं मानों सभी एक परिवार के हों।

कल्पवासी 1 महीने तक सादा जीवन यापन कर एक टाइम भोजन के साथ दो टाइम स्नान करते हैं। कल्पवासियों ने बताया कि जब 1 महीने बाद सभी एक दूसरे को छोड़कर जाने लगते हैं सभी एक दूसरे को पकड़कर रोने लगते हैं। लगता है जैसे किसी का भाई बिछड़ रहा है, किसी की बहन बिछड़ रही है।

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