जानिए, सुप्रीम काेर्ट के 'इच्छा मृत्यु' फैसले से इतना खुश क्याें है ये परिवार

Edited By Punjab Kesari,Updated: 10 Mar, 2018 01:56 PM

कई बार बीमारी शरीर को इस कदर जकड़ लेती है कि इंसान इच्छा मृत्यु की मांग करने लगता है। ऐसा ही एक मामला मिर्जापुर जिले के लालगंज ब्लाक के बसही कला गांव का है। यहां जीत नारायण के 4 बच्चे दुर्गेश, सर्वेश, बृ...

मिर्जापुरः कई बार बीमारी शरीर को इस कदर जकड़ लेती है कि इंसान इच्छा मृत्यु की मांग करने लगता है। ऐसा ही एक मामला मिर्जापुर जिले के लालगंज ब्लाक के बसही कला गांव का है। यहां जीत नारायण के 4 बच्चे दुर्गेश, सर्वेश, बृजेश, सुशील लाइलाज बीमारी मस्कुलर डिस्ट्राफी से ग्रसत थे। जिसके चलते जीत नारायण बच्चों का इलाज कराकर थक चुका था, लेकिन बच्चे ठीक नहीं हुए। रोज-रोज अपनी आंखों के सामने बच्चों को तड़पता देख कर जीत नारायण ने 2009 में राष्टपति को पत्र लिख कर बच्चों के लिए इच्छा मृत्यु की गुहार लगाई थी, लेकिन उसकी गुहार नहीं सुनी गई।

जानिए पूरा मामला
समय बीतता गया बच्चों की हालत दिन प्रतिदिन खराब होती गई। इस बीच 2013 में 26 साल के सर्वेश की मौत हो गई। उसके बाद 2015 में एक ही महीने में पंद्रह दिनों के अंतराल में दुर्गेश और सुशील की भी मौत हो गई। अब जीत नारायण का 23 साल का बेटा बृजेश जिंदगी और मौत के बीच जंग लड़ रहा है। 23 साल का होने के बावजूद भी वह पूरी तरह से अविकसित बच्चे की तरह है। उसके शरीर का कोई अंग काम नही करता है। वह चलने-फिरने और उठने में भी वह सक्षम नहीं है। जो सिर्फ अपने परिवार वालों के सहारे है। इस बीमारी में 26 साल की अवस्था मे मौत हो जाती है।

इच्छा मृत्यु फैसले से खुश परिवार
इसी बीच सुप्रीम कोर्ट ने इच्छा मृत्यु को लेकर शुक्रवार को अपना फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा है कि कोमा में जा चुके या मौत की कगार पर पहुंच चुके लोगों के लिए निष्क्रिय इच्छामृत्यु के लिए लिखी गई वसीयत कानूनी रूप से मान्य होगी। कोर्ट के आए इस फैसले के बाद जीत नारायण का कहना है कि यह स्वागत भरा फैसला है। फैसला अगर पहले आता तो हमारे 3 बच्चे इस तरह से तड़प-तड़प कर नहीं मरते। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में जीत नारायण के बच्चों के दर्द का उल्लेख किया गया है।

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